राधे-राधे, आदाब, सत्यश्रीअकाल, हैलो मेरे प्यारे दोस्तों महंगाई या मुद्रास्फीति एक विकाशील समाज और देश के प्रगति के लिए बहुत बड़ी बाधक होती है, जो अधिकतर लोगों के कल्पनाओं के और योजना के विरुद्ध कार्य करती है, जिसके कारण मनुष्य के प्रगतिशील जीवन में ठहराव आ जाता है। “भारत में महंगाई (मुद्रास्फीति) की समस्या (The Problem of Inflation in India.)” एक ऐसी कारण है जो भारत को विकसित अर्थव्यवस्था वाला देश होने से रोकता है क्यूंकि भारत में महंगाई की सबसे अधिक मार गरीब वर्ग के लोग झेलते हैं और भारत में गरीबी का विस्तार आज भी बहुत बड़ी मात्रा में देखने को मिलता है।
हमारे भारत में आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा मध्यम वर्गीय लोगों के द्वारा पूरा किया जाता है, जो की अपने मेहनत और पसीने से अर्जित किये हुआ धन के द्वारा दो वक़्त की रोटी खाकर अपना गुजर-बसर करतें हैं।
हालाँकि, एक बात स्पष्ट करना चाहता हूँ की महंगाई की चक्की में पीसने वाले मध्यम वर्गीय लोग भी इस समस्या का सामना अच्छे स्तर पर महसूस करतें हैं क्यूंकि हमारे देश में गरीबी है और गरीबों की समस्या के लिए सरकार है ठीक दूसरी तरफ अमीरों के पास भरपूर पैसे हैं उनके लिए कैसी समस्या परन्तु जब बात मध्यम वर्गीय लोगों की करतें हैं तो उनपर ना सरकार ध्यान देती है और ना ही उनके पास इतना धन होता है की महंगाई की मार को आसानी से झेल सकें, उन्हें तो अपने पॉकेट पर नियंत्रण करने के साथ-साथ भविष्य के लिए बचत भी करना होता है।
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महंगाई किसे कहतें है?
महंगाई या मुद्रफीति (Inflation) हमे देश में तभी देखने को मिलती है जब अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में वृद्धि हो जाती है, जो की सामान्य मूल्य की तुलना में अधिक होती है।
भारत में आज़ादी के बाद महंगाई दर में निरंतर वृद्धि देखने को मिली है, आप इसी बात से अनुमान लगा सकतें हैं की आज़ादी के वक़्त ‘3 रूपए भारतीय मुद्रा के बराबर 1 डॉलर अमेरिकी मुद्रा‘ हुआ करता था और आज ’75 रूपए भारतीय मुद्रा के बराबर 1 डॉलर अमेरिकी मुद्रा‘ है। वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में वृद्धि होने के क्या कारण हैं, इसके बारे में हम आगे चर्चा करेंगे लेकिन उसके पहले यह जानना जरुरी है की महंगाई दर में बढ़ोतरी होने के आधार क्या है।
अर्थव्यवस्था में हर वस्तु और सेवा किसी न किसी प्रकार एक दूसरे से जुड़ा हुआ है और हर किसी की निर्भरता भी हर किसी पर है इसलिए अर्थव्यवस्था में ‘महंगाई या मुद्रास्फीति’ का आकलन ‘उपभोगता मूल्य सूचकांक‘ के आधार पर किया जाता है जो की एक समयावधि में वस्तुओं और सेवाओं की खुदरा कीमतों में बदलाव का प्रतिबिम्ब बताता है, जिसे विशेष रूप से उपभोगता समूह द्वारा उपभोग किया जाता है। उपभोगता मूल्य सूचकांक महंगाई के दर को मापने के लिए ‘थोक मूल्य, परिवहन लागत (जो की पेट्रोल, डीजल पाए निर्भर करता है) और खुदरा विक्रेता के मार्जिन को संगठित करके तय करता है।
भारत में महंगाई के कारण।
भारत में महंगाई (Inflation in India) की इस समस्या के अनेको कारण है लेकिन सामान्य तौर पर जबभी अर्थव्यवस्था में ‘मांग और आपूर्ति’ के बिच अस्थिरता पैदा होती है और उनके बिच संतुलन में गड़बड़ होती है, तो उस वक़्त हमे महंगाई दर में वृद्धि देखने को मिलती है, महंगाई के कारणों में कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:-
- मांग और आपूर्ति के बिच असंतुलन-> भारत में महंगाई का एक मुख्य कारण इसे माना जाता है, जब बाजार में उत्पादन की तुलना में मांग में अधिक वृद्धि हो जाती है और उस मांग की आपूर्ति करने के लिए अर्थव्यवस्था में उस वस्तु और सेवा की कमी हो जाती है, जिसके कारण अर्थव्यवस्था में महंगाई देखने को मिलती है क्यूंकि सब लोगों की मांग को पूरा करने के लिए वह वस्तु और सेवा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होती है इसलिए उस वस्तु और सेवा की दर में बढ़ोतरी हो जाती है।
- वेतन में वृद्धि-> लोगों की वेतन में वृद्धि होने से उनकी जरूरतें भी बढ़ जाती है, जिससे वस्तुओं की मांग बाजार में बढ़ने लगती है और लोग ज्यादा खर्च करने लगतें हैं, जिससे वस्तुओं की दर में वृद्धि होती है और परिणाम महंगाई।
- मूल्य बढ़ोतरी महंगाई-> जब किसी वस्तु के निर्माण की लागत में वृद्धि होती है या फिर उस वस्तु के उत्पादन में उपयोग किये गए सामग्री में वृद्धि होने से, उस वस्तु का मूल्य सामान्य मूल्य की तुलना में बढ़ जाती है।
- सार्वजनिक व्यय ने वृद्धि-> लोगों धन की मात्रा बढ़ जाती है और लोगों के अधिक खर्च करने के कारण मांग में उछाल देखने को मिलती है लेकिन केवल मांग बढ़ने से और उत्पादन के स्थिर रहने से, महंगाई दर में वृद्धि हो जाती है।
- करों में वृद्धि करना-> सरकार के द्वारा अप्रत्यक्ष करों में वृद्धि कर दी जाती है क्यूंकि सरकार अपने राजस्व भण्डार को भरने के लिए ऐसा करती है और ऐसा करने से वस्तु की लागत में वृद्धि हो जाती है, जो की महंगाई का एक कारक है।
- जनसँख्या वृद्धि-> देश की जनसँख्या में वृद्धि होने से वस्तु और सेवा की मांग मर भी वृद्धि होती है और उत्पादन स्थिर होता है, जिससे महंगाई सामने निकल कर आती है।
- भ्रस्टाचार-> भ्रस्टाचार महंगाई का एक प्रमुख कारक है क्यूंकि इससे वस्तु की और साथ ही साथ सेवा के मूल्यों में भी वृद्धि होती है और यह हमे देश में अक्सर कोई आपातकाल की स्तिथि में देखने को मिलती है, जैसे अभी हाल में कोरोना महामारी के वक़्त भ्रस्टाचार के कारण महंगाई आसमान छू रही थी।
- जमाखोरी-> यह भी वस्तु की सामान्य मूल्य में होने वाली बढ़ोतरी का एक प्रमुख कारण है क्यूंकि जब अर्थव्यवस्था में किसी वस्तु की मांग में वृद्धि होती है और और समाज में किसी व्यक्ति के द्वारा उस वस्तु को बड़ी मात्रा में इकट्ठा कर उसे अपने मनचाहे मूल्य पर बेचता है तब ऐसी स्तिथि उत्पन्न होति है।
- युद्ध के प्रभाव-> अगर किन्ही दो देशों के बिच किसी भी प्रकार का युद्ध हो रहा हो तो उसका प्रभाव पुरे विश्व पर होता है और खास तौर से व्यापर पर क्यूंकि अगर युद्ध करने वाले देश किसी वस्तु या सामग्री के निर्यातक हैं तो उस वस्तु का मूल्य हर देश में बढ़ जायेगा, जिससे महंगाई अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ जाएगी।
भारत में महंगाई के इन कारणों से बहुत से लोग अपरिचित हैं, सभी आम जनता बढ़ती महंगाई को लेकर सरकार को दोषी समझती है हालाँकि सरकार की भी भूमिका महंगाई को नियंत्रण करने में होती है लेकिन सरकार भी सामान्य स्तर तक इसे नियंत्रित कर सकती है क्यूंकि वैश्विक बाजार का असर भी घरेलु बाजार और देश की अर्थव्यवस्था पर होता है।
भारत में महंगाई का प्रभाव।
भारत में महंगाई का प्रभाव हमे देश के सभी स्तर और क्षेत्र में देखने को मिल जाएगी लेकिन महंगाई से सम्बंधित देश की अर्थव्यवस्था में नाकारात्मक प्रभाव के साथ-साथ सकारात्मक प्रभाव भी शामिल है, जैसे :-
नाकारात्मक प्रभाव।
- घरेलु मुद्रा का मूल्य वैश्विक स्तर पर घटता है, जिससे हमारे निर्यात तो बढ़ते हैं और निर्यातकों को फायदा भी होता है लेकिन आयातकों पर भोझ बढ़ जाता है।
- कर्जदारों की नुक्सान होने की संभावना बढ़ जाती है और महंगाई के दौर में उन्हें अपना मूल राशि प्राप्त हो जाये बस यही आशा होती है।
- महंगाई या मुद्रास्फीति, योजना प्रक्रिया को बुरी तरह प्रभावित कर देता है, सरकार की बनाई नीतियां समय पर पूरी नहीं हो पाती हैं और नीतियों पर सरकार को लक्ष्यित किये धन राशि से अधिक खर्च करना पड़ जाता है।
- अर्थव्यवस्था में व्यापारियों और उद्यमियों को महंगाई से लाभ बढ़ता है और दूसरी तरफ निश्चित आय वाले लोग , पेंशनर्स अपने आय में कमी देखतें हैं, जिससे आय वितरण में असमता बढ़ती है।
- देश की आर्थिक विकास धीमी पड़ जाती है और लोग अर्थव्यवस्था में निवेश करना पसंद नहीं करतें हैं। अचानक और अप्रत्याशी महंगाई अर्थव्यवस्था में अस्थिरता पैदा कर देती है।
सकारात्मक प्रभाव।
- महंगाई से उत्पादकों को लाभ होता है क्यूंकि घरेलु मुद्रा के मूल्य में गिरावट होने के कारण देश के निर्यात में वृद्धि होती है।
- देश की निर्यात मांग की माल में वृद्धि होने के कारण उत्पादकों के लाभ में वृद्धि हो जाती है और इससे देश में रोजगार के अवसर भी बढ़ते हैं।
- सरकार के द्वारा महंगाई के वक़्त निवेशकों और उद्यमियों को उत्पादक गतिविधियों में निवेश करने के लिए ‘अधिक निवेश वापसी’ का प्रोत्साहन दिया जाता है, जिससे वह भविष्य में उच्च वापसी का लाभ प्राप्त करतें हैं।
- सरकार के राजस्व कर में वृद्धि होती है क्यूंकि महंगाई के कारण जनता अप्रत्यक्ष कर का भुगतान अधिक करती है।
- वस्तु की मांग में वृद्धि होने से महंगाई होती है लेकिन इससे यह भी पता चलता है की हमारे देश में लोगों के जीवन स्तर में सुधार हो रही है, जो की एक अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत होतें हैं।
- महंगाई दर में वृद्धि होने से कर्मचारियों और श्रमिक वर्ग के वेतन और महंगाई भत्ते में भी बढ़ोतरी होती है।
भारत में महंगाई की समस्या से निवारण के उपाय।
भारत में बढ़ती महंगाई से निपटने के लिए सरकार और आम जनता दोनों मिलकर काम कर सकती ही, जिसके लिए:-
- घरेलु स्तर पर पति-पत्नी दोनों को मिल कर कार्य करने की और आय के स्त्रोत को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- महंगाई के वक़्त हमे अपने इच्छाओं को नियंत्रित रखकर आवश्यकताओं की चीजों में खर्च करना चाहिए और बचत करने में ध्यान देना चाहिए।
- सरकार को उत्पादन के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रदान करने चाहिए, जिससे अर्थव्यवस्था में नौकरी के अवसर उत्पन्न हो सकें।
- समानो की जमाखोरी और कालाबाज़ारी करने वाले लोगों के खिलाफ सरकार को कड़े दंड के प्रावधान बनाने चाहिए जिससे समाज में कालाबाज़ारी करने वालों तक यह सन्देश पहुंचे की ऐसा करने पर उन्हें दंड का भागी बनना पड़ सकता है।
- सरकार आयात पर नियंत्रण करके या आयात को कम करके महंगाई को नियंत्रित कर सकती है और जो सामान दूसरे देशों से आती है उसके उत्पादन को अपने देश में ही बढ़ावा दे।
- सरकार अप्रत्यक्ष कर में कटौती करके आम जनता के ऊपर से महंगी क बोझ कम कर सकती है, जिससे वस्तुओं के बढ़ते मूल्य को नियंत्रित किया जा सके।
भारत में महंगाई दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रह है और यह देश के विकास को मंदी की ओर अग्रसर करता है और साथ ही साथ जीवन व्यापन की लागत में भी वृद्धि करता है इसलिए सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक को मिलकर महंगाई से निपटने के लिए एक संतुलित उपाय की खोज कर उसे अर्थव्यवस्था में कार्यान्वयन करे, जिससे गरीब लोगों के साथ मध्यम वर्गीय लोगों के बारे में भी उपाय निहित हो।
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