भारत में स्वयं सहायता समूह का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है और इसकी सकारात्मकता देश के विभिन्न क्षेत्रों में अपना प्रभाव स्थापित कर रही है। ‘स्वयं सहायता समूह (Swayam Sahayata Samuh)’ समाज की एक ऐसी व्यवस्था बनती जा रही है, जो की बैंकिंग व्यवस्था के बाद गिनी जाएगी, जिसका समर्थन सरकार के द्वारा भी किया जा रहा है, यह ख़ास तौर पर महिलाओं को सशक्त, गरीबी को कम करने और स्व-रोज़गार को प्रोत्साहित करने के लिए स्वयं सहायता के विचार पर भरोसा करती हैं।
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स्वयं सहायता समूह क्या है?
Swayam Sahayata Samuh एक प्रकार की अनौपचारिक ढंग से बनाई गई 10 से 20 लोग या उससे अधिक लोगों का एक संगठन होता है। यह समूह किसी और पर आश्रित ना होकर स्वयं के सदस्यों के जरिये एक दूसरे की सामाजिक अथवा आर्थिक सहायता करतें है। स्वयं सहायता समूह आमतौर पर एक दूसरे को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए बनाये जातें हैं साथ ही किसी भी प्रकार की बुरी परिस्तिथियों में संगठन के लोग एक दूसरे को प्रोत्साहित कर उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करतें हैं।
Swayam Sahayata Samuh समाज के अन्य कार्यों के प्रति भी अपनी सक्रिय भूमिका निभाता है , जैसे; दहेज, बाल तस्करी, बाल श्रम, नर्सिंग होम, शिक्षा और गरीबी उन्मूलन आदि। स्वयं सहायता समूह महिलाओं के लिए अधिक प्रशंशनीय है और महिलाओं की सबसे अधिक भागीदारी इसमें देखि गयी है क्यूंकि यह महिला को सशक्त, स्वरोजगार का अवसर साथ ही अपने जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
Swayam Sahayata Samuh में प्रत्येक सदस्यों को प्रति माह एक तय की गयी धनराशि व्यवस्थित रूप से जमा करनी पड़ती है और यही जमा की गयी धनराशि यदि कोई भी सदस्य को किसी भी कार्य के लिए जरुरत पड़ती है तो वह इसका उपयोग सबकी सहमति से कर सकता है साथ ही जरुरत पूरा होने पर वह धनराशि उस सदस्य को कम ब्याज दर या सुण्य ब्याज दर पर वापस करना होता है।
Swayam Sahayata Samuh अपने जमा किये गए धनराशि को बैंक में जमा कर अपने संगठन के नाम पर बचत खाता भी खुलवा सकती है, जिसके जरिये बैंक से भी उस संगठन को ब्याज के रूप में कुछ लाभ प्राप्त होगा और सरकार से भी।
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स्वयं सहायता समूह का महत्व।
Swayam Sahayata Samuh के महत्व को हम समाज और देश में विभिन्न रूपों अथवा क्षेत्रों में देख सकतें हैं , जैसे:-
- लैंगिक समानता-> स्वयं सहायता समूह एक प्रकार से आश्रित महिलाओं को बल प्रदान करती है अथवा स्वयं पर विश्वास करना सिखलाती है, इसके जरिये महिलाएँ समाज में आगे निकल कर अपनी एक पहचान बना सकती हैं, जिससे समाज की पित्तृसत्तात्मक सोच को बदल कर लैंगिक असमानता को खत्म किया जा सकता है, जिससे महिलाओं का आत्मा सम्मान और सुदृढ़ बनता है।
- महिला सशक्तिकरण-> स्वयं सहायता समूह में सभी की मनोस्तिथि एक जैसी होती है, सभी एक ही समस्या के साथ एकजुट होतें हैं, इसलिए संगठन में किसी भी प्रकार की समस्या को सब मिलकर हल करतें हैं, हमारे समाज में महिला स्वयं सहायता समूह की संख्या सबसे अधिक है। इसलिए, महिलाओं के प्रति समाज में आवाज़ उठाने वाले बहुत कम हैं, जिसके परिणामस्वरूप स्वयं सहायता समूह महिलाओं की आवाज़ बनकर उन्हें सशक्त बनाने का काम करती है।
- हाशिये पर पड़े वर्ग के लिये आवाज़-> हमारे देश में बहुत से ऐसे वर्ग और समुदाय के लोग हैं, जो की दबे-कुचले, हाशिये वर्ग और पिछड़ी जाती से निकल कर आतें हैं, उनपर होने वाले अत्याचारों अथवा उनकी मौन के लिए आवाज़ बनने का काम स्वयं सहायता संगठनों द्वारा किया जाता है, जिसके माध्यम से उन्हें सामाजिक न्याय मिलती है।
- अर्थव्यवस्था में वित्तीय समावेशन-> सरकार द्वारा प्राथमिकता प्राप्त स्वयं सहायता समूह को ऋण देने और रिटर्न का आश्वासन बैंकों को ऋण देने के लिए प्रोत्साहन देता है साथ ही स्वयं सहायता समूह द्वारा जमा किये गए धनराशि से बैंक भी लाभ प्राप्त करती है। इस प्रकार की ऋण व्यवस्था समाज में पारम्परिक साहूकारों से ऋण लेने अथवा गैर संस्थागत स्त्रोतों पर निर्भरता कम कर दी है।
- आपातकाल सहायता-> स्वयं सहायता समूह के अंतर्गत कोई भी सदस्य को किसी भी प्रकार की आपातकाल समस्या में बिना किसी प्रक्रिया, बिना किसी का अनुसरण किये उसे वित्तीय सहायता प्रदान की जा सकती है।
- रोजगार उत्पति का स्त्रोत-> स्वयं सहायता समूह अपने सदस्यों को रोजगार करने के अवसर प्रदान करती है साथ ही प्रोत्साहन के रूप में उन्हें वित्तीय मदद भी करती है।इस कोशिश के जरिये आज देश में कितने स्टार्टअप्स सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग के रूप में आगे बढ़ रहें हैं।
Swayam Sahayata Samuh एक समाज सुधारक का कार्य करने के साथ-साथ देश को एक नयी पहचान भी दिलाने का काम कर रही है।
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स्वयं सहायता समूह के समक्ष चुनौतियाँ।
Swayam Sahayata Samuh के समक्ष सामाजिक, राजनितिक, आर्थिक सभी प्रकार की चुनौतियाँ हैं, जिसके अंतर्गत उन्हें आगे बढ़ने में बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- अन्य सामाजिक संगठनों द्वारा दबाव-> उन्हें बहुत से ऐसे संगठनों का सामना करना पड़ता है जो उनके खिलाफ खड़े होतें हैं साथ ही बहुत से कार्य में समाज के लोगों द्वारा ही उनका साथ नहीं दिया जाता है, जैसे; दहेज़ प्रथा, पितृसत्तात्मक मानसिकता।
- कमजोर वित्तीय प्रबंधन-> कई स्वयं सहायता समूह के पास वित्तीय संसाधन का अभाव होने के कारण उनकी वास्तविक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती है क्यूंकि सरकार के द्वारा समय पर वित्तीय सहयोग ना प्रदान करना, सदस्यों के मध्य वित्तीय व्यवस्था का अभाव।
- कौशल के उन्नयन का अभाव-> कितने ही ऐसे स्वयं सहायता समूह है जिनके पास प्रौद्योगिकी और पद्धति के नए तकनीक के अभाव के कारण उस संगठन की प्रक्रिया धीमी हो गयी है और साथ ही नए प्रौधौगिकी तंत्रो के उपयोग के लिए उनके पास पर्याप्त कौशल नहीं है।
- राजनितिक दबाव-> बहुत से स्वयं सहायता संगठन ऐसे होतें हैं जिनपर राजनितिक दबाव होता है, जिसके कारण वह अपनी निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने में असमर्थ हो जातें हैं। किसी भी मुद्दे को केवल सरकार तक उसकी आवाज़ पहुंचाना एस एच जी का कार्य होता है लेकिन उसे राजनितिक मुद्दा दलों द्वारा बना दिया जाता है, जिसका अप्रत्यक्ष दबाव स्वयं सहायता समूह पर आता है।
- स्वयं सहायता समूह में एकता एवं स्थिरता की कमी-> अक्सर इन समूहों में ऐसा देखा गया है की दीर्घकालिक अवस्था में यह समूह का अस्तित्व खत्म हो जाता है क्यूंकि आपसी मतभेद और मनमुटाव के कारण ऐसी अवस्था उत्पन्न होती है, सदस्यों में एकता की कमी भी देखने को मिलती है। इससे समूह का पतन हो जाता है या समूह धीरे-धीरे अकार्यरत हो जाता है।
Swayam Sahayata Samuh की आत्मनिर्भरता एवं सशक्ता को और अधिक सुदृढ़ बनाने के जरुरत है। नेताओं को केवल निजी फायदे, उन्नति या सत्ता में कायम रहने के लिए कार्य नहीं करना चाहिए बल्कि जन कल्याण के फायदे के लिए जो भी सामने निकलकर आये उसके साथ मिलकर कार्य करना चाहिए साथ ही स्वयं सहायता समूह को जरूरत पड़ने पर बैक सपोर्ट कर उनकी स्थिरता सुनिश्चित करनी चाहिए।