राधे-राधे, आदाब, सत्यश्रीअकाल, हैलो मेरे प्यारे दोस्तों, आज हम सब अपने देश के आज़ादी की 75वीं वर्षगाँठ मनाने जा रहें हैं, जिस स्वर्णिम अवसर को पूरा देश ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के रूप में मना रहा है लेकिन आज़ादी के 75 साल के बाद भी हम अपने देश में पिछड़े वर्ग और दलित समाज को समान अवसर नहीं प्रदान कर पाएं हैं, जिसके कारण आज भी हमे पिछड़े वर्ग और दलित समाज को बराबरी का हक़ प्रदान करने के लिए “भारत में आरक्षण (Reservation in India)” जैसी बैसाखी का उपयोग करतें हैं।
यहाँ मैंने आरक्षण को बैसाखी इसलिए कहा है क्यूंकि जिस प्रकार एक विकलांग व्यक्ति बिना बैसाखी के नहीं चल सकता है ठीक उसी प्रकार आरक्षण भी समाज के लोगों की आदत बन चुकी है, जिसके बिना विशेषाधिकार वाले अपनी जाती के टैग पर अपनी ज़िन्दगी में आगे नहीं बढ़ सकतें हैं क्यूंकि वह विशेषाधिकार प्राप्त करने के आदि बन चुके हैं।
अगर राजनेता चाहतें तो यह आरक्षण का मुद्दा बहुत पहले ही समाप्त कर सकतें थे लेकिन राजनितिक पार्टियों के द्वारा इसे अपने फायदे और सत्ता हासिल करने के लिए ज्यादा उपयोग किया जाता है। आज़ादी के वक़्त देश में पिछड़ों को समृद्ध बनाने और समान अवसर प्रदान करने के लिए आरक्षण का प्रावधान बनाया गया क्यूंकि समाज में भेद-भाव को कम किया जा सके और उस वक़्त आरक्षण सिमा 50% से कम रखी गयी थी, वह भी केवल अगले 10 सालों के लिए, जिससे पिछड़े वर्ग को समाज में अपनी स्तिथि बेहतर बनाने का मौका मिल सके, वह भी समाज में अपनी हिस्सेदारी कायम कर सके और अपनी आर्थिक स्तिथि में बदलाव कर सके।
आरक्षण प्रदान करने से समाज में पिछड़े वर्गों के लोगों में बदलाव तो देखने को मिला लेकिन यही आरक्षण आज़ादी के 75 साल के बाद भी देश में एक अहम् मुद्दा बना हुआ है, जो की खत्म होने के बजाये बढ़ कर 50% से 59% हो गया है।
आरक्षण का प्रावधान केवल समाज में गरीबी और पिछड़े वर्ग के लोगों को समानता प्रदान करने के लिए लाया गया था ताकि असमानता और भेद-भाव को समाप्त कर इस आरक्षण को खत्म किया जा सके लेकिन सरकारें और लोगों ने ऐसा होने नहीं दिया।
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*आरक्षण क्या है?
आरक्षण (Reservation) किसी विशेष लिंग, वर्ग, समुदाय को प्रदान किया गया सहयोग है ताकि वह आगे बढ़ सके, औरों के साथ अपनी बराबरी कर सके जिससे समाज में असमानता, भेद-भाव को कम किया जा सके और एक प्रगतिशील समाज की स्थापना की जा सके।
भारत देश में आरक्षण की शुरुवात सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को समृद्ध बनाने तथा समानता प्रदान करने के लिए किया गया था लेकिन आज के समय में आरक्षण एक बहुत बड़ा राजनितिक मुद्दा बन गया है, जहाँ राजनितिक पार्टियों के द्वारा आरक्षण को वोट प्राप्ति के उदेश्य से उपयोग किया जाता है। वर्त्तमान में राजनीति के कारण आरक्षण का मूल उद्देश्य समय के साथ समाप्त होता जा रहा है।
*भारतीय आरक्षण का इतिहास।
- भारत में आरक्षण का प्रावधान आज़ादी के पहले से ही था, जब भारत में विख्यात समाज सुधारक ‘महात्मा ज्योतिराव फुले’ ने सभी भारतियों के लिए नि-शुल्क और अनिवार्य शिक्षा तथा अंग्रेज़ों के सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग की, तब 1882 में हंटर आयोग का गठन किया गया।
- आगे चल कर 1933 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री रामसे मैकडोनाल्ड ने ‘सांप्रदायिक पुरुष्कार’ प्रस्तुत किया, जो की मुसलमानों, सिखों, भारतीय ईसाईयों, एंग्लो इंडियन और दलितों’ को अलग निर्वाचक मंडल प्रदान करता था।
- फिर, 1935 में भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के बी.आर.अम्बेडकर ने एक प्रस्ताव महात्मा गाँधी के साथ पास किया, जो पूना समझौता कहलाता है, जिसमे दलित वर्गों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग की गयी थी।
- हमारा देश का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया, जहाँ सभी लोगों को सामान अवसर प्रदान किया गया और सामाजिक तथा शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को या अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिए आरक्षण प्रदान की गयी, इसके अलावा 10 सालों के लिए उनके उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन क्षेत्र आवंटित किये गए।
- सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्तिथि का मूल्यांकन करने के लिए 1953 में कालेलकर आयोग का गठन किया गया जिसमे अनुसूचित जातियों और जनजातियों को स्वीकार करके अन्य पिछड़ी जातियों को अस्वीकार कर दिया गया।
- फिर, 1979 में बी.पि मंडल आयोग का गठन किया गया, जिसमे परिभाषित किया गया की भारत में ‘अन्य पिछड़ी जाती’ के वर्गों के लिए 27% नौकरियाँ आरक्षित होंगी।
- 2019 में, संविधान में 103वां संसोधन करके ‘आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों’ के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10% आरक्षण प्रदान किया गया, जो की 50% आरक्षण सिमा से अधिक है।
*भारत में आरक्षण के प्रकार।
हमारे भारत में प्रमुख चार वर्गों को आरक्षण का प्रावधान दिया गया है ‘अनुसूचित जाती(15%), अनुसूचित जनजाति(7.5%), अन्य पिछड़ा वर्ग(27%) और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग(10%)’ लेकिन इसके अलावा भी अन्य आधार हैं जहाँ सरकार के द्वारा आरक्षण प्रदान किये जातें हैं।
क) जातिगत आधार-> केंद्र सरकार और रज्य सरकार के द्वारा विभिन्न अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ी जातियों के लिए सीटें आरक्षित की जाती हैं लेकिन आज भी देश में बहुत सी ऐसी जातियां हैं, जो आरक्षण की मांग करती हैं क्यूंकि वह अपने आप को अल्पसंख्यक बतातें हैं या फिर अन्य पिछड़ी जाती बातातें हैं।
जैसे:- महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लोग, हरियाणा में जाट समुदाय के लोग।
ख) लिंग आधारित-> हमारे देश में महिलाओं को ग्राम पंचायत और नगर निगम के चुनावों में 33% आरक्षण प्राप्त है और शिक्षा में तथा नौकरियों में भी महिलाओं को आरक्षण प्राप्त है।
अब भारत में ट्रांसजेंडर्स को भी आरक्षण का लाभ प्रदान किया गया है, जिससे भारत में सभी नागरिकों के लिए समान अवसर का निर्माण हो सके।
ग) धर्म आधरित-> जैसा की हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष देश है तो यहाँ केंद्र सरकार धर्म के आधार पर आरक्षण प्रदान नहीं करती, लेकिन बहुत से ऐसे समुदाय हैं जिन्हे केंद्र सरकार ने पिछड़े समुदायों में सूचीबद्ध कर रखा है, जिससे वह आरक्षण के हक़दार हैं।
बहुत सी राज्य सरकारें धर्म पर आधारित आरक्षण प्रदान करतें हैं, जैसे तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश।
घ) अपंग व्यक्ति आधारित-> भारत में आरक्षण का प्रावधान अपंग व्यक्तियों को भी प्रदान की जाती है, उनके समृद्ध और सुखमय जीवन के लिए सरकार उन्हें भी समाज में समान अवसर देती है। अपंग व्यक्तियों को भी शैक्षणिक संस्थानों, नौकरियों और राजनितिक पदों में भी आरक्षण प्राप्त है।
ङ्ग) आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग-> भारत की केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 15(6) और 16(6) में संशोधन करके संविधान (103वां सीएए) विधेयक, 2019 पेश किया, जिसमें पूर्ववर्ती अनारक्षित श्रेणी के ‘आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग’ के छात्रों के लिए और सामान्य वर्ग के छात्र के लिए 10% अतिरिक्त कोटा प्रदान किया गया था।
च) अन्य मानदंड->
- खिलाडियों के लिए आरक्षण।
- स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों के लिए आरक्षण।
- भारतीय सैनिकों के लिए आरक्षण।
- वरिष्ठ नागरिकों और विकलांगो के लिए आरक्षण।
- सरकारी नौकरशाहों के लिए आरक्षण।
*भारत में आरक्षण के फायदे और नुक्सान।
बीते हुए ज़माने में आरक्षण भारत में केवल इसी उद्देश्य के साथ लाया गया था की समाज के गरीब पिछड़े और बटे हुए लोगों को समान अवसर दिया जा सके, समाज में किसी प्रकार का भेद-भाव देखने को नहीं मिले लेकिन किसे पता था की हम एक दिन आरक्षण के नुक्सान के बारे में भी चर्चा करेंगे।
आरक्षण के फायदे
- समाज में समान अवसर-> आरक्षण प्रदान करने से कितने पिछड़े वर्गों को समाज में होने वाली सभी सार्वजनिक संस्थानों, उच्च पदों और सेवाओं तथा शैक्षणिक संस्थानों में समान अवसर प्राप्त करने में मदद की।
- समान प्रतिनिधित्व-> इसने समाज में हर व्यक्ति को फिर चाहे वह किसी भी जाती, धर्म, लिंग से हो सब को अपने देश और समाज को प्रतिनिधित्व करने का मौका देता है।
- समाज में आर्थिक संतुलन-> इससे समाज में पिछड़े वर्गों की जीवन स्तर में सुधार हुआ है और आर्थिक स्तिथि बेहतर होने से समाज में पिछड़े वर्ग के प्रति दुर्व्यवहार और अन्याय कम हुआ है।
- अत्याचार कम करता है-> आरक्षण से समाज में अनुसूचित जाती, अनुसूचित जनजाति, महिलाओं के प्रति अत्याचार में कमी देखने को मिलती है क्यूंकि वह भी अब साक्षर और सशक्त बन रहें हैं।
- मेरिटोक्रेसी बनाम समानता-> योग्यता आवश्यक है, हालाँकि समानता के बिना इसका कोई अर्थ नहीं होगा। लोगों को एक ही स्तर पर लाया जाना चाहिए, चाहे वह किसी भी वर्ग को ऊँचा करे या दूसरे को कम करे, योग्यता की परवाह किये बिना। इस प्रकार जातिआधारित आरक्षण भी उच्च और निम्न जातियों के बिच की खाई को कम करता है।
आरक्षण के नुक्सान
- राजनितिक चुनाव का प्रचलित विषय-> इसे राजनितिक पार्टियां अपने चुनाव का मुद्दा बनाकर उपयोग करतें हैं, जिससे लुभावनवाद में बढ़ोतरी देखने को मिलती है, जो की एक निष्पक्ष चुनाव को बुरी तरह प्रभावित करता है।
- जातिवाद को बढ़ावा देना-> यह जाती आधारित समाज की धारणा को खत्म करने के बजाये उसका प्रचार-प्रसार करता है।
- मेरिटोक्रेसी का विरोध-> इसके परिणामस्वरूप अयोग्य उमीदवार को अवसर मिलने पर योग्य उमीदवार की गुणवत्ता में गिरावट आती है।
- विशेषाधिकार और ज्यादा विशेषाधिकार प्राप्त कर रहा है-> जैसे किसी पिछड़े वर्ग में सभी लोग अच्छी पद पर हैं लेकिन फिर भी उनके बच्चों को विशेषाधिकार मिलता है क्यूंकि केवल जाती के टैग पर, जिससे कई उच्च जाती के योग्य उम्मीदवार अभी भी गरीबी और अशिक्षा से प्रभावित हैं।
- सामाजिक अशांति-> आरक्षण के मुद्दे को लेकर समाज में कइयों बार हंगामे हुए हैं और आयेदिन राज्यों में आरक्षण अशांति का कारण बनता है।
*भारत में आरक्षण सुधार हेतु सुझाव।
हमे अपने देश में आरक्षण के प्रति कुछ बदलाव और सुधार करने की आवश्यकता है, जिससे इसके प्रति समाज में असहिष्णुता और असंतुलन को खत्म किया जा सके और साथ ही साथ लोगों में जागरूकता फैलानी चाहिए की राजनीति के चुनावी प्रचार के लुभावनवाद से सतर्क रहें।
क) सरकार को आरक्षण के निति में क्रीमी लेयर की धारणा को अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाति में भी लागू करने चाहिए, जिस प्रकार से अन्य पिछड़े वर्ग में क्रीमी और नॉन-क्रीमी लेयर का बटवारां किया गया है।
ऐसा करने से आरक्षण का लाभ पूर्ण रूप से उसके हकदार को ही मिलेगा, जिसकी उसको जरुरत है।
ख) उच्च पद के अधिकारी और उच्च आय वाले पेशेवर और एक निश्चित आय से ऊपर के अन्य लोगों को विशेष रूप से सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए।
ग) आरक्षण के मुद्दे को चुनाव प्रचार का हिस्सा बनने से चुनाव आयोग को रोकना चाहिए।
घ) आरक्षण का लाभ सरकार जरूरतमंद वंचित जातियों के बच्चों को निजी स्कूलों में भी लागू करवाए ताकि प्रारंभिक अच्छी शिक्षा से कोई भी बच्चा वंचित ना रहे।
ङ्ग) जागरूकता फ़ैलाने की आवश्यकता है क्यूंकि आरक्षण प्राप्त वर्गों को इस बात की जानकारी कम होती है की प्रावधान से लाभ कैसे प्राप्त किया जा सकता है।
सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा की आरक्षण का लाभ समाज के जरूरतमंद और वंचित लोगों तक पहुंच रहा है की नहीं क्यूंकि विशेषाधिकार वाले जाती का टैग लेकर और विशेषाधिकार प्राप्त कर लेते हैं। इसलिए जिसे समाज में आरक्षण की जरुरत है जो सही मायने में पिछड़ा वर्ग है और आर्थिक रूप से भी पिछड़ा है वही आरक्षण का असली हकदार है।
*अगर आप चाहें तो आप अपनी प्रतिक्रिया भी ‘आरक्षण ‘के प्रति कमेंट करके निचे बता सकतें हैं ताकि और लोग भी यह जान सके की समाज इसके बारे में क्या सोचती है।
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