राधे-राधे, आदाब, सत्यश्री अकाल, हैलो मेरे प्यारे दोस्तों तो कैसे हो आप सब? दोस्तों क्या आपको पता है की इस दुनिया में जब हम जन्म लेतें हैं, ठीक जन्म लेने के बाद ही कोई हमारा सच्चा साथी बन जाता है और मजे की बात तो ये है की वो हमारा साथ हमारे शरीर के अंत होने के बाद भी नहीं छोड़ता है, जी हाँ दोस्तों मैं यहाँ बात कर रहा हूँ हमारे ईश्वर-अल्लाह द्वारा बनाये इस सुन्दर “प्रकृति की जो मनुष्य का एक रहस्यमयी साथी है (Nature: A Mysterious Friend of Human)” और “प्रकृति का महत्व (Importance of Nature.)” मनुष्य के जीवन में सर्वोच्च है।
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जीवन में प्रकृति का महत्व।
हम जबसे इस संसार में आतें हैं हमे सांस लेने के लिए स्वच्छ वायु प्रकृति ही प्रदान करती है, हम बिना प्रकृति की सहायता के एक कदम भी नहीं चल सकतें हैं और दोस्तों ये महामारी इस बात का प्रमाण देती है और उधारहण देकर हमे समझाती है। जो स्वच्छ वायु सिर्फ और सिर्फ प्रकृति ही हमे प्रदान कर सकती है और कोई नहीं, जहाँ इस साथी के साथ छोड़ देने से मनुष्य ये संसार ही छोड़ देता है। दोस्तों बात यहीं खत्म नहीं होती है मनुष्य के संसार छोडने के बाद भी प्रकृति की सहायता से ही उसके शरीर को जलाया या फिर मिटटी में दफनाया जाता है। तो दोस्तों आप ही बताइए क्या मैं गलत कह रहा हूँ और ऐसी कौन सी जगह है जहाँ प्रकृति हमारा साथ नहीं देती, वो पल-पल हमारे साथ है लेकिन हम दोनों के साथ में, अंतर सिर्फ इतना है की वो तो हमारा साथ देती है परन्तु हम उसका साथ नहीं दे पातें हैं। वो हमारे लिए एक रहस्यमयी साथी है जिसका साथ बेहद जरुरी है, पर हम मनुष्य – घृणा होती है मुझे की हम अपने मतलब के लिए हर पल उस प्यारे से प्रकृति को दुःख पहुंचते हैं।
जिसकी रचना स्वयं इस सृष्टि ने हमारे जीवन जीने के लिए की है ताकि हम इस संसार में वास कर सके। प्रकृति हमारे जीवन जीने का आधार है और हम सब इस प्रकृति का एक हिस्सा हैं।
दोस्तों जैसा की हम जानते हैं, लेकिन कहीं न कहीं हम ये भूल गए हैं की मनुष्य का यह शरीर भी प्रकृति के पाँच तत्वों से मिल कर बना है, “वायु, अग्नि, जल, आकाश, मिट्टी” और फिर यह प्रकृति हीं इस शरीर को वापस अपने में मिला लेती है
जैसा की हमे अच्छी तरह मालूम है की मनुष्य द्वारा ही प्रकृति को नष्ट भी किया जा रहा है, वो भी अपने कुछ सुखों की प्राप्ति के लिए। हम सबने अपने बुजुर्गो से पौराणिक कहानियां तो सुनी हीं होंगी या आपने पढ़ा भी होगा की पहले के युगो में प्रकृति की पूजा की जाती थी और पूजनीय होने के कारण मनुष्य उस प्रकृति की संरक्षण भी करता था, आज के मुकाबले पहले बीमारियां ना के बराबर थी जिनका इलाज भी कहीं न कहीं प्रकृति में ही छुपा था।
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मनुष्य के जीवन में प्रकृति की भूमिका।
इस सुन्दर प्रकृति की रचना किसी एक चीज से नहीं हुई है, इस प्रकृति के अंदर बहुत से तत्व वास करते हैं, प्रकृति की व्याख्या कोई छोटी नहीं है, इसकी व्याख्या अनेक भागों में की गयी है “वृक्ष, पर्वत, वन, वायु, जल, सूर्य, चंद्र, आकाश, झरने, जिव-जंतु, रेत, मनुष्य” और भी कई वस्तुओं से मिल कर प्रकृति का निर्माण हुआ है। इस प्रकृतिक रूपी संसार में ईश्वर ने किसी को सबसे समझदार बनाया है तो वो है मनुष्य जिसे इस प्रकृति में सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है। ऐसे बात करे तो प्रकृति अपने सभी भागों के लिए बहुत अहम् भूमिका निभाती है लेकिन इन सबमे सबसे अहम् भूमिका मनुष्य के लिए निभाती है और प्रकृति का सबसे अधिक उपयोग और दोहन भी मनुष्यों द्वारा ही किया जाता है:
क) प्रकृति मनुष्य को स्वच्छ हवा, जल, खाने के लिए भोजन ये सब प्रदान करती है।
ख) प्रकृति मनुष्य का स्वास्थय ख़राब होने पर या चोट लगने पर औसधि भी प्रदान करती है।
ग) प्रकृति की सहायता से ही मनुष्य अपने निवास के लिए घर बना सकता है।
घ) प्रकृति ही मनुष्य को पहनने के लिए अच्छे वस्त्र भी प्रदान भी करती है जिससे मनुष्य अपने शरीर को न केवल ढक सके अतः अपने शरीर की सुरक्षा भी कर सके (धुप, धूल, बारिश)
ङ्ग) प्रकृति के अन्य कई वस्तुएँ मनुष्य अपने उपयोग में लाता है जैसे; जल से बिजली उत्पादन, सूर्य से सौर्य ऊर्जा तैयार करना, खनन करके अन्य कई खनिज पदार्थ धरती से बाहर निकालना।
प्रकृति की भूमिका मनुष्य जीवन में श्रेष्ठ है।
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प्रकृति के विनाश का कारण।
महात्मा गांधीजी द्वारा एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात बोलीं गयी थी की “इस संसार में इतनी शक्ति है की वो सभी की जरूरतों को पूरा कर सकती है, लेकिन इतनी शक्ति नहीं है वो सभी के लालच को पूरा कर सके” और बिलकुल इस कथन के विपरीत मानव द्वारा भी हमारे प्रकृति का दुरूपयोग किया जा रहा है जिससे प्रकृति प्रभावित हो रही है:
क) बड़े-बड़े उद्योग और कारखानों से निकलने वाली जहरीली गैस का हवा में मिल जाना जिससे हवा का प्रदूषित हो जाना, जहरीली रसायन और पदार्थों का नदियों के जल में मिल कर जल को दूषित करना।
ख) धरती से खनिज पदार्थ को बड़े मात्रा में बाहर निकालना जिसके साथ-साथ कितनी जहरीली गैस भी बाहर पर्यावरण को दूषित कर देती है।
ग) सभी जगह शहरीकरण करके, बड़े-बड़े कारखाने लगाके वृक्ष और हरे-भरे वातावरण को नष्ट करना।
घ) बड़े पैमाने पे विकास करने के नाम पर वनो की कटाई करना या फिर उनको जला देना जिसके परिणामस्वरूप जो वन में रहने वाले जिव-जंतु हैं वो बेघर हो जातें हैं, कुछ की तो मृत्यु भी हो जाती है।
ङ्ग) प्रकृति के अन्य जिव-जंतु को बड़े मात्रा में पकड़ना जिनका उपयोग मनुष्य उसे खाने के लिए, उस जिव से कोई वस्तु बनाने के लिए उसकी तस्करी करना ताकि उसका व्यापर कर सके।
इतना ही नहीं मानव खुद मानव तस्करी भी करता है मनुष्य को बेचना, उन्हें मार कर उनके अंगो का व्यापर करना, क्या इन सबसे प्रकृति को कष्ट नहीं होता है, कुछ मनुष्यों के द्वारा ये सब करके प्रकृति के नियमित चक्र को ख़राब किया जा रहा है।
हमारा देश वनों की कटाई में पुरे विश्व में दसवें पायदान पे आता है, जलवायु परिवर्तन हमारे प्रकृति का एक बहुत बड़ा मुद्दा बना हुआ है, जिसके लिए केवल मनुष्य ही जिम्मेदार है। “जलवायु परिवर्तन के लिए अंतरास्ट्रीय पैनल” में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान ना हो ऐसा सभी देशों द्वारा ग्लोबलवार्मिंग के विपरीत लक्ष्य तय किया गया है, इससे अधिक तापमान मानव जीवन के लिए और अन्य पुरे प्रकृति के लिए विनाशकारी हो सकता है।
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प्रकृति को बचाने में मनुष्य की भूमिका।
यह लिखते हुए बहुत दुःख होता है की जिस प्रकृति में हम मानव जाती को अपने अंदर समाहित किया है आज उसे बचाने की बात करनी पड़ रही है, जिसके जिम्मेदार पूरी तरह से सिर्फ मनुष्य ही है क्यूंकि प्रकृति का सबसे अधिक दोहन भी मनुष्य ने ही किया है। प्रकृति को बचाने के लिए मनुष्य को बस अपनी कुछ आदतों में बदलाव लाना होगा:
क) जितनी अधिक मात्रा में हो सके हम वृक्ष लगाएं जिससे कार्बन उत्सर्जन प्रकृति से कम हो सके, हमे (पीपल, नीम, बरगद) जैसे वृक्ष लगाने चाहिए जो रात के समय भी ऑक्सीजन प्रदान करती है। बड़े कारखाने और उद्योगों को भी अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करना होगा जो की वो बिजली का उपयोग करके कर सकते है।
ख) मनुष्य बस अपनी जरूरतों को प्रकृति से पूरा करे, अत्यधिक खनन करना बंद करें, जिव-जंतु पर फिजूल के शोध करना बंद करे, प्रकृति के किसी भी वस्तु की तस्करी करना उनको नुक्सान पंहुचा कर उनका व्यापार करना बंद करें।
ग) मनुष्य को पॉलिथीन जैसी चीजों का उपयोग कम करना होगा, जो प्रकृति को अत्यधिक नुक्सान पहुँचती है।
घ) जल का दुरूपयोग नहीं करना, अपने आस-पास या कहीं भी कचरा ना फैलाना- कूड़ेदान का उपयोग करना।
ङ्ग) प्रकृति के सभी भागो की सुरक्षा करना, कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना जिससे प्रकृति को नुकसान हो।
प्रकृति को बचाना मतलब हम अपने आप को बचा रहें हैं, याद रहे हमारे छोटे-छोटे प्रयासों से ही प्रकृति सुरक्षित रहेगी।
दोस्तों मैं अपने इस लेखन से यही सन्देश और जागरूकता फैलाना चाहता हूँ की प्रकृति फिर चाहे वो ‘वृक्ष, वन, नदियां, पर्वत, झरने, पर्यावरण, जिव-जंतु’ कोई भी क्यों न हो हमे उनसे प्यार करना चाहिए उन्हें संभाल कर रखना चाहिए तब ही वह बदले में हम सभी को संभाल कर रखेंगे और दोस्तों जरा सोचिये की हम प्रकृति को कितना कष्ट देते हैं लेकिन फिर भी वह हमारा साथ कभी नहीं छोड़ती। इसलिए जब हम प्रकृति का खयाल रखेंगे तब वह न जाने और कितने उपहार हमे देगी।
दोस्तों मैंने अक्सर देखा है की जो चीज मनुष्य को मुफ्त में मिल जाती है (हवा, जल, रौशनी,) उसकी वो कदर नहीं करता है लेकिन मेरा ऐसा मानना है की मनुष्य को मुफ्त में मिली चीजों की कदर सबसे अधिक करनी चाहिए क्यूंकि वो उसे बिना किसी मेहनत के मिली है।
दोस्तों जिस तरह सौर प्रणाली में कितने और भी ग्रह है जिनमे से एक हमारी पृथ्वी ही एक ऐसी ग्रह है जिस पर प्रकृति का वास है, “प्रकृति से हम हैं ना की हमसे प्रकृति”।मुझे तो यह सोच कर आश्चर्य हो रहा है की जहाँ प्रकृति नहीं है वहां जा कर मनुष्य वायु और जल ढूंढ रहा है ताकि मनुष्य जीवन वहां संभव हो सके, यह तो एक अच्छी बात है लेकिन जिस पृथ्वी पर यह सब पहले से ही मौजूद है वहाँ इस प्रकृति को हम नुकसान पहुंचाने में अपना योगदान दे रहें हैं।
तो दोस्तों कुछ इस प्रकार से मैंने आपको हमसब के रहस्यमयी साथी से परिचित करवाया है जिसे हमे अपने शरीर की तरह संभाल कर रखना है। यह रहस्यमयी साथी आपका हर दिन कैसे साथ निभाती है और आप इसका साथ कैसे निभाते हैं, अपने इस विचार को जरूर साझा करें।
“अतुल्य अमूल्य पृथ्वी का उपहार,
प्रकृति है हमारे जीवन का आधार”
Ati sunder Natural ke bare me adhik jankari milne man perfulit ho gaya jo hmara khyal rkhte hai hme bhi chahiye unka khyal rakhe Radhe Radhe 🥰
कितना अच्छा होता जो हम चांद, मंगल पर घर बसाने के लिए करोड़ों खर्च रहे है अगर उतना ही खर्च अगर पृथ्वी को बचाने में करते।
एक हमसे संभल नही रहा दूसरे के तलाश में निकल चुके हैं।
bilkul aaj ke samay mai ye sabse badi sacchai hai jispe koi dhyan hi nahi deta, aakhir manushya waha bhi jakar apni aadat nahi chodega aur hum dusre graho ko bhi barbaad kar rahe denge…