राधे-राधे, आदाब, सत्यश्रीकाल, हैलो मेरे प्यारे दोस्तों, आज के युग में मानव कितने मतलबी हो गएँ हैं की उन्हें यह भी ज्ञात नहीं है की जिस सृष्टि में आज वह रहतें हैं वही सृष्टि धीरे-धीरे जहरीली होते जा रही है, जिसमे पूर्ण रूप से मानव जिम्मेदार है क्यूंकि “पर्यावरण प्रदुषण:- भविष्य के विनाश की कहानी है। (Environmental Pollution:- The Story of Future Destruction)
जिसे आज भी हर मानव के द्वारा देखा और समझा जा रहा है लेकिन इसे गंभीरता से कोई नहीं ले रहा है और अगर किसी गिने-चुने मानव के द्वारा इसे गंभीरता से लिया भी जा रहा है तो क्या फायदा क्यूंकि अनदेखा करने वालों की संख्या गंभीरता से लेने वाले मानव के मुकाबले कई गुना अधिक है।
आज के युग में पर्यावरण प्रदुषण (Environmental Pollution) एक बहुत ही भयावह समस्या होती जा रही है जो की अपना प्रभाव सृष्टि के सभी प्राकृतिक क्षेत्रों में दिखा रही है फिर चाहे वह हवा, पानी, मिट्टी, वन, जिव-जंतु या फिर स्वयं मानव ही क्यों ना हो।
इस पृथ्वी पर मानव ही उन लाखों जीवों में से एक है जिसे ईश्वर ने सबसे अधिक सोचने और समझने की क्षमता दी है लेकिन दुर्भाग्य से इस सृष्टि में मानव ही अकेला एक ऐसा प्राणी है जो यह पर्यावरण प्रदुषण को पैदा करता है।
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*पर्यावरण प्रदुषण क्या है?
पर्यावरण प्रदुषण (Environmental Pollution) दूषित पदार्थों का वातावरण में प्रवेश करना है, जब वातावरण में रासायनिक पदार्थ, जहरीली गैसों का उत्सर्जन और ऐसे पदार्थ जो की पर्यावरण के अनुकूल नहीं होतें हैं और उनका वर्चस्व मानव गतिविधियों द्वारा बढ़ने लगता है जो की मानव और अन्य जीवित जीवों का नुकशान का कारण बनता है।
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*प्राचीन काल में प्रदुषण।
इतिहास के प्राचीन वैदिक काल में भी मानव थे लेकिन उस वक़्त मानव और सृष्टि के सम्बन्ध माँ और बेटे के जैसी हुआ करती थी लेकिन आज के युग में तो कई जगह बेटा खुद अपनी माँ को अपने से अलग करता हुआ नज़र आता है तो हम कैसे सोच सकतें हैं की आज मानव अपने प्राकृति माँ का ख्याल रखेगा। हमे अपने इतिहास से सीखना चाहिए भले ही क्यों न मानव आज विज्ञानं और आधुनिकीकरण में कितना भी आगे क्यों न बढ़ गया हो लेकिन कहीं-कहीं तजुर्बे भी इनके सामने हार जातें हैं।
वैदिक काल में पर्यावरण प्रदुषण इतनी संतुलित मात्रा में होती थी, जिसके कारण हमे सही समय पे वर्षा देखने को मिलती थी और वैदिक काल के प्रदुषण सही मायने में प्रदुषण नहीं होतें थे क्यूंकि उस वक़्त ऋषि-मुनियों द्वारा जो बड़े-बड़े हवन होतें थे वह उसके द्वारा उत्पन्न हुआ धुआँ होता था, जो सृष्टि के पर्यावरण को संतुलित रखने का काम करता था।
लेकिन, आज मानव द्वारा की गयी विभिन्न गतिविधियों का परिणाम हमे हमारी सृष्टि पर प्रदुषण के चादर के रूप में दिखाई दे रहा है।
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*पर्यावरण प्रदुषण के कारण।
हालाँकि जो भी पर्यावरण के प्रदूषित होने के कारण है वह सभी मानवताजनित गतिविधियां हैं और पृथ्वी पुरे ब्रह्माण्ड में एकमात्र ऐसी ग्रह है जहाँ पर्यावरण मौजूद है जिसकी बदौलत यहाँ जीवन संभव है।
लेकिन, पिछले कई वर्षों से मानव और पर्यावरण में संतुलन होने के कारण इस पृथ्वी पर जीवन फल-फूल रहें हैं परन्तु मानव के इस जिज्ञासा वाली भाव ने और अनुसंधान और विकाश की सीढ़ी ने हमेशा पर्यावरण को ठेश पहुँचाया है, जैसे:-
- देश में औधोगिकरण होना अच्छी बात है लेकिन पर्यावरण को नस्ट करके औधोगिकरण करना क्युंकि औधौगिक गतिविधियों के चलते आज हमारे वातावरण की हवाएँ दूषित हो रही है, पानी दूषित हो रहा है, मिट्टी भी दूषित हो रही है क्यूंकि जहरीली गैसों का हवा में मिलना, रासायनिक पदार्थों का पानी में मिलना और उन पानी से मिट्टी की उर्वरक शक्ति का खत्म होना।
- देश में लोगों से ज्यादा धीरे-धीरे वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है जिसमे उपयोग किये जाने वाले पेट्रोल, डीज़ल वातावरण में कार्बन उत्सर्जन करते हैं और तो और मानव द्वारा उपयोग किये जाने वाली एयर कंडीशनर, फ्रीज हमारे वातवरण को और गर्म करती है और कार्बन उत्सर्जन में इनका भी बहुत बड़ा योगदान है।
- हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष देश है तो यहाँ किसी भी त्यौहार में और खुशियों में वातावरण को बुरे तरीके से दूषित किया जाता है क्यूंकि आग तो पटाखे में मानव द्वारा लगाई जाती है लेकिन असल में जलता हमारा पर्यावरण है।
- देश में कचरे के पहाड़ तो जैसे आम बात हो गयी है, जिससे निकलने वाले जहरीली गैस पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है और यह कचरे के पहाड़ आपको अधिकतर बड़े शहरों में देखने को मिल जायेंगे।
- प्लास्टिक का उपयोग मानव द्वारा कहीं न कहीं पर्यावरण प्रदुषण में सबस बड़ा योगदान देती है क्यूंकि मानव द्वारा उपयोग की गयी प्लास्टिक मानव के मरने के बाद भी वह पर्यावरण में घुलती नहीं है जिससे अनेकों जिव-जंतुओं की मृत्यु हो रही है।
- कोयले दहन की समस्या आज भी हमारे देश में प्रदुषण की बहुत बड़ी समस्या है क्यूंकि कोयले से बिजली उत्पादन, कोयले से खाना बनाना, कोयले का उपयोग उद्योगों में करना, जिसके उपयोग के कारण आज भी हमारा भारत कोयले की खपत में पुरे विश्व में दूसरे स्थान पर है।
अब बात करें जब हमारे देश में पर्यावरण के प्रदूषित होने के इतने कारण हैं तो साथ-साथ इसके प्रभाव भी होंगे, तो बिलकुल प्रदुषण के प्रभाव भी बहुत ही गंभीर हैं।
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*पर्यावरण प्रदुषण का प्रभाव।
पर्यावरण के प्रदूषित होने का प्रभाव इतना खतरनाक है की हम और आप ऐसा सोच भी नहीं सकते क्यूंकि मानव को खुली आँखों से कुछ दीखता नहीं है लेकिन जब आंकड़े सामने आतें हैं तब पता चलता है की प्रदुषण और धरती के गर्म होने के कारण कैसे जलवायु परिवर्तन हो रही है।
हालाँकि फिर भी मानव इतना होने के बावजूद भी पर्यावरण के प्रदुषण को गंभीरता से नहीं लेते हैं। ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन‘ के अनुसार यह बताया गया है की प्रदूषित हवा में महीन कणो के संपर्क में आने से हर साल लगभग 70 लाख लोगों की मौत होती है, जो फेफड़ों और ह्रदय प्रणाली में गहराई से प्रवेश करतें हैं, जिससे कई तरह के ह्रदय रोग और स्वसन संक्रमण सहित कई अन्य बीमारियां होती हैं।
अगर बात करें अपनी भारत की तो, 2019 में दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 21 शहर भारत में थें 140 करोड़ लोग हवा में सांस लेते हैं जो WHO के सुरक्षित सिमा से 10 गुणा अधिक प्रदूषित है और 2019 में लगभग 17 लाख मौतें वायु प्रदुषण से हुई थी लेकिन वहीं कोरोना महामारी के कारण 2020 में मौतें कम देखने को मिली क्यूंकि सभी कार्य लॉकडाउन में बंद पड़ी थीं।
क) जो भी फल सब्जियां हम कहतें हैं वह सब भी प्रदूषित है क्यूंकि प्रदुषण के कारण मिट्टी की उर्वरक शक्ति नष्ट हो जाती है जिससे मिट्टी में अन्य प्रकार के उर्वरक और कीटनाशक मिलाएँ जातें हैं।
ख) औधोगिक में उपयोग किये जाने वाले रासायनिक पदार्थ का बहार निकलना जिससे हमारा भूजल भी प्रदूषित हो रहा है इसलिए मानव मशीन द्वारा शुद्ध किया पानी पिने के लिए मजबूर है।
ग) प्रदुषण के द्वारा सबसे खतरनाक प्रभाव मानव को ही पहुंचाया जा रहा है, जिससे मानव के शरीर में अनेकों प्रकार के रोग देखने को मिल रहें हैं।
घ) हमारे देश के इतिहास में ऐसी भी घटनायें हुईं हैं जो इस बात का प्रमाण है की पर्यावरण प्रदुषण (Environmental Pollution) कितना भयंकर रूप ले सकती है, जैसे:-
- 1984 में हुई ‘भोपाल गैस त्रासदी‘, जहाँ मिथाइल आईसोसाईनाइट गैस लीक होने के कारण महिला और बच्चों सहित 2000 से अधिक लोग मारे गए थें।
- 2020 में हुई, ‘विज़ाग गैस लीक‘ आँध्रप्रदेश में, जहाँ जहरीली स्टारइन गैस लीक होने के कारण कितने लोग मारे गए और सैकड़ो घायल हुए।
आज भी हमे यह संदेह होता है की औधोगिकी प्रगति और विज्ञानं और आधुनिकीकरण की यह उपलब्धियां हमे वास्तव में सम्रृद्ध शिखर पर चढ़ने में मदद कर रही है या फिर हम इसके विपरीत परिस्थितियों में जा रहें हैं।
*पर्यावरण प्रदुषण से निपटने के लिए सरकार की पहल।
अब जब पर्यावरण प्रदुषण (Environmental Pollution) के कारण नष्ट होता हुआ नज़र आ रहा है तो उसे बचाने और संजोने के लिए पहल तो करनी पड़ेगी क्यूंकि पर्यावरण खत्म हो जायेगा तो पृथ्वी पर जीवन भी स्वयं ही खत्म हो जायेगा, तो इसलिए पर्यावरण को ध्यान में रख कर सरकार ने कुछ कदम उठायें हैं:-
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम
इसका उद्देश्य देश भर में वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क को बढ़ाने के अलावा वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उपशमन के लिए व्यापक प्रबंधन योजना है। प्रदूषण के सभी स्रोतों को कवर करने वाला सहयोगी और भागीदारी दृष्टिकोण और संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों के बीच समन्वय हितधारक।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी)
यह पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के तहत पर्यावरण और वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएं प्रदान करता है। यह तकनीकी सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करके राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की गतिविधियों का समन्वय करता है और उनके बीच विवादों को भी हल करता है।
LiDAR (लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग)
समय के साथ प्रदूषक के विकास को ट्रैक करने और तेल रिफाइनरियों जैसे भंडारण सुविधाओं और औद्योगिक संयंत्रों में कार्बनिक प्रदूषकों के रिसाव का पता लगाने के लिए दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता की लंबवत निगरानी के लिए उपयोग किया जा रहा है।
राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई)
AQI दैनिक वायु गुणवत्ता की रिपोर्टिंग के लिए एक सूचकांक है। यह बताता है कि हवा कितनी स्वच्छ या प्रदूषित है, एक्यूआई मूल्य जितना अधिक होगा, वायु प्रदूषण का स्तर उतना ही अधिक होगा और स्वास्थ्य की चिंता उतनी ही अधिक होगी।
यह PM2.5, ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड, अमोनिया, लेड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, PM10 को मापता है।
केंद्र द्वारा संचालित वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान और अनुसंधान प्रणाली (सफर)
इसका उद्देश्य 72 घंटे के अग्रिम मौसम पूर्वानुमान के साथ कलर कोडिंग के साथ 24×7 आधार पर रीयल-टाइम वायु गुणवत्ता सूचकांक प्रदान करना है और नागरिकों को पहले से तैयार करने के लिए स्वास्थ्य परामर्श जारी करना।
हमारे देश में और पुरे विश्व में प्रदुषण से निपटने के लिए बहुत सी तरकीबें अपनाई जा रहीं हैं लेकिन जिस स्तर पर और तेजी से इसपर काम होना चाहिए उसमे कमी देखने को मिल रही है, इसलिए हमे पर्यावरण प्रदुषण की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती दिख रही है।
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*पर्यावरण प्रदुषण को कैसे रोका जाए।
पर्यावरण प्रदुषण (Environmental Pollution) को रोकना किसी 2-4 मानव के बस की बात नहीं है क्यूंकि इसे कम करने और रोकने के लिए सबकी भागीदारी होना आवश्यक है अगर ज्यादातर लोग भी अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ निभातें हैं तो अन्य दूसरे लोग भी उन्हें देखकर सीखेंगे क्यूंकि हमारे देश में लोग अक्सर दूसरे की नक़ल करतें हैं।
- नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग बड़े पैमाने पर करें अर्थात सौर ऊर्जा, पवन चक्कियां, तापीय ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा, जैव-ईंधन ऊर्जा।
- अपने आप को पेट्रोल वाहनों से इलेक्ट्रिक वाहनों में स्थानांतरित करने का प्रयास करें और कम दूरी के लिए साइकिल का उपयोग करें।
- अपने घर का निर्माण करते समय बिजली के लिए सौर पैनलों का उपयोग करने का प्रयास करें।
- किसी भी प्रकार के त्यौहार या पार्टियों को मनाते समय पर्यावरण के अनुकूल पटाखों का उपयोग करने का प्रयास करें जिससे प्रदूषण न हो।
- हमेशा आवश्यकता के समय एयर कंडीशनर का उपयोग करें और इसका उपयोग करते समय तापमान 26 डिग्री से ऊपर रखें क्योंकि इससे कम होने से ग्लोबल वार्मिंग होती है।
- प्लास्टिक के उपयोग से बचने की कोशिश करें और बाजार में अपने खुद के कैरी बैग का उपयोग करें और एक जिम्मेदार नागरिक बनें।
- सरकार को चाहिए कि वह पर्यावरण प्रदूषण (Environmental Pollution) के बारे में निचले स्तर से लेकर उच्च स्तर तक बहुत बड़े स्तर पर जागरूकता फैलाए, ताकि एक मूर्ख व्यक्ति भी पर्यावरण प्रदूषण के बारे में जान सके।
- सरकार कम से कम यह तो देख सकती है कि भविष्य की फैक्ट्रियां बस्ती से दूर एक औद्योगिक परिसर, दूर जगह पर स्थापित हो रही हैं।
- वनों की कटाई को रोका जाना चाहिए और वानिकी का विकास किया जाना चाहिए।
- फैक्ट्री के कचरे को नदियों में बहाए जाने पर रोक लगाई जानी चाहिए ताकि नदी के पानी को प्रदूषण मुक्त बनाया जा सके और सभी प्रकार के औद्योगिक कचरे के लिए एक अलग रास्ता भी सुनिश्चित किया जा सके।
- पर्यावरण प्रदूषण (Environmental Pollution) के स्तर को कम करने के लिए जैविक खेती एक समाधान हो सकता है।
समय तेजी से निकल रहा है। हमारे पास रहने के लिए एक ही धरती है और अगर हम इसे बचाने के लिए कुछ नहीं करते हैं, तो हम केवल उलटी गिनती शुरू कर सकते हैं। पर्यावरण को बचाने और सुधारने के लिए हर संभव प्रयास करना हम में से प्रत्येक का कर्तव्य है। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब स्वच्छ जल, सुरक्षित वायु, अशांत भूमि सोने से दुर्लभ वस्तु बन जाए और यह भी हो कि मनुष्य भी संग्रहालयों में ही मिल जाए और प्रदूषण के कारण विश्व का विनाश भविष्य की कहानी बन जाए।
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राधे राधे बहुत ही अच्छा लिखा है लोग अगर समझ जाय तो एक अच्छी पहल है