भारत में पितृसत्तात्मक समाज। (Patriarchal Society in India.)

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राधे-राधे, आदाब, सत्यश्री अकाल, हैलो मेरे प्यारे दोस्तों तो कैंसे हो आप सब। दोस्तों मैं हमेशा से ये देखता हूँ और सुनता भी हूँ की महिला हमेशा घर का काम करती हैं और पुरुष हमेशा बाहर का और आज भी अधिकतर घरों में घर के अहम् फैसले पुरुष ही लिया करते हैं, कहीं-कहीं तो महिलाओं को शामिल किया जाता है वो भी केवल उनकी उपस्तिथि को दर्शाने के लिए जबकि उनकी बातों को अहमियत नहीं दी जाती है और बहुत से ऐसे जगह भी हैं जहा महिलाओं को शामिल करना भी जरुरी नहीं समझते, हाँ मै बात कर रहा हूँ “पुरुष प्रधान” समाज की, ऐसे सोच की, हालाँकि आप सबने भी ऐसा देखा होगा, और एक मजे की बात बताऊ हमारे समाज में कहीं-न-कहीं महिलायें भी ये मानती हैं की पुरुष सर्वोत्तम हैं लेकिन मेरा अभी के समय में ऐसा कहना गलत हो सकता है क्यूंकि दुनिया अब आगे बढ़ रही है, परन्तु मै यहाँ बात कर रहा हूँ उन लोगों की जो आज भी रूढ़िवादी सोच रखते हैं जिनके कारण आज के समय  मे भी हमे “भारत में पितृसत्तात्मक समाज(Patriarchal Society in India)” देखने को मिलती है और हम जैसा खाद जड़ों में डालेंगे फल भी वैसे ही होंगे ना मतलब जैसा बड़े करेंगे बच्चे भी वैसे ही होंगे ना तो आखिर किसी न किसी को ये पितृसत्तातमक का खाद डालना बंद करना ही पड़ेगा।

patriarchal society in india
Patriarchal Society

पितृसत्तातमक समाज क्या है?

-> पितृसत्तातमक समाज (Patriarchal Society) वो समाज है जहाँ पुरुष प्रमुख होतें हैं जिस घर में केवल पुरुष को ही प्राथमिकता दी जाती है, कोई भी फैसला लेने का विशेषाधिकार बस पुरुष को ही होता है किसी महिला को नहीं, अगर महिला के द्वारा कुछ किया भी जा रहा है तो वो घर के पुरुष से अनुमति लेकर ही कर सकती है, जहाँ पे महिला केवल घरो के काम के लिए ही होती हैं और पुरुष केवल बाहरी कामों के लिए, तो ऐसे रूढ़िवादी सोच को हम पितृसत्तातमक समाज कहते हैं। 

दोस्तों मैं आपको एक उदहारण देता हूँ की “भारत में पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की क्या भूमिका है”:-

इस धरती पे हम जैसे इंसानो को जनम देने वाली, हमे इस धरती पे लाने वाली एक महिला ही हो सकती है सोचो अगर वो हमे इस संसार में लेकर न आती तो संसार आगे कैसे बढ़ता, मुझे पता है की हम ये चीजें हमेशा देखते हैं इसलिए हमे ये आम बात लगती है ठीक उसी प्रकार जैसे सूर्य और चन्द्रमा की वजह से दिन और रात होती है लेकिन ये हमेशा होने के कारण आम बात लगती है, लेकिन हमारे जीवन में उनकी कितनी महत्ता होती है।

दोस्तों हमारा विज्ञान इतना तरक्की कर चूका है जो की महिला को हमारे समाज में प्रबल और प्रमुख बनता है और होने की पुष्टिकरण भी करता है वो कैसे मै आपको बताता हूँ, एक बार मेरे “विज्ञान व तकनीकीकरण” के शिक्षक पढ़ा रहे थे की ऐसा भी संभव है की “महिलायें बिना पुरुष के भी गर्भधारण कर सकती हैं” उन्हें इस संसार को आगे बढ़ाने के लिए पुरुष की सहायता की जरुरत नहीं है वो खुद गर्भधारण करने में सक्षम है ऐसा हमारा विज्ञान कहता है हालाँकि ऐसा शोध में किया गया है वैज्ञानिकों द्वारा लेकिन ये संभव है, मेरा ऐसा बिलकुल कहने का तात्पर्य नहीं है की इस समाज में पुरुष की कोई जरुरत नहीं है मै बस ये बताना चाहता हूँ की महिलायें कितनी अहम् हैं, मुझे और आपको भी ये पता है की बिना पुरुष के भी जीवन संभव नहीं है सृस्टि में दोनों का होना जरुरी है क्यूंकि महिला पुरुष दोनों के कारण ही समाज है।  इस उदहारण से मैं बस ये समझाना चाहता हूँ की पुरुष ही महान हैं ऐसा सोच रखने वाले गलत हैं क्यूंकि महिला की महानता को पुरुष ने कभी उजागर होने नहीं दिया।

भारत में पितृसत्तातमक समाज का महिला पर प्रभाव।

क) पितृसत्तात्मकता महिलाओ की आज़ादी पर पाबन्दी लगा देता है, जिसपे किसी और का नियंत्रण होता है।

ख) पितृसत्तातमक समाज महिलाओं को अपने ज़िन्दगी के अहम् फैसले करने और आगे बढ़ने से रोकता है।

ग) पितृसत्तात्मकता महिलओं को ये मानाने पे मजबूर कर देती है की ताकि उन्हें भी ऐसा लगने लगता है की पुरुष प्रमुख है।

घ) पितृसत्तातमक सोच महिलाओं को अपनी शक्ति से परिचित नहीं होने देता है, वो भी ऐसा मानने लग जातीं हैं की पुरुष के बिना वो कुछ नहीं कर सकती हैं।

ङ्ग) पितृसत्तातमक सोच ही हमारे समाज और देश में महिअलों के खिलाफ अत्याचार और अपराध को बढ़ा रहा है।

मैं जब कहीं पुरुष प्रधानता देखता हूँ तो सोचता हूँ की हमे निचले स्तर से सभी जगह जागरूकता फैलानी होगी, लोगों के सोच में बदलाव करना होगा तब जाकर ये एक “पितृसत्तातमक से मातृसत्तातमक या उसके न्यायसंगत समाज की ओर वृद्धि होगी” ऐसे हमे अभी भी “मातृसत्तात्मकता” देखने मिलती है जहाँ पे एक महिला प्रमुख होती है या उसे पुरुष के सामान ही प्रमुखता दी जाती है, लेकिन पितृसत्तात्मकता के तुलने में बहुत कम है समाज में हर कोई एक है चाहे वो पुरुष हो या महिला हर किसी को हर किसी का काम करना चाहिए फिर वो घर का हो या बहार का।

मुझे पता नहीं मेरे इस उल्लेख को पितृसत्तातमक सोच रखने वाले लोग पढ़ेंगे या नहीं लेकिन इतना आशा  आपसे जरूर करूँगा की जो लोग इस उल्लेख को पढ़ रहे हैं वो उन्हें जरूर समझायेंगे जिससे हमारे समाज में ये प्रधानता खत्म हो जाए और एक बराबरी की समाज का गठन हो।

दोस्तों आप अपनी राय इस आर्टिकल को पढ़ कर निचे कमेंट करके जरूर बतायें की क्या आज के समय में इस समाज में सबको एकाधिकार मिलना चाहिए की नहीं।

“पुरुष और महिला दोनों है एक समान, दोनों की श्रेष्ठ भूमिका से ही कहलाता है ये जग महान तो आओ मिल कर दे दोनों को एक स्थान”

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5 thoughts on “भारत में पितृसत्तात्मक समाज। (Patriarchal Society in India.)”

  1. Male dominated society is really a curse of society. Both men and women should be given equal importance in today’s world and I can say our society is already in progress .
    Thanks for such valuable articles🙏

  2. आज इस आर्टिकल में राधा रानी मोर मुकुट बंशी वाले की प्रेरणा से आपने ये दिखाया है कि पुरुष प्रधान समाज में महिलाएं भी पुरुष के कंधो से कन्धा मिलाकर वो सब कर सकती है जो एक पुरुष कर सकता है लेकिन आज के इस समाज में ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि लोग महिलाओ को उसके अधिकार से वंचित रख कर अपने आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि महिला और पुरुष एक साईकिल के समान है जो कि एक दूसरे के बिना अधूरा है राधे राधे

  3. पुरुष प्रधान समाज के बारे में एक पुरुष से जानकारी प्राप्त करके बेहद खुशी महसूस हो रही है, इस ब्लॉग के द्वारा मन में एक आशा की किरण जगी है, आज की युवा पीढ़ी कहीं ना कहीं इस पुरुष प्रधानता का विरोध करती है, इस विषय पर सभी का ध्यान केंद्रित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!! उम्मीद है, आपकी इस कोशिश के कारण समाज में एक नई सोच की वृद्धि होगी.
    Radhe radhe🥰🥰

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