राधे-राधे, आदाब, सत्यश्रीकाल, हैलो मेरे प्यारे दोस्तों तो कैसे हो आप सब? “समाज में समलैंगिकता (Samaj mein Samlaingikta)” हमारे देश का ऐसा मामला है जिसे देश के मीडिया चैनलों और न्यायालयों द्वारा चर्चा तो किया जा रहा है लेकिन हमारा समाज इसकी चर्चा नहीं कर रहा है, जबकि यह भी हमारे समाज का ही एक अंश है, तो मैं समाज के इस मामले पर प्रकाश डालना चाहूंगा जिसके बारे में कोई बात नहीं करना चाहता, जिसे समाज में लोगों के द्वारा अलग दृष्टि से देखा जाता है, जिसके लिए समाज की धारणा अलग है, जिसे हमारे समाज में स्वीकार ही नहीं किया जाता है और भी ऐसी बहुत सी सामाजिक कुरीतियां हैं जिसका सामना समलैंगिकों और ट्रांसजेंडर्स को इस समाज में करना पड़ता है।
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समलैंगिकता क्या है?
Samlaingikta एक ही लिंग या लिंग के सदस्यों के बीच रोमांटिक आकर्षण, यौन आकर्षण या यौन व्यवहार है। एक यौन अभिविन्यास के रूप में, Samlaingikta एक ही लिंग के लोगों के लिए “भावनात्मक, रोमांटिक और यौन आकर्षण का एक स्थायी पैटर्न” है। यह एक ऐसा व्यवहार होता है जिसमे एक समलैंगिक अपने समान लिंग वाले व्यक्ति का चयन करके उनको अपने जीवन साथी के रूप में स्वीकार करके दोनों अपना जीवन व्यतीत करना पसंद करते हैं।
इस संसार में जैसे ईश्वर ने महिला और पुरुष को बनाया है ठीक वैसे ही महिला और पुरुष के रूप में समलैंगिक और ट्रांसजेंडर्स को भी समाज में स्थान दिया है, अंतर बस इतना होता है की कुछ जीन्स में बदलाव होने के कारण उनके शरीर मे बदलाव आता है, उनकी भावनाओ में भी बदलाव देखने मिलता है (अगर वह पुरुष है तो महिला जैसे भाव और महिला है तो पुरुष जैसे भाव) लेकिन इस बदलाव में उनकी क्या गलती होती है वह कोई जान-बुझ कर ऐसा तो नहीं करते हैं बल्कि कुछ ऐसे आनुवंशिकी कारक(genetic factors) होतें हैं जो की प्राकृतिक रूप से उनके अंदर होतें हैं, जिसके कारण हमे उनका स्वभाव आम लोगों की तुलना में अलग देखने को मिलता है।
समाज में अधिकतर लोगों की सोच समलैंगिकों और ट्रांसजेंडर्स के प्रति हिन् भावना वाली होती है, जिससे वह लोग अपने आप को समाज से नहीं जोड़ पातें हैं और इसी कारण वस् समाज में उनका अलग वर्ग देखने को मिलता है, जहाँ वह अपने जीवन को आगे व्यतीत करने के लिए अपने जैसे समलैंगिक जीवन साथी का चयन कर उसके साथ सम्बन्ध बनाते हैं, जिसमे दोनी की रजामंदी होती है।
ऐसा बिलकुल नहीं है की Samlaingikta हमारे समाज में अभी देखने को मिल रहा है बल्कि यह पौराणिक काल में भी था लेकिन इसे कभी समाज में उजागर नहीं होने दिया गया, समाज इस वर्ग को अपने से अलग रखती थी, इस वर्ग को समाज के बहुत से अधिकारों से वंचित रखा गया लेकिन अब इस samlaingikta और ट्रांसजेंडर्स के मामले को उजागर किया जा रहा है, उनके भी अधिकारों, गोपनीयता और समबन्ध के बारे में न्यायालय चर्चा कर रही है।
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समलैंगिकता और ट्रांसजेंडर्स के लिए सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला है?
हमारे देश में संविधान को सबसे उच्च दर्जा प्राप्त है, और लोकतान्त्रिक देश में संविधान अति महत्वपूर्ण होता है, जहाँ हर जाती, धर्म, समुदाय, वर्ग से बढ़ कर देश का संविधान होता है।
- जैसा की हमारे संविधान के ‘अनुच्छेद-14 और अनुच्छेद-15′ यह बताता है की “देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार होना चाहिए” और “धर्म, मूलवंश, जाती, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेद-भाव नहीं होना चाहिए”, तो संविधान के इन्ही अनुच्छेदों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में ‘राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ‘ मामले के अंतर्गत यह ऐतिहासिक निर्णय लिया की ‘ट्रांसजेंडर्स को अबसे तीसरे जेंडर्स की श्रेणी में रखा जायेगा‘ और संविधान के मौलिक अधिकार उनपर समान रूप से लागु होंगे।
इसके अलावा अदालत ने यह भी कहा की ट्रांसजेंडर्स को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के रूप में माने जाने के कारण उन्हें शैक्षाणिक संस्थानों और नौकरियों के प्रवेश में आरक्षण दिया जायेगा।
- वर्ष 2017 में “के.एस पुत्तास्वामी” मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गोपनीयता के अधिकार को अनुच्छेद-21 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार घोसित कर दिया था, तो इसी अनुच्छेद-21 को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में “नवतेज सिंह जोहर बनाम भारत संघ” मामले के अंतर्गत समलैंगिक यौन सम्बन्ध सहित वयस्कों के बिच सभी सहमति से सेक्स को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया और भारतीय दंड संहिता की “धारा 377” (जो की समलैंगिक यौन सम्बन्ध और वयस्कों के बिच सम्बन्ध को अपराध की श्रेणी में रखता था) को सर्वसम्मति से असंवैधानिक घोसित कर दिया गया, जहाँ अब एक ही लिंग के वयस्कों के बिच सहमति से यौन आचरण अपराधीकरण नहीं होगा।
इस ऐतिहासिक निर्णय को ‘एल जी बी टी क्यू” (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर्स, क्वीर) समुदाय के द्वारा बड़े पैमाने पर स्वागत किया गया। समलैंगिक सम्बन्ध को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का मतलब की उसकी गोपनीयता को चोट ना पहुंचे लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा ऐसा करने के बाद जब “समलैंगिक विवाह” को भारत में वैध बनाने के लिए कहा गया तब सरकार के द्वारा हस्तक्षेप करके यह कहा गया की ‘विवाह केवल दो व्यक्तियों के बिच का मामला नहीं बल्कि एक जैविक पुरुष और एक जैविक महिला के बिच एक गंभीर संस्था है, जो की भविष्य में एक नए समाज का गठन करती है’।
भारत सरकार समलैंगिक विवाह का विरोध क्यों करती है?
हालाँकि हमारे भारतीय समाज में अक्सर यह देखने को मिलता है की सम्बन्ध हमेशा एक जैविक पुरुष और एक जैविक महिला के बिच होता है और सरकार भी इसलिए इसका विरोध कर रही है की हमारे “भारतीय परिवार इकाई अवधारणा” में जीवन साथी के रूप में एक समान लिंग वाले व्यक्ति के साथ सम्बन्ध तुलनीय नहीं है।
- सरकार ने यह भी तर्क दिया की विवाह दो निजी व्यक्तियों के बिच का सम्बन्ध होता है, इसे केवल एक व्यक्ति की गोपनीयता के क्षेत्र में प्रत्यारोपित नहीं किया जा सकता है। एक रिश्ते को सार्वजनिक रूप से मान्यता दी जाती है लेकिन हमारे भारतीय परिवार इकाई अवधारणा में समलैंगिक विवाह को स्वीकार ही नहीं किया करते हैं और विवाह या तो व्यक्तिगत कानून या संहिताबद्ध कानून के तहत होता है अर्थात ‘हिन्दू विवाह अधिनियम 1955, ईसाई विवाह अधिनियम 1872, पारसी विवाह और तलाक अधिनियम 1936, विशेष विवाह अधिनियम 1954, विदेशी विवाह अधिनियम 1969 इन सबों में भी समलैंगिक विवाह को मान्यता प्राप्त नहीं है’।
- सरकार ने यह भी कहा की नवतेज सिंह जोहर के मामले में गोपनीयता को ध्यान में रख कर सुप्रीम कोर्ट का फैसला की samlaingikta अपराध नहीं है इसका यह निष्कर्ष नहीं की ‘एक ही लिंग के दो व्यक्तियों द्वारा शादी करने के अधिकार की प्रकृति में मौलिक अधिकार को शामिल करने के लिए निजता का विस्तार नहीं करता है’।
- केंद्र सरकार ने यह भी कहा की एक ही लिंग के दो व्यक्तियों के बिच विवाह किसी भी असंबन्ध व्यक्तिगत कानून या किसी संहिताबद्ध वैधानिक में ना तो मान्यता प्राप्त है और न ही स्वीकार किया जाता है।
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भारत में समलैंगिकता को अपराध से मुक्त करने का प्रभाव।
Bharat mein samlaingikta को अपराध मुक्त करने से अब ऐसे बहुत से बदलाव समाज में देखने को मिल रहें हैं, जैसे:-
- भारत में समलैंगिक अल्पसंख्यक अब अपने सम्मान के साथ अपनी ज़िन्दगी जी सकतें हैं और अपने सम्बन्ध को समाज के सामने उजागर कर सकतें हैं।
- स्वास्थय और शिक्षा के क्षेत्र तक पहुंचने में उनके साथ होने वाले भेद-भाव भी अब बंद हो जायेंगे।
- एल जी बी टी क्यू समुदाय भी खुलकर अब अपने अधिकारों की मांग कर सकती है और उनके मौलिक अधिकार का हनन होने पे वह कोर्ट भी जाने के लिए सक्षम है।
- समलैंगिक अल्पसंख्यक के साथ समाज में होने वाली भेद-भाव और उत्पीड़न पे भी नियंत्रण देखने को मिलेगा।
- समलैंगिक भी अब अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर अपने देश को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दे सकतें हैं।
- यह निर्णय एल जी बी टी क्यू समुदाय को समलैंगिक विवाह कानून, साझेदारी बनाने का अधिकार, विरासत, रोजगार समानता, लिंग पहचान आधारित भेद-भाव से सुरक्षा जैसे अधिक प्रगतिशील कानूनों की मांग करने के लिए प्रेरित करेगा।
हमे अपने देश और समाज की सोच को बदलना होगा, समय की मांग को पूरा करते हुए समय के साथ चलना होगा, जिससे समाज में सबकी भलाई हो सके ऐसा निष्कर्ष निकालना होगा। आज हमारे देश में कितने ही ऐसे एल जी बी टी क्यू समुदाय के उदारहण है जो समलैंगिक होते हुए भी समाज में अपनी गरिमा बनाई है (नवतेज सिंह जोहर, गौरी सावंत, दुती चंद, हरीश अय्यर, अन्वेष साहू)
समाज के लोगों में यह जागरूकता फैलनी होगी की जिस प्रकार से महिला और पुरुष समाज के अंश होतें हैं, ठीक उसी प्रकार से हमारे समाज में एल जी बी टी क्यू समुदाय भी समाज का ही अंश है और ऐसा उनके दवरा जान-भुझ कर तो किया नहीं जाता है, यह प्राकृतिक रूप से इनमे होता है, इनमे भी वह सारी क्षमताएँ होती हैं जो की एक आम लोगों में देखने को मिलती है लेकिन कहीं न कहीं सामाजिक कुरीतियों के कारण यह पीछे रह जातें हैं।
“समलैंगिकों की भी भावना है, प्यार है, उनकी भी इस समाज में समान अधिकार है, वह भी हैं हमारे ही समाज के अंश, आओ उन्हें भी जोड़े हम अपने संग”
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Well explained about the another section of Society…thankq for giving a clear concept abiut LGBT .