राधे-राधे, आदाब, सत्यश्रीअकाल, हैलो मेरे प्यारे दोस्तों, आज हम बात करेंगे “भारत में निरक्षरता (Illiteracy in India)” के मुद्दे पर हालाँकि, यह बोलना सही नहीं होगा क्यूंकि आज के युग में कोई भी नागरिक देश में निरक्षर या फिर अनपढ़ नहीं है लेकिन इसके पीछे छिपे सच को भी तो जानना बहुत जरुरी है की आखिर हमारे भारत में साक्षर नागरिक कानूनी तौर पर किसे परिभासित किया जाता है, जिससे यह सिद्ध हो जाता है की वह नागरिक अब निरक्षर या अनपढ़ नहीं है।
हमारे भारत में जनगणना के अनुसार वह व्यक्ति जिसकी उम्र सात वर्ष या फिर सात वर्ष से अधिक है और वह अपने समझ की भाषा में (फिर चाहे वह कोई भी भाषा हो) पढ़ और लिख सकता है तो उस नागरिक को हम भारत में साक्षर और शिक्षित बोलतें हैं। साक्षरता की यह परिभाषा भारत के आज के इस युग में कितना तुलनीय है, जबकि आज के इस युग में व्यक्ति बिना साक्षरता के एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता है और आज की शिक्षा की स्तिथि तो बहुत ही अग्रिम (Advance) हो गयी है।
इसलिए आज भी भारत में निरक्षरता (Illiteracy in India) की समस्या हमारे समाज में देखने को मिलती है क्यूंकि भारत में सारक्षरता की परिभाषा और आज के इस बढ़ते और बदलते आधुनिक आधुनिक समाज की तुलना में कहीं मेल नहीं खाती है, जिसके कारण हमे देश में आज भी निरक्षर और अनपढ़ लोगों की एक बड़ी संख्या अपने समाज में देखने को मिलती।
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निरक्षरता क्या है?
निरक्षरता (Illiteracy) का अर्थ होता है लिखे हुए शब्द को पढ़ने या समझने में असमर्थ होना, वह भी अपनी भाषा के शब्दों को और अगर कोई व्यक्ति पढ़ने में या फिर लिखने में असमर्थ है तो उसे हम अनपढ़ बोलतें हैं।
हमारे देश में निरक्षरता (Illiteracy) की परिभाषा को और वृस्तृत करने की जरुरत है क्यूंकि अगर हम डिजिटलीकरण की इस दुनिया में बात करें तो हर व्यक्ति कम से कम लिख-पढ़ तो सकता ही है लेकिन फिर भी समाज में साक्षर लोग नहीं हैं और आज भी समाज में ऐसे लोग हैं, जो लिखने-पढ़ने में असमर्थ हैं लेकिन वह समाज की पुरानी पीढ़ियां हैं, आज की नयी पीढ़ी फिर भी अधिकतर लिखने-पढ़ने दोनों में समर्थ है।
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अगर हम बात करें ‘राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय’ द्वारा प्रस्तुत किये साक्षरता दर की सर्वेक्षण के बारे में तो भारत में आज आज़ादी के 75 साल के बाद भी निरक्षरता समाज मे 22.3% बताई जा रही है और साक्षर लोगों की संख्या 77.7% है लेकिन इस निरक्षरता के दर को जब हम शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में विभाजित करतें हैं तो यह साफ़ हो जाता है की ग्रामीण क्षेत्रों में निरक्षरता अधिक है (25.5%) और शहरी क्षेत्रों में निरक्षरता कम है (12.3%) तो इन आकड़ों से यह बात सिद्ध है की ‘भारत में निरक्षरता (Illiteracy in India)’ आज भी मौजूद है जो की भारत के भविष्य के विकसित समाज के लिए खतरा है और यह एक बहुत बड़ी चिंता का कारण भी है।
इसलिए वैश्विक स्तर पर “अंतराष्ट्रीय साक्षरता दिवस” 8 सितम्बर को अवलोकन किया जाता है जिसका उद्देश्य विश्व भर में लोगों के बिच यह जागरूकता फैलाना होता है की किस प्रकार से साक्षरता की भूमिका आज के समाज में अहम् है और आज के इस युग में साक्षर या शिक्षित होना कितना आवश्यक है “अगर किसी के हाथों में कलम है तो वह दुनिया जितने के बारे में जरूर सोच सकता है” और इसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के द्वारा बनाये गए ’17 सतत विकास लक्ष्यों में सतत विकास लक्ष्य-4 सभी को ‘गुणवत्तापूर्ण शिक्षा” 2030 तक प्रदान करने की बात करती है।
भारत में निरक्षरता के कारण।
भारत में निरक्षरता (Illiteracy in India) के अनेकों कारण देखने को मिल जायेंगे लेकिन हम कुछ आवश्यक कारणों के बारे में चर्चा करेंगे, जो हमारे देश में वृस्तृत रूप से देखा जा सकता है, जैसे:-
- गरीबी-> निरक्षर या असाक्षर होने का यह एक मुख्य कारण है, जो की हमारे देश में बड़े स्तर पर देखि जा सकती है और जिस व्यक्ति को दो वक़्त की रोटी के लिए सोचना पड़ता है, वह व्यक्ति साक्षरता के बारे में क्या सोचेगा।
- माता-पिता का असाक्षर होना-> बहुत से माता-पिता अशिक्षित होने के कारण अपने बच्चों की शिक्षा पर भी ज्यादा जोर नहीं देतें हैं क्यूंकि वह शिक्षा के महत्व से अनभिज्ञ होतें हैं।
- रूढ़िवादी सोच-> आज भी हमारे समाज में ऐसे लोग हैं जो इस बात को महत्व देतें हैं की ‘पढ़-लिखकर क्या होने वाला है’, हालांकि ऐसी विचारधारा हमे अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिल जाती है और इस विचारधारा का सबसे बड़ा प्रभाव हमारे देश की महिलाओं को झेलना पड़ता है।
- बढ़ती जनसँख्या-> जनसँख्या के बढ़ते मामले निरक्षरता (Illiteracy) का एक कारण बन जाता है क्यूंकि अक्सर हमारे भारतीय समाज में देखा जाता है की जिस माता-पिता की ज्यादा संताने होती है और वह आर्थिक रूप से कमजोर है तो वह सभी सन्तानो को साक्षर बनाने में असमर्थ होतें हैं और जिन माता-पिता की कम संताने होती हैं, वह अपने संतान की साक्षरता पर अच्छे से ध्यान दे पातें हैं।
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच का अभाव-> एक बात हमारे समाज में कहावत है की ‘आधी विद्या भयंकर होती है इससे अच्छी विद्या ना हो’ तो वैसे ही भारत में सरकार मुफ्त शिक्षा तो प्रदान करती ही लेकिन उस शिक्षा की गुणवत्ता का कोई दावा नहीं कर सकता है क्यूंकि ऐसी प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक को खुद अपने विषय के बारे में आधी या तो गलत जानकारी होती है।
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भारत में निरक्षरता का प्रभाव।
निरक्षरता (Illiteracy) के प्रभाव से समाज में बहुत से दुष्परिणाम सामने निकल कर आतें हैं और आज की इस तकनीक युग में तो असाक्षरता का प्रभाव सभी स्तर पर देखा जा सकता है, जैसे:-
- व्यक्तिगत प्रभाव-> असाक्षर व्यक्ति के लिए आज के इस युग को समझना बहुत मुश्किल हो जायेगा और इसके लिए वह खुद जिम्मेदार होगा क्यूंकि उसने समाज के साथ अपने आप को नहीं बदला, उस व्यक्ति को आज भी जमीन के निचे चलने वाली रेलगाड़ी एक कल्पना प्रतीत होती है।
- आर्थिक प्रभाव-> निरक्षरता का प्रभाव देश के आर्थिक विकास पर भी होता है क्यूंकि निरक्षर व्यक्ति देश के अर्थव्यवस्था में अपना योगदान देने में असमर्थवान होता है बल्कि आज देश के एक किसान का भी साक्षर होना जरुरी है।
- सामाजिक पिछड़ापन-> निरक्षरता देश में सामाजिक पिछड़ेपन को बढ़ावा देता है, जिसका सीधा असर ‘विश्व मानव विकास सूचकांक’ में देखने को मिलता है, जहाँ भारत का स्थान 131वां है।
- अपराध दर में वृद्धि कराता है-> असाक्षर व्यक्ति का हर तरीके से शोषण किया जा सकता है और आज के समाज में लोग ऐसा करतें भी हैं और हालाँकि यह प्रचलन पहले भी था जहाँ जमींदारों के द्वारा असाक्षर लोगों के साथ गलत काम किया जाता था ठीक वैसे ही आज आधुनिक तकनीकों के द्वारा लोगों के पैसे चुरा लिए जातें हैं, उन्हें ठगी का शिकार होना पड़ता है।
- अंधविश्वास में वृद्धि-> असाक्षरता लोगों के बिच समाज में अन्धविश्वास पैदा करता है और उसे बढ़ावा भी देता है जो की एक विकशित समाज में बाधक का काम करता है, जिससे अस्थिरता उत्पन्न होती है।
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भारत में निरक्षरता के खिलाफ सरकारी और संवैधानिक प्रावधान।
भारतीय संविधान में असाक्षरता को ध्यान में रखकर अपने देश को साक्षर बनाने के प्रति कुछ प्रावधान ‘संविधान में शामिल किये ताकि लोगों को बुनियादी शिक्षा प्राप्त करवाई जा सके, जिससे देश में कोई असाक्षर ना हो, जैसे:-
- ‘अन्नुछेद-21(ए)‘ 6-14 वर्ष की आयु के बच्चे को अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
- ‘अन्नुछेद-30‘ देश के सभी अल्पसंख्यक समुदाय को अपनी पसंद के शिक्षण संस्थान की स्थपना करने का अधिकार प्रदान करता है।
- ‘अन्नुछेद-45‘ सभी रज्यों को निर्देश देता है की वह 6-4 साल के बच्चों के लिए निःशुल्क शिक्षा का प्रावधान बनाये।
- ‘अन्नुछेद-46‘ सभी राज्यों को निर्देश देता है की वह अपना राज्यों के अनुसूचित जाती/जनजाति और अन्य कमजोर वर्ग के लोगों के शैक्षिक और आर्थिक हित को बढ़ावा दे।
- ‘अन्नुछेद-51(ए)‘ माता-पिता को यह कर्तव्य सौपतां हैं की वह 6-14 साल के आयु के अपने बच्चे को शिक्षा का अवसर दे।
इन सभी संवैधानिक प्रावधानों के अच्छे तरीके से कार्यान्यवयन करने के लिए सरकार के द्वारा भी कुछ कार्यक्रम चलाएं जा रहें हैं, जिससे देश में निरक्षरता की समस्या पर बिंदु लगाई जा सके:-
- राष्ट्रीय शिक्षा निति, 2020-> इस नए शिक्षा निति के अंतर्गत सरकार ने सभी प्रकार के कौशल को ध्यान में रखते हुए उसे बढ़ावा देने की बात की है और भारतीय शिक्षा प्रणाली को एक वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाने के लिए काम कर रही है।
- समग्र शिक्षा अभियान-> यह शिक्षा अभियान प्री स्कूल से लेकर 12वीं कक्षा तक समावेश सम्मान और गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने के लिए एक एकीकृत योजना है।
- मिड-डे-मिल योजना-> भारत में इस योजना को अब ‘प्रधानमंत्री पोषण अभियान’ कहतें हैं और इस की योजना की शुरुवात इस उद्देश्य की गयी थी ताकि सभी गरीब बच्चों तक शिक्षा की पहुँच हो सके और जो भी बच्चा कक्षा 1-8 में दाखिला लेता और निरंतर स्कूल आता है उसे मुफ्त में पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराया जायेगा क्यूंकि बहुत बच्चे दाखिला लेने के बाद स्कूल ही नहीं आते और वह दूसरे अन्य काम करने चलें जातें, इसलिए सरकार ने भोजन का प्रावधान रखा जिससे स्कूलों में बच्चों की उपस्तिथि सुनिश्चित की जा सके।
इन कुछ कार्यक्रम के अलावा भी राज्य सरकार और केंद्र सरकार अपने-अपने स्तर पर कौशल और शिक्षा के विकास के लिए काम कर रही है, जिससे निरक्षरता (Illiteracy) को समाज से खत्म किया जा सके।
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भारत में निरक्षरता को खत्म करने के लिए सुझाव।
भारत में निरक्षरता (Illiteracy in India) तभी समाज से खत्म हो सकती है जब सरकार और आम जनता दोनों मिलकर इस समस्या का समाधान करे क्यूंकि सरकार अपना काम कर रही है लेकिन लोगों को यह समझना पड़ेगा की सरकार के द्वारा सभी नीतियां और कार्यक्रम हमे साक्षर करने और भविष्य में आने वाली चुनौतियों के साथ सामना करने के लिए बनाई गयी हैं।
जब हमारे द्वारा अपनी सहभागिता उन बनाई नीतियों और कार्यक्रमों में नहीं प्रदान की जाएगी तो फिर ऐसी परिस्तिथि में सरकार भी क्या कर सकती है।
- सरकार को साक्षरता के लिए जागरूकता फ़ैलाने के कार्यों को आशा वर्कर्स और आंगनवाड़ियों के कार्यकर्ताओं को सौपना चाहिए और ‘असाक्षरता से समाज में क्या दुष्परिणाम देखने को मिल सकतें हैं या भविष्य में क्या दुष्परिणाम होंगे उसके बारे में बताना चाहिए।
- जितना हो सके हमे अपने स्तर पर जागरूकता फैलानी चाहिए और अक्सर लोगों को समझाना चाहिए क्यूंकि अगर हम समाज में कुछ बदलाव देखना चाहतें हैं तो इसकी शुरुवात हमे खुद से करनी चाहिए।
- सरकार को एक मुख्य वर्ग का साथ देना होगा, सभी ग्राम पंचायतों में यह अनिवार्य कर दे की जो भी महिलाएं और व्यस्क पुरुष शिक्षित होना चाहतें हैं उनके लिए विशेष कक्षा की और शिक्षक की व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे समाज के वह लोग साक्षर हो पाएंगे जिन्हे अतीत में शिक्षा का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है और अब वह कुछ सीखना चाहतें है।
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