आज मैं आप सब से “दहेज़ (Dowry)” के सम्बन्ध में समाज की वह वास्तविक सोच आप सब के साथ साझा करूँगा, जिसके कारण इस समाज से दहेज़ प्रथा समाप्त ही नहीं हो रहा है। हम सब समाज में दहेज़ के विरोध में बातें करते हैं लेकिन जब समय आता है तो अधिकतर लोग अपना असली चेहरा समाज के सामने प्रकट कर देतें हैं। दहेज़ हमारे समाज की एक ऐसी कुप्रथा है जिसने कितनी बेटियों की ज़िन्दगी बर्बाद कर दी है, जिसने कितनी बेटियों की जान ले ली है, जिसने कितने ही माँ-बाप के अरमानो को कुचल कर रख दिया, जिसने कितने माँ-बाप को खून के आसूँ रोने के लिए मजबूर कर दिया इन सब के बावजूद समाज में आज भी दहेज़ लेने का प्रचलन को लोग अपनी शान समझतें हैं
हमारे समाज में दहेज़ लेने वालों की सोच इस हद तक गिर गयी है की वह अधिकतम दहेज़ की मांग को अपनी शान समझतें हैं, लेकिन यहाँ मैं गुजारिस करूँगा उनसे जो दहेज़ लेना अपनी शान समझतें हैं की वह खुद एक बाप के नाते यह सोच कर देखे बेटी के पिता ने अपनी पूरी ज़िन्दगी की कमाई, अपने घर की किलकारी और अपने घर का रौनक ही तुम्हे सौंप रहा हो, यह सोच कर की उसकी बेटी अब तुम्हारे घर को रौनक करे और तुम्हारे घर के वंश को आगे बढ़ाये तो तुम ऐसे पिता से दहेज़ की क्या मांग करते हो जो तुम्हे अपने घर की सारी खुशियां ही दे रहा हो