भारतीय संस्कृति पर सिनेमा का प्रभाव। (Influence of Cinema on Indian Culture in Hindi.)

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हमारा भारत विभिन्न प्रकार की परम्पराओं एवं संस्कृतियों का एक अनमोल संगम है, जिसकी चर्चा पुरे विश्व में की जाती है और जिसके कारण हमारे भारत को ‘संस्कृति समृद्ध राष्ट्र’ भी कहा जाता है। जहाँ ‘कोष-कोष पर बदले पानी और सवा कोष पर वाणी’, ऐसा संस्कृति समृद्ध राष्ट्र पुरे विश्व में नहीं है और ‘सर मार्टिन लूथर किंग’ के द्वारा भी एक बहुत ही सुन्दर बात कही गयी है की “मैं अन्य देशों में एक पर्यटक के रूप में जा सकता हूं, लेकिन भारत में मैं एक तीर्थयात्री के रूप में आता हूं”, जो की हमारे भारतीय संस्कृति की ओर इशारा करता है । लेकिन, दोस्तों अब भारत में धीरे-धीरे हमारी परम्पराओं एवं संस्कृतियों का पतन हो रहा है, भारतीय मूल के लोग अपनी संस्कृतियों व सभ्यताओं से दूर होतें जा रहें हैं, जिसका प्रमुख कारण “भारतीय संस्कृति पर सिनेमा का प्रभाव (Bhartiya Sanskriti par Cinema ka Prabhav)” है।

सिनेमा हमारे समाज को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार से प्रभावित करती है क्यूंकि सिनेमा से हम अच्छाई और बुराई दोनों ग्रहण करते है । सिनेमा समाज के लोगों की मानसिकता को परिवर्तन करने में और समाज के निर्माण में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और वैसे भी सिनेमा को समाज का दर्पण कहा जाता है, जो की आमतौर पर पुरानी प्रकाशित हुई सिनेमाओं पर लागू होती है लेकिन वहीँ आज समाज सिनेमाओं का दर्पण हो गया हैक्यूंकि आज जो सिनेमाओं में प्रसारित किया जाता है समाज के लोग ठीक वैसा ही करते नज़र आते हैं।

उदारहण के लिए:- पश्चिमी संस्कृति का विस्तार, हेयर स्टाइल, फैशन, एक्शन, बॉडी लैंग्वेज, बात करने के तरीके हर चीज को देख कर उसकी नक़ल करते हैं और ऐसा करने से उन्हें लगता है की यह सब करके वह लोकप्रिय हो जायेंगे।

cinema ka bhartiya sanskriti par prabhav
Bhartiya Sanskriti par Cinema ka Prabhav

पहले की हिंदी फ़िल्में हमे हमारी संस्कृतियों से, परम्पराओं से, संस्कारों से, परिवार से, समाज से, सभी धर्मों को अन्य धर्मों से जोड़ कर रखती थी। लेकिन वहीँ आज की प्रसारित फिल्मों में इन सब की भूमिका को खत्म करके पश्चिमी संस्कृति को प्रसारित किया जाता है, जहाँ नग्नता और अश्लीलता, वासना, हिंसा, शराब पीना-जुआ खेलना, अपनी संस्कृति को निचा दिखाना और अपने परम्पराओं एवं सभ्यताओं के विरुद्ध जाकर किसी चीज को प्रसारित किया जाता है, जो की भारतीय समाज पर एक गहरा नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।  

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हमारे भारत में हिंदी सिनेमाओं का प्रभाव समाज के लोगों पर इस हद तक हो गया है की लोग स्वयं अपनी सभ्यता और संस्कृतियों से दूर होतें चले जा रहें हैं, जहाँ से उनका सृजन हुआ है। भारतीय मूल के हिंदी सिनेमाओं में पश्चिमी देशों का प्रभाव इतना अधिक प्रसारित किया जाता है की जिसका नकारात्मक प्रभाव हमारे समाज के लोगों पर अपनी संस्कृतियों के खिलाफ हो रहा है और जिसके कारण भारत की संस्कृति नष्ट होते जा रही है।

हिंदी सिनेमा हमारे समाज पर इतना नाकारात्मक प्रभाव डालता जा रहा है की वह लोगों की भावनाओं, विचारों, रहन-सहन को परिवर्तित कर चूका है और हमारे दिमाग में पश्चिमी देशों के रहन-सहन का प्रसार करते जा रहा है, जो की हमारे भारतीय संस्कृति को दाव पर रखकर लोगों का ह्रदय परिवर्तन कर रहें हैं और भारत के लोगों को अपनी संस्कृति से दूर करते जा रहें हैं।

भारतीय हिंदी सिनेमा हमारे देश की युवा पीढ़ी के भीतर अपने मूल संस्कारों एवं संस्कृतियों को बदलकर उनमे पश्चिमी संस्कृतियों का सृजन कर रहें हैं और समाज में युवा पीढ़ी कल का भविष्य है, ऐसे में युवा जैसा देखेंगे वैसा ही सीखेंगे और भविष्य में उसका ही प्रसार करेंगे, आज के हिंदी सिनेमाओं को देखकर युवा पीढ़ी के दिमाग में झूठी धारणाएँ बहुत तेजी से विकसित हो रही है क्यूंकि युवा पीढ़ी फ़िल्मी दुनिया और वास्तविकता के बिच की खाई को महसूस करने में असफल हो जाती है।

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भारतीय सभ्यता की पहचान है, संस्कृति,

हमारी एकता का प्रमाण है, संस्कृति,

हर भारतीय की विरासत है, संस्कृति,

हमारे भारत की अदम्य शक्ति है, संस्कृति,

हमारा विश्वास एवं हमारी प्रेरणा है, संस्कृति।

समाज पर सिनेमा का प्रभाव।

भारतीय हिंदी सिनेमा हमारे भारतीय मूल की संस्कृतियों को नीलाम कर रही है और पश्चिमी संस्कृति का विस्तार कर रही है, जैसे:-

  • भारत में बढ़ता अपराध-> कहीं-न-कहीं भारतीय सिनेमा समाज में महिलाओं और लड़कियों के प्रति बढ़ती हुई अपराध का कारण है क्यूंकि जितनी अश्लीलता और नग्नता हिंदी सिनेमाओं में प्रसारित की जाती है, यह चर्चा का विषय है। आज की भारतीय हिंदी सिनेमा महिलाओं को एक वस्तु की भातिं उपयोग करती है, जो की एक बहुत ही शर्मनाक बात है।
  • भारत में अराजकता-> भारत में अक्सर हिंदी फ़िल्में विवाद का कारण बनती हैं, जिसका परिणाम भारत में अहिंसा, एकता का खण्डन, भारतीय संस्कृति का मजाक और गलत कामों को प्रोत्साहित करते नज़र आती है।
  • सामाजिक प्रथाओं में बदलाव-> हमारे देश की सामाजिक प्रथा एवं भारतीय संस्कृति जिसे पुरे विश्व के लोग श्रेष्ठ मानकर उसे अपनाते हुए नज़र आ रहें हैं, वहीँ दूसरी तरफ सिनेमा की दुनिया ने हमारे भारत में उस भाव को नष्ट कर दिया है और आज की भारतीय सभ्यता पश्चिमी सभ्यता को अधिक महत्व दे रही है फिर क्यों ना वह विवाह हो, प्रेम के सम्बन्ध हो, खान-पान हो, बोल-चाल हो ऐसे अन्य बहुत सी चीजें समाज में बदलती जा रही है। जैसे; समलैंगिक विवाह, विवाह के बिना जोड़ों का साथ रहना। 
  • युवा वर्ग अपने मार्ग से भटक जातें हैं-> फिल्मों में बहुत से ऐसे सीन्स और गतिविधियां दिखाई जातीं हैं, जो युवाओं को अपने मार्ग से भटका देती है और वह अन्य गलत मार्गों पर अग्रसर हो जाता है, जो समाज पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। जैसे; समाज में लड़कियों और छोटी बच्चियों के साथ छेड़खानी के मामले, हत्या के मामले, नशीली पदार्थों के सेवन करने के मामले, ऐसे अन्य बहुत सी नाकारात्मकता समाज में फैली हुई है, जिसके लिए कहीं न कहीं सिनेमा जिम्मेदार है।

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संस्कारों पर सिनेमा का प्रभाव।

भारत अपने संस्कारों की प्रवृति से भी विख्यात है क्यूंकि पुरे विश्व में वसुधैव कुटुंबकम की निति को मानने और इसे प्रसार करने में भारत प्रथम है लेकिन इन संस्कारों को जब जमीनी स्तर पर समाज के भीतर देखा जाए तो वह भारत में धुंदली नज़र आती है क्यूंकि बहुत कम ही ऐसी हिंदी फ़िल्में होंगी जो की भारतीय संस्कृतियों के अनुकूल हैं। ज्यादातर हिंदी फ़िल्में हमारे समाज में लोगों के दिमाग में कचड़ा भरने का काम करती है, जो की बिलकुल हमारे धर्म, हमारे संस्कारों, हमारी संस्कृतियों के खिलाफ है।

  • अनैतिकता का प्रसार-> आज कल की ज्यादातर हिंदी फिल्मों में अनैतिकता का प्रचलन शीर्ष पर देखने को मिलता है लोगों में महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों क्र प्रति सम्मान खत्म हो गया है, समाज में किसी प्रकार की घटना होने पर, उसे मोबाइल में फिल्माने वाले लोग ज्यादा होंगे।
  • पौराणिक विचारों का दमन-> समय के साथ बदलना अच्छी बात है और नई चीजों को अपना कर चलना भी अच्छी बात है, इन सब के अलावा हमे यह भी ध्यान रखना चाहिए की अपने संस्कृतियों और परम्पराओं को साथ लेकर भी चलना जरुरी है लेकिन आज के ज़माने के लोग इसका विपरीत कर रहें हैं। जैसे; आजकल लोग एकदूसरे से हाथ मिलाना ज्यादा स्टैण्डर्ड मानते हैं ना की हाथ जोड़ कर नमस्ते करना जबकि हमारी संस्कृति नमस्ते करना सिखाती है, लोग आजकल इंग्लिश नावेल पढ़ना ज्यादा पसंद करतें हैं ना की भगवद गीता, कुरान। ऐसे अन्य उदारहण हैं, जहाँ हिंदी सिनेमा का पश्चिमी प्रभाव हमारे भारत की संस्कृति का विनाश कर है। 
  • बच्चों में व्यस्क्ता उम्र से पहले झलकने लगती है-> भारत में आजकल की हिंदी फ़िल्में बच्चों के व्यस्क मनोवृति को उम्र से पहले विकसित कर देती है, जो की उनपर और समाज पर नाकारात्मक प्रभाव डालने के साथ उनके प्रगतिशील विचारों को खत्म कर देती है।
  • युवा और बच्चें अपनी मूल पहचान से वंचित होने लगते हैं-> ऐसा तब होता है जब बच्चें और युवा अपने पसंदीदा व्यक्तित्व को फिल्मों में देख कर उनके चरित्र की नक़ल करना शुरू कर देतें हैं, फिल्मों में जैसा किया जाता है हूबहू वैसा करने की कोशिश करते हैं। ऐसा करने से बच्चे अपनी मूल पहचान को नहीं समझ पाते हैं।

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निष्कर्ष।

हिंदी सिनेमा हमारे भारतीय संस्कृति और सभ्यता पर बहुत ही गहरा प्रभाव डाल रहा है, जो की सभी अभिभावकों और भारत के लोगों को समझना जरुरी है नहीं तो हमारी आने वाली पीढ़ी अपनी अतुल्य भारत की अमूल्य धरोहर और संस्कृति से अपरिचित रह जाएगी। भारतीय संस्कृति और सभ्यता को पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव से बचाने के लिए सरकार को भी अहम् कदम उठाने होंगे और साथ ही लोगों में जागरूकता का भी प्रसार करना होगा, जिससे भारतीय लोगों को यह एहसाँस हो सके की किस प्रकार से हिंदी सिनेमा और सीरीज हमे हमारे संस्कारों एवं संस्कृतियों से दूर करते जा रहें हैं।

सरकार को हिंदी सिनेमाओं पर कुछ कानूनी पाबंदियां लगाना आवश्यक है, जिससे हमारे भारत की संस्कृतियों, सभ्यताओं, परम्पराओं और संस्कारों को छिन्न होने से बचाया जा सके, जैसे:-

  • सरकार को फिल्मों पर ऐज बार लगाना चाहिए, जिन फिल्मों में वयस्क दृश्य शामिल हो, जिनमे नशीले सेवन शामिल हो ऐसी फ़िल्में आयु प्रतिबंधित होनी चाहिए। 
  • सरकार को गानों में हथियारों के उपयोग और उसके प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए, जो की युवा वर्ग को गलत काम करने के लिए अत्यधिक प्रोत्साहित करते हैं। इसी प्रकार का निर्णय अभी हाल ही में पंजाब की सरकार के द्वारा लिया गया है, उन्होंने वहां गानों पर हथियारों के प्रदर्शन करना प्रतिबंध कर दिया है।
  • ऐसे विज्ञापन जो देश के युवा वर्ग को नशा करना सिखाती हो और जुआ खेलने के लिए प्रेरित करती हो, उसे भी प्रतिबंधित कर देना चाहिए।

इन सब के अलावा, अभिभावक अपने भारत की संस्कृति, संस्कारों और परम्पराओं को छिन्न होने से बचाने में सबसे बड़ी भूमिका निभा सकते हैं, जो की भारत के मूल सम्पदाओं को भविष्य में भी संभाल कर रखेंगे।

दोस्तों, हमारे समाज में भारतीय संस्कृति को नष्ट कर पश्चिमी संस्कृति का प्रसार हो रहा है, जिसका एक प्रमुख कारण हिंदी सिनेमा की दुनिया है, आपके विचार इसके बारे में क्या हैं आप निचे कमेंट करके जरूर बताएँ।

दोस्तों, अगर आप अपने समाज और देश से सम्बंधित ऐसे और भी आर्टिकल्स पढ़ना चाहतें हैं, तो यहाँ क्लिक करके पढ़ सकतें हैं।


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2 thoughts on “भारतीय संस्कृति पर सिनेमा का प्रभाव। (Influence of Cinema on Indian Culture in Hindi.)”

  1. अति सुन्दर प्रस्तुति और लेख को भी अच्छे से अच्छा समझा कर बताया गया है कि मुझे कुछ सीखने को मिला

  2. Well this is really the need of the time to adopt our own culture and follow the ethical path for a better society 🙏.
    Thankq for such a beautiful article

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