21 वीं सदी की इस दौर में पुरे विश्व में आयेदिन कहीं-न-कहीं युद्ध, सशस्त्र संघर्ष और विभिन्न प्रकार के विनाशकारी हमले देखने को मिलते रहतें हैं, जो की मानव सभ्यता को हानि पहुँचाने के साथ-साथ पर्यावरण (जल और जंगल), जिव-जंतु को भी बुरी तरीके से प्रभावित करता है। इसलिए, संयुक्त राष्ट्र के द्वारा “युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में पर्यावरण के शोषण को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस (Yudh aur Sashastra sangharsh mein Paryavaran ke shoshan ko rokne ke liye antarashtriya diwas)” मनाया जाता है, जो की प्रति वर्ष 6 नवंबर को युद्ध एवं सशस्त्र संघर्ष के दौरान होने वाले पर्यावरण के क्षति और हानि को रोकने के लिए जागरूकता फैलाती है एवं उससे सम्बंधित जानकारी प्रदान करती है।
इस दिवस का मुख्य उदेश्य लोगों को युद्ध और सशस्त्र संघर्ष से होने वाले प्रभाव से अवगत कराना है की जब युद्ध होता है तब पर्यावरण पारिस्थितिकी तंत्र जैसे ; जल की आपूर्ति, वन क्षेत्र और जानवरों का भी विनाश होता है।
Table of Contents
युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में पर्यावरण के शोषण को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस का इतिहास।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा इस दिवस का अनुसरण 6 नवंबर, 2001 से किया गया और यह घोसणा की गयी की प्रतिवर्ष 6 नवंबर को Yudh aur Sashastra sangharsh mein Paryavaran ke shoshan ko rokne ke liye antarashtriya diwas का अनुसरण किया जायेगा।
जिस गति से पुरे विश्व में विभिन्न देशों के बिच युद्धों जैसे हालात के समीकरण बनते जा रहें हैं, ऐसी परिस्थितियों को देख कर यह अंदाजा लगाया जा सकता है की भविष्य में इस दिन की महत्ता कितनी बढ़ जाएगी। देश युद्ध की आड़ में पर्यावरण का शोषण भरपूर मात्रा में कर रहें हैं, जिसका खामयाजा उन्हें जरूर भुगतना पड़ेगा।
युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में पर्यावरण के शोषण को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस का महत्व।
- इस दिवस की महत्ता युद्ध के दौरान पर्यावरण पर होने वाले शोषण की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है, जिसे हम हमेशा अनदेखा कर देतें हैं। युद्ध में सबसे बड़े स्तर पर बर्बादी प्रकृति संसाधन, वन एवं जिव- जंतुओं की होती है, जिसका परिणाम गंभीर और दीर्घकालिक हो सकता है।
- यह दिवस विश्व को संयुक्त राष्ट्र द्वारा आधारित ‘सतत विकास लक्ष्यों’ को 2030 तक हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
- मानव के शिकार के बाद युद्ध का सबसे बड़ा शिकार पर्यावरण होता है क्योंकि यदि आजीविका और पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने वाले प्राकृतिक संसाधन नष्ट हो जाते हैं तो फिर कुछ भी स्थायी नहीं बचेगा।
- थोड़े से अल्पकालिक लाभ के कारण युद्ध के दौरान बड़ी मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों का नुक्सान होता है, जिसका परिणाम अंत में हमे ही भुगतना पड़ता है, जैसे; रूस और यूक्रेन युद्ध के दौरान गेहूं के निर्यात पर संकट आ गयी थी क्यूंकि रूस और यूक्रेन गेहूं के बड़े निर्यातक हैं।
पर्यावरण की समस्या पुरे विश्व में बहुत ही गंभीर समस्या है, जिसके लिए हम सबको एकजुट होकर कार्य करने की आवश्यकता है क्यूंकि विभिन्न प्रकार के प्रदुषण के कारण जलवायु परिवर्तन हो रहा है, जिससे हमारी प्राकृतिक संसाधन प्रभावित हो रहीं है। लेकिन, युद्ध और संघर्ष के कारण पर्यावरण का शोषण यह तो मानव पर निर्भर करता है।