भारतीय नागरिक के मौलिक अधिकार। (Fundamental Rights of Indian Citizen in Hindi.)

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संविधान में, “भारतीय नागरिक के मौलिक अधिकार (Bhartiya Naagrik ke Maulik Adhikaar)” भारत को एक संप्रभु, गणतंत्र, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश बनाते हैं क्योंकि मौलिक अधिकार विविधता में एकता बनाए रखने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और भारतीय समाज के प्रत्येक समुदाय को गरिमापूर्ण जीवन के साथ उचित प्रतिनिधित्व प्रदान करते हैं। मौलिक अधिकार एक लोकतांत्रिक देश की जनता का वह अंग है जिसके बिना जनता अपाहिज है क्यूंकि एक लोकतांत्रिक देश में भारतीय नागरिक के Maulik Adhikaar ही उसे गरिमाशाली जीवन जीने का हक प्रदान करती है।

इसलिए, भारतीय संविधान के जनक ‘डॉक्टर भीम राव आंबेडकर जी’ के द्वारा भी मौलिक अधिकारों को ‘देश का मैग्ना कार्टा’ के रूप में सम्बोधित किया गया था क्यूंकि यह Maulik Adhikaar देश के हर छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, महिला-पुरुष और बच्चों-बूढ़ों को ऐसी शक्ति प्रदान करता है की जिसके बल पर वह अपने ऊपर हो रहे अन्याय के खिलाफ और समाज में अपने वंचित मूल अधिकारों के लिए इतने बड़े देश में आवाज़ उठा सकतें है।

bhartiya naagrik ke maulik adhikaar
Maulik Adhikaar

मौलिक अधिकार विश्व के लगभग सभी लोकतांत्रिक देशों में अपने नागरिकों को प्रदान किये जातें हैं, वैसे ही हमारे भारत में मौलिक अधिकार को शामिल करने की प्रेरणा हमारे संविधान निर्माताओं ने संयुक्त राज्य अमेरिका से प्राप्त की है। मौलिक अधिकार देश में एक निरंकुश शासन की स्थापना को रोकता हैं और राज्य द्वारा आक्रमण के खिलाफ लोगों की स्वतंत्रता की रक्षा करता हैं, इसका उद्देश्य ‘कानूनों की सरकार स्थापित करना है न कि पुरुषों की’। 

मौलिक अधिकार किसे कहतें हैं?

Maulik Adhikaar किसी लोकतांत्रिक देश में आम नागरिकों को प्रदान की गयी वह अधिकार है, जो किसी भी प्रकार से उस देश के लोगों से छीना नहीं जा सकता है और यह अधिकार देश के नागरिक को उसके जन्म के बाद से स्वतः ही मान्य हो जाती है। यह अधिकार मूल रूप से देश के सभी नागरिकों के लिए होती है जिससे वह अपने देश में एक सशक्त नागरिक का अनुभव कर सकें और अपने जीवन को स्वतंत्र होकर जी सकें।

Maulik Adhikaar किसी भी व्यक्ति को देश में वह सभी स्वतंत्रता के मूल सिद्धांत प्रदान करती है, जो एक व्यक्ति को अपने जीवन में प्रगति के लिए आवश्यक होती है।

हमारे देश के संविधान में Maulik Adhikaar के प्रावधान ‘भाग-3 के अन्नुछेद 12 से 35’ में अंकित किये गएँ हैं, जहाँ संविधान के निर्माणकर्ताओं के द्वारा मूलतः देश के नागरिकों को ‘सात Maulik Adhikaar प्रदान किये गएँ थें लेकिन आज हमारे देश का संविधान अपने नागरिकों को केवल छः मौलिक अधिकार ही प्रदान करता है’, जो की निम्नलिखित प्रकार से हैं:-

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  • समानता का अधिकार-> यह अधिकार देश के सभी नागरिकों को समानता प्रदान करती है, जिसका मतलब देश का हर नागरिक संविधान के सामने एक समान है उसके साथ किसी भी प्रकार का भेद-भाव देश में नहीं किया जायेगा और यह अधिकार अन्नुछेद 14 से 18′ में वर्णित किये गएँ हैं।
    • अन्नुछेद 14-> यह अन्नुछेद नागरिकों को भारत के कानून के प्रति समानता और कानून के समान संरक्षण को प्रदान करता है, इसका मतलब किसी भी नागरिक के साथ कानूनी तौर पर कोई भी भेद-भाव नहीं किया जायेगा फिर वह कोई भी क्यों ना हो।
    • अन्नुछेद 15-> यह अन्नुछेद नागरिकों को समाज में धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर होने वाले भेदभाव को रोकता है और उससे संरक्षण प्रदान करता है।
    • अन्नुछेद 16-> यह अन्नुछेद देश के सभी नागरिक को सार्वजनिक रोजगार के मामले में समान अवसर प्रदान करेगा।
    • अन्नुछेद 17-> यह अन्नुछेद समाज में पारम्परिक प्रथा, अस्पृश्यता का उन्मूलन और इसके अभ्यास को रोकता है।
    • अन्नुछेद 18-> यह अन्नुछेद देश के नागरिकों में सामानता बरकरार रखने के लिए किसी भी प्रकार के शीर्षक का पूर्ण रूप से उन्मूलन करता है केवल शैक्षणिक एवं सैन्य शीर्षक को छोड़कर।
  • स्वतंत्रता का अधिकार-> यह अधिकार देश के नागरिकों को अपने स्वतंत्र होने का एहसाँस करवाता है, सभी भारतीय नागरिक किसी भी कार्य को करने और अपनी भावना को अभिव्यक्त करने के लिए पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं सिवाय वह गैरकानूनी ना हो और केवल यही एक ऐसा अधिकार है, जो अपने नागरिकों पर कुछ कानूनी बंदिशे भी थोपता है और इन अधिकारों को अन्नुछेद 19 से 22′ में वर्णित किया गया है।
    • अन्नुछेद 19-> यह अन्नुछेद भारत के नागरिकों को विभिन्न प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान करता है, जो की व्यक्ति को एक गरिमामय जीवन जीने की अनुमति देता है, इस अन्नुछेद में छः और अन्नुछेद शामिल हैं:-
      • अन्नुछेद 19(ए), भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है।
      • अन्नुछेद 19(बी), किसी भी स्थान पर शांतिपूर्वक और हथियारों के बिना इकट्ठा होने का अधिकार प्रदान करता है।
      • अन्नुछेद 19(सी), किसी भी प्रकार का संघ या समिति या सहकारी समिति बनाने का अधिकार प्रदान करता है।
      • अन्नुछेद 19(डी), यह भारतीय नागरिक को पूरे भारत क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से स्थानांतरित करने का अधिकार प्रदान करता है।
      • अन्नुछेद 19(इ), भारतीय नागरिक भारत के राज्य क्षेत्र के किसी भी हिस्से में रह और बस सकतें है और अपना जीवन यापन कर सकतें हैं।
      • अन्नुछेद 19(एफ), भारत में कोई भी पेशा अपनाने या कोई धंधा करने का पूर्ण रूप से अधिकार प्रदान करता है।
  • इस अन्नुछेद के अधिकार नागरिकों को स्वतंत्रता तो प्रदान करती हैं लेकिन राज्य इन स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबन्ध भी लगा सकती है, जैसे:-
    • अगर कोई नागरिक देश की अखंडता, सुरक्षा और संप्रभुता को हानि पहुंचाता है तो,
    • अगर कोई नागरिक विदेशी राष्ट्रों के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंधों को क्षति पहुँचाता है तो,
    • अगर कोई नागरिक सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने का काम करता है तो,
    • अगर कोई नागरिक किसी अन्य नागरिक की मानहानि करता है तो,
    • अगर कोई नागरिक देश में अपराध को बढ़ावा देने या अदालत की अवमानना ​​के हित में भाषण और अभिव्यक्ति करने का काम करता है तो,
    • अन्नुछेद 20-> यह अन्नुछेद भारतीय नागरिक को अपराध के प्रति सजा के लिए संरक्षण प्रदान करती है:-
      • किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिए एक बार सजा दी जाएगी।
      • अपराध करने के समय जो क़ानून होगा उसके तहत सजा दी जाएगी ना तो पहले के क़ानून के मुताबिक ना बाद में बने कानून के मुताबिक।
    • अन्नुछेद 21-> यह अधिकार नागरिकों के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है क्यूंकि यह लोगों को उनके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा प्रदान करता है। इसी अधिकार के अंतर्गत निजता का अधिकार और स्वास्थ्य का अधिकार भी प्रदान किया जाता है।
      • इस अन्नुछेद के अंतर्गत सन 2002 में संविधान में 86वां संसोधन करके एक और अन्नुछेद को इसका अंश बनाया गया था:
      • अन्नुछेद 21(ए), जो की ख़ास तौर से छोटे बच्चों के लिए है, जहाँ राज्य छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा।
    • अन्नुछेद 22-> यह अधिकार भारतीय नागरिक को गिरफ्तारी और मनमाने ढंग से हिरासत में लेने के प्रति तीन प्रकार से संरक्षण प्रदान करती है।
      • दोषी को गिरफ्तारी या हिरासत में लेने का कारण बताना होगा।
      • 24 घंटे के अंदर उसे दंडाधिकारी के पास पेश किया जाये (आने जाने के समय को छोड़ कर)
      • दोषी को अपने पसंद की वकील से सलाह लेने की स्वतंत्रता होगी।
  • शोषण के खिलाफ अधिकार-> यह अधिकार भारतीय नागरिक के साथ-साथ विदेशियों को भी शोषण के खिलाफ सुरक्षा का अधिकार प्रदान करती है क्यूंकि हमारा भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र है और यहाँ किसी का भी शोषण करना एक गैरकानूनी अपराध है। इन अधिकारों को अन्नुछेद 2324′ वर्णित किया गया है।
    • अन्नुछेद 23-> यह भारत में मानव व्यापार और व्यक्तियों को जबरन श्रम करवाने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाती है। कोई भी व्यक्ति भारत में किसी के साथ किसी भी प्रकार की जबरदस्ती नहीं कर सकता है।
    • अन्नुछेद 24-> यह भारत में 14 साल से कम उम्र के बच्चों पर कारखानों, निर्माण स्थलों, खतरनाक उद्योगों, रेलवे में रोजगार करने पर रोक लगाती है और यह किसी भी हानिरहित या निर्दोष काम में उनके रोजगार पर प्रतिबंध नहीं लगाता है।
      • परन्तु, 2006 में सरकार ने घरेलू नौकरों के रूप में बच्चों के रोजगार, होटलों, ढाबों, दुकानों, कारखानों, स्पा आदि जैसे व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में काम करने पर प्रतिबंध लगा दिया। इसने चेतावनी दी कि 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे को रोजगार देने वाला कोई भी व्यक्ति अभियोजन के लिए उत्तरदायी होगा।
  • धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार-> हमारा भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहाँ विभिन्न प्रकार के धर्म, जाती, समुदाय के लोग रहतें हैं। इसलिए, हमारे भारत में सभी नागरिकों और विदेशियों को स्वतंत्र रूप से अपने धर्मों के अभ्यास करने की स्वतंत्रता प्रदान की गयी है। इन अधिकारों को अन्नुछेद 25 से 28′ में वर्णित किया गया है।
    • अन्नुछेद 25-> भारत के सभी व्यक्तियों को अंतरात्मा की स्वतंत्रता और अपने धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान अधिकार प्रदान करता है। जहाँ कोई भी व्यक्ति भारत किसी भी धर्म को मान सकता है और उसका प्रचार प्रसार कर सकता है।
    • अन्नुछेद 26-> यह अन्नुछेद धार्मिक और धर्मार्थ संस्थानों की स्थापना के संदर्भ में अपने धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता प्रदान करता है और अपने धार्मिक कार्यों की प्रबंध का स्वामित्व की भी स्वतंत्रता देता है।
    • अन्नुछेद 27-> यह भारत के सभी व्यक्तियों को यह अधिकार प्रदान करता है की किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय के प्रचार या रखरखाव के लिए किसी भी कर का भुगतान करने के लिए भारत में किसी को भी बाध्य नहीं किया जाएगा।
    • अन्नुछेद 28-> यह भारत के सभी व्यक्तियों को यह स्वतंत्रता प्रदान करता है की कोई भी किसी भी धार्मिक शिक्षा में भाग ले सकता है उसे ग्रहण कर सकता है और साथ ही यह पूर्ण रूप से राज्य निधि से पोषित किसी भी शिक्षण संस्थान में किसी भी प्रकार की कोई धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं करने का प्रावधान भी रखता है।
  • सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार-> यह अधिकार भारतीय नागरिकों को उनके संस्कृतियों, भाषा, रीती-रिवाजों के प्रति संरक्षण प्रदान करता है और उन्हें अपने अनुसार शिक्षण संस्थानों की स्थापना करने के अधिकार भी देता है। इन अधिकारों को अन्नुछेद 2930′ में वर्णित किया गया है।
    • अन्नुछेद 29-> भारत में रहने वाला कोई भी नागरिक या अल्पसंख्यक अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति को सुरक्षित रख सकता है और इन सबके आधार पर किसी भी सरकारी शैक्षणिक संस्था में दाखिला से नहीं रोका जायेगा।
    • अन्नुछेद 30-> यह भारत के सभी अल्पसंख्यकों को यह अधिकार प्रदान करती है की वह अपनी पसंद के किसी भी प्रकार का शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना कर उन्हें प्रशासित कर सकतें हैं और सरकार उसके अनुदान के लिए किसी भी प्रकार का भेद-भाव नहीं करेगी।
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार-> यह अधिकार अन्नुछेद 32′ में प्रदान किया गया है, जिसे डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर जी के द्वारा ‘संविधान की आत्मा और उसका ह्रदय’ कहा गया है क्यूंकि यह भारतीय नागरिकों को ऐसी शक्ति प्रदान करता है, जो उसे अपने उपर्युक्त अधिकार सही ढंग से प्राप्त ना होने के कारण उस व्यक्ति को अपने मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए सर्वोच्च न्यायालय में जाने का पूर्ण अधिकार देती है।
    • आसान भाषा में इसका मतलब है की जब किसी नागरिक के Maulik Adhikaaron का उल्लंघन होता है, तो पीड़ित पक्ष के पास इस अन्नुछेद के तहत सीधे उच्च या सर्वोच्च न्यायालय में जाने का विकल्प होता है।

हमारे भारतीय संविधान के Maulik Adhikaar में नागरिकों को सात अधिकार प्रदान किये गएँ थें, जिसमे से ‘अन्नुछेद 31’ जो ‘संपत्ति का अधिकार’ प्रदान करता था, उसे 1978 में 44 वें संविधान संसोधन अधिनियम करके खत्म कर दिया गया और संपत्ति के अधिकार को ‘अन्नुछेद 300-ए’ के तहत कानूनी अधिकार प्रदान कर दिया गया मतलब भारतीय नागरिक को अपनी स्थायी संपत्ति (जमीन) पर मौलिक अधिकार प्राप्त नहीं है और वह अपने संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन होने पर न्यायालय नहीं जा सकता है बल्कि उसे कानूनी गतिविधियों का सहारा लेना पड़ेगा।

हमारे भारत में बहुत से नागरिक ऐसे हैं जो स्वयं के मौलिक अधिकारों से वंचित हैं क्यूंकि उन्हें पता ही नहीं है की हमारे भारत में सभी नागरिकों के मूल अधिकारों को संरक्षण प्रदान किये जातें हैं और उनके अधिकारों के संरक्षण की गारंटी उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय प्रदान करता है। इसलिए, भारत के सभी नागरिकों को अपने संविधान के द्वारा प्रदान किये गए मौलिक अधिकारों के बारे में बताना और उन्हें इसके प्रति जागरूक करना अनिवार्य है।

आमतौर पर आज भी हमारे समाज में ऐसा देखा जाता है की लोग अपने अधिकारों का उपयोग करने से कतरातें हैं। कई लोग पुलिस और न्यायालय के चक्कर में पड़ना पसंद नहीं करते हैं और कई लोग आज भी इनसे डरते हैं, लोगों को यह नहीं पता है की पुलिस और न्यायालय हमारी रक्षा के लिए है और समाज में हमारे मौलिक अधिकारों के उल्लंघन होने पर यह हमारी सुरक्षा करेंगे।

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मौलिक अधिकारों की विषेशताएँ।

भारत में मौलिक अधिकारों की महत्ता आम नागरिकों के गरिमापूर्ण और स्वतंत्र जीवन जीने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है क्यूंकि लोकतांत्रिक देश की सरकार में नागरिक के पास अधिकार होतें है लेकिन निरंकुश देश की सरकार में नागरिकों को किसी भी प्रकार का अधिकार और स्वतंत्रता नहीं प्रदान किया जाता है, जैसे; उत्तर कोरिया, चीन, अफ़ग़ानिस्तान, ईरान अन्य।

इसलिए, भारतीय नागरिकों को संविधान ने Maulik Adhikaar के रूप में बहुत बड़ा खजाना प्रदान किया है क्यूंकि हम भारतीय बहुत भाग्यशाली हैं जिसे अपने देश में इतनी अधिक स्वतंत्रता प्रदान की गयी है वरना अन्य किसी भी और देश में इतनी स्वतंत्रता अपने नागरिकों को नहीं दी गयी है, उपर्युक्त देशों में तो सत्तावादी सरकार जो बोलती है नागरिकों को वैसा ही करना पड़ता है। हमे सुक्रिया करना चाहिए हमारे देश के संविधान निर्माताओं का जिन्होंने अपने देश के नागरिकों के बारे में इतना सोचकर भारत को यह संविधान सौंपा, तभी तो हमारे भारत में संविधान को सर्वोच्च मानकर उसे सबसे अधिक महत्व दिया जाता है।

  • मौलिक अधिकारों की रक्षा का अधिकार अपने आप में एक मौलिक अधिकार है क्यूंकि नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होने पर संविधान स्वयं उसकी रक्षा की गारंटी देता है और पीड़ित को सीधे सर्वोच्च न्यायलय जाने की अनुमति भी देता है।
  • भारत का संविधान, केवल कुछ मौलिक अधिकारों को छोड़ कर बाकि सभी Maulik Adhikaar अपने देश के नागरिकों के साथ-साथ विदेशियों को भी प्रदान करता है।
  • भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की स्वतंत्रता का कोई गलत उपयोग ना कर सके इसके लिए राज्य उसके ऊपर उचित प्रतिबन्ध भी लगा सकता है।
  • भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों को संविधान संसोधन अधिनियम से संसद के द्वारा परिवर्तित किया सकता है लेकिन मौलिक अधिकारों की मूल संरचना को प्रभावित किए बिना जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय की जाती है।
  • भारतीय मौलिक अधिकारों को सरकार के द्वारा राष्ट्रिय आपातकाल के दौरान निलंबित किया जा सकता है जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर होने वाले खतरे को रोका जा सके परन्तु केवल ‘अन्नुछेद 20 और 21’ को छोड़कर।

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निष्कर्ष।

यह लेख लिखने के पीछे मेरा तात्पर्य केवल जानकारी प्रदान करना नहीं है बल्कि इस लेख को पढ़ कर सभी भारतीय नागरिक अपने Maulik Adhikaaron के प्रति जागरूक होकर उसका उपयोग अपने जीवन में होने वाली सामाजिक समस्याओं से निपटने के लिए कर सकतें हैं क्यूंकि इस लेख के माध्यम से मैं उन सभी आम नागरिकों को जागरूक करना चाहता हूँ जिन्हे अपने देश के संविधान के द्वारा प्रदान किये गए मूल अधिकारों के बारे में जानकारी ना हो।

भारतीय संविधान में अंकित किये गए यह मूल अधिकार भारत के नागरिकों को सशक्त बनाने के साथ अपनी स्वतंत्रता से परिचित करवाती है।   

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