राधे-राधे, आदाब, सत्यश्रीअकाल, हैलो मेरे प्यारे दोस्तों, एक लोकतान्त्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता का बहुत अधिक महत्त्व होता है क्यूंकि प्रेस किसी भी देश को पूर्ण रूप से लोकतंत्र बनाने के लिए रीढ़ की हड्डी का काम करती है इसलिए, “भारत में प्रेस की स्वतंत्रता (Freedom of Press in India)” को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी कहा जाता है, जिसके कारण लोगों को अपने देश की पल-पल की खबर होती है, लोगों में जागरूकता पैदा होती है लोग अपने हक़ के बारे जान पातें हैं, समाज में हो रहें अच्छाइ और बुराई को समझ पाते हैं और प्रेस लोगों की चौमुखी विकास करने में बहुत बड़ा योगदान देता है।
आज के समय प्रेस लोगों के जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन चूका है और लोकतान्त्रिक शासक वाले देश में प्रेस की स्वतंत्रता (Freedom of Press) अनिवार्य होती है क्यूंकि भारत का संविधान भी ‘अन्नुछेद-19(1)’ के अंतर्गत लोगों को ‘अपनी वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का अधिकार प्रदान करता है लेकिन वहीँ दूसरी तरफ संविधान का ‘अन्नुछेद-19(2)’ प्रेस पर कुछ उचित प्रतिबन्ध भी लगाता है, जो की एक लोकतान्त्रिक देश के लिए अतिआवश्यक है, जैसे:-
- भारत की सम्प्रभुता और अखंडता को ननुकसान ना पहुचें
- राज्य की सुरक्षा को नुक्सान ना पहुचें
- विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को नुक्सान ना पहुचें
- सार्वजनिक व्यवस्था को नुक्सान न पहुचें
- न्यायालय की अवमानना ना हो
- मानहानि या अपराध के लिए ना उकसाना
हालाँकि, ऐसा नहीं है की अन्नुछेद-19 केवल प्रेस की स्वतंत्रता के बारे में बात करती है बल्कि यह देश के सभी नागरिकों को यह हक़ भी प्रदान करती है, जिसमे प्रेस मीडिया भी इसके अंतर्गत आती है।
Table of Contents
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता का इतिहास।
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर एक बहुत लम्बी इतिहास है, जहाँ पर शुरुवात से ही प्रेस की स्वतंत्रता और मीडिया की आवाज़ को दबाने और कुचलने की कोशिश की गयी है अंतर बस इतना है की पहले ब्रिटिश शासन के द्वारा हमारे आवाज़ उठाने पर रोक लगाइ जाती थी और आज हमारे देश के कुछ राजनेताओं के द्वारा ऐसा किया जाता है, हलांकि प्रेस की स्वतंत्रता पर रोक पहले के मुकाबले बहुत कम हो गयी है क्यूंकि जबसे हमारे देश का संविधान लागू हुआ है सभी चीजें नियंत्रित होने लगीं हैं।
- भारत में सबसे पहला प्रिंटिंग प्रेस कारखाना गोवा में पुर्तगालियों के द्वारा 1556 में स्थापित किया गया था।
- 1780 में भारत का पहला अखबार ‘जेम्स ऑगस्टस हिक्की’ द्वारा प्रकाशित किया गया, जिसका नाम ‘दी बंगाल गज़ट‘ रखा गया लेकिन ब्रिटिशर्स के द्वारा इसे दो साल के बाद प्रतिबंधित कर दिया गया।
- इसके बाद ब्रिटिशर्स ने प्रेस को विनियमित करने के लिए बहुत से अधिनियम तैयार किएँ लेकिन इसी दौरान 1835 का प्रेस अधिनियम भी विधायी रूप से पारित हुआ, जिसमे प्रेस को विनियमित करने के लिए उदार निति पेश की जिसे हम ‘मेटकॉफे अधिनियम‘ भी कहतें हैं।
- 1857 के विरोध के बाद ‘लाइसेंसिंग अधिनियम‘ पेश किया गया, जिसमे ब्रिटिशर्स को किसी भी प्रकार के मुद्रित सामग्री के प्रकाशन और प्रसार को रोकने की शक्ति दी।
- 1878 में भारत के वाइसराय लार्ड लिटन ले द्वारा प्रेस को नियंत्रित करने के लिए ‘वर्नाकुलर प्रेस अधिनियम‘ पेश किया गया, जिसमे सरकार को स्थानीय प्रेस में सेंसर रिपोर्ट और सम्पादकीय के व्यापक अधिकार प्रदान किये जो की स्थानीय प्रेस को ब्रिटिशर्स की नीतियों की आलोचना करने से रोकता था।
- 1910 के प्रेस अधिनियम ने स्थानीय सरकार को सरकार के खिलाफ किसी भी प्रकार के आक्रामक सामग्री के लिए सुरक्षा शुल्क की मांग करने का अधिकार दिया।
- फिर देश स्वतंत्र होने के बाद 1950 में, सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा ‘रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य‘ के मामले में यह फैसला दिया की प्रेस की स्वतंत्रता सभी लोकतान्त्रिक संगठनों की नीव पर है।
- 1978 में ‘भारतीय प्रेस परिषद्‘ बनाई गयी, जो की एक वैधानिक संस्था है, जिसे सरकार से स्वतंत्रता प्राप्त है और यह प्रेस के नियमन के लिए कार्य करती है।
- भारत में अन्य निकाय हैं, जो की टीवी पर प्रसारित समाचार को स्वयं नियंत्रित करती है, जैसे- न्यूज़ ब्ब्रॉडकास्टर एसोसिएशन, ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन।
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता का महत्त्व।
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की अहमियत ऐसी है, जैसे बिन जल मछली क्यूंकि अगर प्रेस और मीडिया स्वतंत्र नहीं होंगे तो लोकतन्त्र की मृत्यु हो जाएगी, इसलिए प्रेस की स्वतंत्रत देश में:-
क) सरकार को जवाबदेह बनाता है-> प्रेस और पत्रकार देश में आम लोगों को सरकार और प्रशाशकों के बारे में सुचना प्रदान करतें हैं और सरकार की नीतियों और फैसलों से जनता को रूबरू कराती है, जिससे आम जनता भी सरकार के फैसलों पर सवाल कर सकती है और सरकार भी उसका जवाब देने के लिए बाध्य होती है।
ख) लोगों को शसक्त बनाना-> स्वतंत्र प्रेस लोकतान्त्रिक देश में आम लोगों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों से परिचित करवाती है, जिससे आम जनता अपने संविधान के द्वारा दिए अधिकारों और कर्तव्यों का उपयोग कर अपने समाज में एक सशक्त और गरिमापूर्ण ज़िन्दगी व्यतीत कर सके।
ग) लोकतंत्र का सुचारु संचालन-> प्रेस की स्वतंत्राता देश की एकता, सम्प्रभुता और अखंडता को मजबूत करती है, जिससे भारत में लोगों के बिच प्रेम और सद्भाव बना रहें और साथ ही साथ प्रेस अप्रत्यक्ष रूप से जनता को सरकार से जोड़ने का काम करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है की प्रेस लोकतंत्र का सुचारु ढंग से संचालन करने में मदद करता है।
घ) आम लोगों की आवाज़-> प्रेस की स्वतंत्रता समाज में गरीब, पीड़ित, पिछड़े और अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार, उनके प्रति हो रहे अपराध में उनकी आवाज़ बनकर सरकार के सामने प्रकट करती है या फिर सरकार के द्वारा कोई ऐसी कानून या निति पारित की गयी हो जिसका आम जनता विरोध कर रही हो तो इसे भी फ्री मीडिया समाज में प्रकाशित कर सरकार पर आम लोगों की ओर से दबाव डालती है।
ङ्ग) लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मानते हैं-> भारत में ‘विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका’ इन तीनो लोकतान्त्रिक स्तंभ के बाद प्रेस मीडिया को चौथा स्तंभ माना जाता है, जो की लोकतंत्र को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भारत में प्रेस मीडिया इन सभी के अलावा भी अनेकों बहुत सी भूमिकाएँ निभाता है, जैसे वैश्विक जानकारियां प्रदान करना, मनोरंजनकर्ता के रूप में भी काम करता है और राष्ट्र में समाज की अच्छाइयों और बुराइयों के बारे में भी जागरूक करता है।
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता के लिए खतरा।
भारत में प्रेस पर संविधान के द्वारा कुछ प्रतिबन्ध लगाएं गएँ हैं, जो की अपने राष्ट्र के हित में है लेकिन इसके अलावा भी सरकार प्रेस और पत्रकार को जबरन अपना काम करने से रोकती है उनकी स्वतंत्रता को भंग करती है, वह भी केवल अपने फायदे और स्वार्थ के लिए, जिससे प्रेस मीडिया और प्रेस को अनेकों प्रकार के चुनौतियों और खतरों का सामना करना पड़ता है, जैसे:-
क) फेक न्यूज़-> सोशल मीडिया का प्रभाव इतना फ़ैल गया है की यह समझना बहुत मुश्किल हो गया है की कौन सा समाचार सही है और कौन सा गलत, जो की प्रेस के स्वतंत्र रूप से कार्य करने में एक खतरा है क्यूंकि फेक न्यूज़ के सत्यापन को साबित करना न्यूज़ चैनल और प्रिंट मीडिया के लिए एक बड़ी चुनौती होती जा रही है।
ख) पक्षपातपूर्ण मीडिया-> प्रेस और मीडिया भी बड़े-बड़े कॉर्पोरेट्स और राजनितिक शक्तियों के सामने झुकते जा रही है, आज बहुत से ऐसे मीडिया चैनल्स और प्रिंट मीडिया है, जो की स्वतंत्र नहीं है, किसी न किसी राजनितिक दल से उनका संपर्क होता है, जिसपर वह केंद्रित होतें हैं, जिसकी आलोचना वह मीडिया कभी नहीं करती और इस प्रकार विज़ुअल और प्रिंट मीडिया दोनों की स्वतंत्रता खत्म हो जाती है, जिससे हमारे देश की लोकतंत्र खतरे में आ जाती है।
ग) पत्रकारों के खिलाफ हमला-> भारत में पत्रकारों पर हमले करवाना बहुत ही आम बात हो गयी है और कई जगह तो पत्रकार की हत्या कर दी गयी है क्यूंकि पत्रकार ऐसे बहुत सी संवेदनशील मुद्दों और गंभीर संचालन को कवर और उनकी छानबीन करतें है, जिससे उनकी सुरक्षा खतरे में आ जाती है।
घ) पेड न्यूज़-> विज़ुअल मीडिया और प्रिंट मीडिया में भी भ्रस्टाचार कर समाचार को प्रकाशित किया जाता है, जो की स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया के लिए खतरा है।
ङ्ग) साइबर सुरक्षा खतरा-> प्रेस की स्वतंत्रता को सबसे बड़ी चुनौती ‘साइबर अपराध’ दे रहा है क्यूंकि भारत में पत्रकारों के निजी मोबाइल और एकाउंट्स बड़ी मात्रा में हैकर्स के द्वारा हैक किए जातें हैं, जिससे पत्रकारों की गुप्त जानकारियों का पता लगाया जा सके इसलिए, पत्रकारों के लिए साइबर सुरक्षा का खतरा देश में प्रेस की स्वतंत्रता पर सवाल खड़े करता है।
प्रेस की स्वतंत्रता भारत में इन सभी खतरों की वजह से सुरक्षित नहीं है और इसलिए भारत ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स‘ द्वारा प्रस्तुत किये गए “विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक” में कुल 180 देशों में 142 वां स्थान पे खड़ा है, जो की विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक देश के लिए शर्मनाक बात है और इस सूचकांक से भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर भी एक प्रश्नचिन्ह लगता है।
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता के लिए सुझाव।
- भारत में प्रेस को एक संवैधानिक निकाय का दर्जा देना चाहिए, जिससे भारत के लोकतंत्र में प्रेस को चौथी स्तंभ को मानने वाली बात सिद्ध हो सके।
- भारत में एक उच्च स्तर की कमिटी का गठन किया जाए, जो की प्रेस की संवैधानिक निकाय का गठन करने के लिए सुझाव प्रदान करे, जिसमे सर्वोच्च न्यायालय के जज कमिटी की अध्यक्ष्ता करें।
- फेक न्यूज़ और साइबर खतरों के खिलाफ न्यूज़ एजेंसियां एक अलग संस्था का गठन करें जो की केवल इन से सम्बंधित मामलों पर ध्यान दें।
- भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को कायम करने के लिए न्यूज़ चैनलों और प्रिंट मीडिया दोनों को अपनी नैतिकता का पालन करना होगा, जो की प्रेस की सच्चाई और पारदर्शिता, स्वतंत्रता और निष्पक्षता जैसे सिंद्धान्तो को सुनिश्चित कर सके।
अगर भारत की सरकार प्रेस से सम्बंधित इन बातों को गंभीरता पूर्वक मान कर विचार करती है तो हमारा देश विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में अपनी स्थान और भी अच्छा कर सकता है।