राधे-राधे, आदाब, सत्यश्रीअकाल, हैलो मेरे प्यारे दोस्तों, जैसा की हम सब जानते हैं की हमारे देश में जनता को मुफ्त की चीजें बहुत अधिक प्रिय होती है लेकिन हमे यह नहीं पता होता है की उस मुफ्त की वस्तु की कीमत पहले ही हमसे वसूल ली गयी है, ठीक इसी प्रकार “भारतीय राजनीती में मुफ्तखोरी (Bhartiya rajniti mein muftkhori)” का प्रचलन जनता को क्षणिक भर का ख़ुशी तो प्रदान करता है लेकिन, यह देश की अर्थव्यवस्था पर आर्थिक संकट भी पैदा कर सकता है, जिसका प्रभाव जनता की क्षणिक भर की ख़ुशी की तुलना में बहुत ही नाकारात्मक हो सकता है।
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मुफ्तखोरी की राजनीति क्या है?
मुफ्तखोरी की राजनीति जनता को लुभाने की एक प्रक्रिया है, जिसमे विभिन्न राजनितिक दलों द्वारा मुफ्त में बिजली, पानी, सार्वजनिक परिवहन का किराया, ऋण माफ़ी के साथ-साथ मुफ्त में लैपटॉप, स्मार्टफोन, टीवी जनता को प्रदान किया जाता है।
जनता को लुभाने का यह प्रक्रिया देश की आर्थिक स्तिथि को कमजोर बनाता है, जिसका उपयोग राजनितिक दल चुनाव के दौरान केवल अपनी सत्ता कायम करने और बनाये रखने के लिए करतें हैं, इसके अतिरिक्त भारतीय राजनीति में मुफ्तखोरी का कोई उपयोग नहीं है साथ-ही-साथ मुफ्तखोरी की प्रक्रिया से जनता को किसी प्रकार का लाभ नहीं है क्यूंकि अप्रत्यक्ष तौर पर इसका नुक्सान आर्थिक संकट के रूप में सामने निकल कर आता है।
Bhartiya rajniti mein muftkhori राजनितिक दलों के लिए चुनाव जितने का सबसे आसान और सरल तरीका बन गया है क्यूंकि नेता भी जनता के स्वभाव से परिचित होकर उन्हें मुफ्त की चीजें प्रदान करती हैं, जिससे वह जनता की मत पर विजय प्राप्त कर सके।
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भारतीय राजनीति में मुफ्तखोरी के कारण।
मुफ्तखोरी का यह एजेंडा राजनीती में राजनितिक दलों के लिए आम जनता को अपनी पार्टी की तरफ आकर्षित करने का एक औजार है, जिसका उपयोग अधिकतर राज्यों की पार्टियां चुनाव जितने के मतलब से करती हैं। Bhartiya rajniti mein muftkhori करने के पीछे का कारण राजनितिक दल कुछ और ही बतातें हैं, जैसे:-
- सार्वजनिक जनता के कल्याण के लिए-> भारतीय राजनीति में मुफ्तखोरी राजनितिक दलों के मतलब से जनता के कल्याण और बेहतर भविष्य के लिए है क्यूंकि जनता भी राजनितिक दलों से उम्मीद लगाए बैठी रहती है की कौन सी राजनितिक दल हमारी बिजली, पानी मुफ्त कर देगी, हमे मुफ्त में अन्य सेवायें उपलब्ध करवाएगी।
- कम विकसित राज्यों के मदद के लिए-> भारतीय राजनीति में मुफ्तखोरी कम विकसित राज्यों में कर की छूट प्रदान करती है, सामान्य से अधिक सब्सिडी प्रदान करती है, किसानो का कर्ज माफ़ करती है, जिससे राज्य की राजनितिक दल जनता की मदद करने के साथ राज्य को विकसित बना सके।
- गरीबों की मदद करने के लिए-> भारतीय राजनीति में मुफ्तखोरी गरीबों को जरुरत की वस्तुएं प्रदान करता है, उनकी मदद करने के साथ-साथ उन्हें टीवी, मिक्सी, स्मार्टफोन, लैपटॉप, साइकिल, पैसे जैसी अन्य वस्तुएँ प्रदान करके उन्हें ख़ुशी देता है।
हालाँकि, लोकतान्त्रिक देश में जन कल्याण के लिए योजनाएं, सब्सिडी, जनता के हित के लिए काम करना यह सब अनिवार्य है, लेकिन केवल चुनाव जितने और अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए नहीं बल्कि पुरे समाज एवं राष्ट्र के विकास के लिए क्यूंकि Bhartiya rajniti mein muftkhori केवल चुनाव के वक़्त देखने को मिलती है, जिसमे लालच की खुशबु मिली होती है और इसमें कौन सा जन कल्याण निहित होता है।
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भारतीय राजनीती में मुफ्तखोरी का प्रभाव।
Bhartiya rajniti mein muftkhori देश को एवं देश की भोली-भाली जनता पर बहुत ही गंभीर रूप से अपना प्रभाव डाल सकती है, जिसका असर देश में धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था पर देखने को मिलता है और साथ-ही-साथ इसके संकट का मार देश की जनता पर विभिन्न प्रकार के आर्थिक रूप से पड़ता है।
- राज्यों में आर्थिक संकट का बोझ और कर्ज में वृद्धि होना-> राज्य में चुनाव प्रचार के दौरान जब राजनितिक दल मुफ्त में वस्तुएं प्रदान करने और अन्य सुविधायें, जैसे कर में कटौती, कर्ज माफ़ी के बारे में जनता से वादें करतें हैं, तब सत्ता ग्रहण करने के बाद राज्य सरकार अपने किये वादे को पूरा करने के लिए सरकारी खजाने से उनका वित्तपोषण करती है।
जिसका परिणाम राज्य सरकार पर आर्थिक संकट के बोझ में पड़ता है क्यूंकि सरकार की आय में कमी होने लगती है और व्यय में वृद्धि हो जाती है, जिसके कारण राज्य सरकार को कर्ज लेने की नौबत आ जाती है।
- देश में महंगाई की समस्या और आर्थिक संकट-> Rajniti mein muftkhori अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी राजकोष पर दबाव डालती है, जिसके कारण देश में आर्थिक संकट उत्पन्न होने लगती है और आर्थिक संकट अर्थव्यवस्था में महंगाई को प्रेरित करता है क्यूंकि सरकार को सरकारी राजकोष भरना होता है, जिसका सीधा असर जनता को होता है।
- देश का विदेशी मुद्रा भण्डार कम होना-> यदि सरकार किसी भी प्रकार की मुफ्त सुविधा या फिर अधिक सब्सिडी निर्यात कर रहे वस्तुओं पर प्रदान करती है तो इसका सीधा असर देश की विदेशी मुद्रा भण्डार पर पड़ता है, जिससे देश की निर्यात करने की शक्ति कमजोर होने लगती है क्यूंकि विदेशी मुद्रा भण्डार देश के पास सिमित हो जाती है।
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राजनीति में मुफ्तखोरी के प्रभाव का वैश्विक पहलु।
Rajniti mein muftkhori केवल भारत के विषय में ही चिंता का कारण नहीं बना हुआ है बल्कि इसका नाकारात्मक प्रभाव भारत के पडोसी देशों की अर्थव्यवस्था पर प्रत्यक्ष रूप से देखने को मिल रहा है, जैसे:-
- श्रीलंका का आर्थिक संकट, मुफ्तखोरी की राजनीति का एक बड़ा उदारहण है, हालाँकि, अन्य कारण भी हैं लेकिन मुफ्तखोरी का प्रभाव भी शामिल है क्यूंकि वहाँ की सरकार ने अपने देश में चुनाव जितने के लिए बहुत सी चीजें मुफ्त में प्रदान की, मूल्य वर्धित कर (Value Added Tax) को आधा कर दिया और साथ-साथ निर्यात वस्तुओं में सामान्य से अधिक सब्सिडी पेट्रोल-डीजल पर प्रदान की, जिसका प्रभाव श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भण्डार पर हुआ और विदेशी मुद्रा भण्डार धीरे-धीरे खत्म होने लगा।
इसके कारण ही श्रीलंका की सरकार को अपनी अर्थव्यवस्था बचाने के लिए दूसरे देशों और बड़े निकायों से कर्ज लेना पड़ा और साथ-ही-साथ देश में वस्तुओं की कीमतों वृद्धि करनी पड़ी, जिससे आम लोगों को महंगाई का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बावजूद भी स्तिथि बदतर हो गयी क्यूंकि जनता के हाथ में पैसे नहीं थें और इसलिए श्रीलंका में आर्थिक संकट उत्पन्न होने के कारण हालात बदतर हो गएँ हैं।
- पकिस्तान में भी आर्थिक संकट के कारण अस्थिरता उत्पन्न हो रही है क्यूंकि इमरान खान की सरकार ने भी चुनाव जितने के लिए अपनी जनता को मुफ्त की चीजें और निर्यात पेट्रोल-डीजल पर उच्च सब्सिडी प्रदान की, जिसका असर विदेशी मुद्रा भण्डार पर हुआ और अब पकिस्तान भी धीरे-धीरे श्रीलंका की राह पर आगे बढ़ रहा है।
ऐसी परिस्थिति को देखते हुए ‘भारतीय राजनीति में मुफ्तखोरी (Bhartiya rajniti mein muftkhori)’ का प्रचलन चाणक्य की एक बहुत ही प्रसिद्ध कही गयी बात की ओर इशारा करती है की ‘हमे हमेशा दूसरों की गलतियों से सीखना चाहिए’।
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निष्कर्ष।
Rajniti mein muftkhori एक मजबूत लोकतान्त्रिक देश के लिए हानिकारक साबित हो सकती है, जो की लोकतंत्र के स्वस्थ अर्थव्यवस्था को खोकला बना सकती है। हालंकि, भारतीय राजनीति में भी इस समस्या का कोई निवारण नहीं है, इसलिए अभी हाल में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा भी राजनीति में मुफ्तखोरी के इस प्रचलन पर चिंता व्यक्त करते हुए इसे सिमित करने को कहा है और इसपर गंभीरता पूर्वक विचार करके चुनाव निर्वाचन आयोग को राजनीति में मुफ्तखोरी के प्रति राजनितिक दलों पर कार्यवाही करने को कहा है।
जबकि चुनाव निर्वाचन आयोग भी राजनीति में मुफ्तखोरी के प्रति किसी भी प्रकार की कार्यवाही करने में असमर्थ है क्यूंकि राजनीति में मुफ्तखोरी को सिमित करने के लिए कानून केवल केंद्र सरकार लेकर आ सकती है और भारत में कानून लाना बेहद जरुरी है क्यूंकि तभी राजनीती में मुफ्तखोरी नियंत्रित किया जा सकता है।
एक अन्य और आखिरी उपाय भी है जिससे राजनीती में मुफ्तखोरी को नियंत्रित किया जा सकता है, वह जनता स्वयं ही है क्यूंकि आम जनता केवल अपने फायदे के बारे में सोचती है जबकि, मुफ्त चीजें प्रदान करने के पीछे की सच्चाई से वह अपरिचित रहती है। इसलिए, देश की जनता में मुफ्त की राजनीति के प्रति जागरूकता फैलाना आवश्यक है, जिससे जनता स्वयं यह फैसला ले सके की उन्हें क्या जरुरत है और क्या नहीं।
दोस्तों, ‘भारतीय राजनीति में मुफ्तखोरी’ देश के लिए हानिकारक है या नहीं आप इसके बारे में क्या सोचतें हैं अपनी रे निचे कमेंट करके अवश्य बताएं।