राधे-राधे, आदाब, सत्यश्रीअकाल, हैलो मेरे प्यारे दोस्तों “भारत में जल संकट (Bharat mein Jal Sankat)“ की समस्या देश के सामने चिंताजनक परिस्तिथि प्रस्तुत कर रही है और जल संकट की समस्या केवल भारत तक ही सिमित नहीं है, यह दूसरे देशों में भी गंभीर परिस्तिथियाँ उत्पन्न कर रहा है, इन सबका प्रमुख कारण है ‘जलवायु परिवर्तन‘।
हमारा देश विकास के मार्ग पर तो बिना किसी रुकावट के बढ़ता जा रहा है लेकिन यही विकास का मंजर हमारे जीवन में आगे चल कर रुकावटें ना पैदा करने लग जाये, जिसका आभास होना हमे शुरू हो चूका है।
“जल-ही-जल है चारो ओर,
फिर भी मानव के लिए पाना है इसे कठोर,
पृथ्वी करती इशारा की समझो इस जल का मोल,
क्यूंकि जल की बूंद-बूंद है हम सबके लिए अनमोल”
उपर्युक्त अन्नुछेद जल संकट की परिदृश्य को बयाँ कर रहा है, जो की पुरे देश में धीरे-धीरे फैलते जा रही है और अतीत से एक विचार प्रचलित है की दुनिया में तीसरा विश्व युद्ध जल की आपूर्ति के लिए होगा। जल हम सब जीवित प्राणियों के लिए कितना अहम् है, यह हम जानते हैं लेकिन फिर भी इसे बर्बाद करतें हैं क्यूंकि मानव सोचता है की हमारे धरती पर तो चारो ओर जल है लेकिन सच्चाई तो यह है की धरती का 97.3% जल खारा है, जिसे मानव पि नहीं सकता परन्तु जीवित रहने के लिए तो पेयजल जरुरी है, जो की धरती पर केवल 2.07% ही उपलब्ध है।
यह 2.07% स्वच्छ जल पूरी धरती का है, जिसमे भारत के हिस्से में केवल इस 2.07% का 4% शुद्ध जल प्राप्त होता है, जो की दुनिया के दूसरे सबसे बड़े आबादी वाला देश के लिए बहुत कम है क्यूंकि भारत में विश्व की 16% जनसँख्या रहती है।
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जल संकट क्या होता है?
किसी क्षेत्र, नगर, देश के अंतर्गत अगर जल संसाधन के उपयोग की मांग की आपूर्ति में कमी पड़ने लगे अथवा उस स्थान का भूजल खत्म हो गया हो, तो ऐसी परिस्तिथि का उत्पन्न होना ‘जल संकट‘ कहलाता है।
Bharat mein Jal Sankat की वजह से कई राज्यों में परिस्तिथियाँ बदतर हो चुकी है, जिसके कारण राज्यों के कई जिलों को सूखा का सामना करना पड़ रहा है, जैसे गुजरात का कच्छ और सौराष्ट्र वाला क्षेत्र, ओडिशा का कालाहांडी क्षेत्र, मध्यप्रदेश के कुछ जिले, राजस्थान, यु.पि का पलामू और मिर्ज़ापुर क्षेत्र, महाराष्ट्र का पालघर जिला, पश्चिम बंगाल का पुरुलिया, केरल का कोयंबटूर।
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भारत में जल संकट उत्पन्न होने के कुछ तथ्य।
- ‘केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार’ भारत में कृषि भूमि की सिंचाई लिए हर साल 230 बीलियन मीटर क्यूबिक भूजल निकाला जाता है, इसलिए देश के कई हिस्सों में भूजल का तेजी से क्षरण हो रहा है।
- निकाले गए भूजल का 89% सिंचाई क्षेत्र में उपयोग किया जाता है, जिससे यह क्षेत्र देश में भूजल के उपयोग का सबसे बड़ा उपभोगता बन जाता है, इसके बाद भूजल का घरेलु उपयोग होता है जो 9% है और फिर उद्योगों द्वारा भूजल का उपयोग किया जाता है, जो 2% है।
- संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया में भूजल का सबसे बड़ा हिस्सा निकालता है और भूजल से सिंचाई के लिए सुसज्जित क्षेत्र भी सबसे बड़ा है।
- पंजाब में एक किलोग्राम चावल के उत्पादन पर 5000 लीटर जल की खपत होती है और महाराष्ट्र में एक किलोग्राम चीनी के लिए 2300 लीटर जल की खपत होती है हालाँकि, चावल और गन्ना जल गहन (Water Intensive) फसलें हैं, जो भारत की कुल सिंचाई का 60% जल उपयोग करती है।
- भारत में पानी की उपलब्धता वर्ष 1994 में 6000 घनमीटर प्रति व्यक्ति था, जो वर्ष 2000 में घट कर 2300 घनमीटर प्रतिव्यक्ति हो गया`और अब ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है की वर्ष 2025 में यह प्रतिव्यक्ति के अनुसार घट कर 1600 घनमीटर हो जाएगी।
जल संकट के इस परिस्तिथि को लोगों को गम्भीरतापूर्वक समझाने के लिए, पुरे विश्व में ’22 मार्च को विश्व जल दिवस’ का अवलोकन किया जाता है, जिसका मुख्य उदेश्य ताजे पानी का महत्व और उसके संरक्षण के बारे में जागरूकता फैलाना है और साथ ही संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित लक्ष्य-6 पर भी केंद्रित करता है, जो की 2030 तक सभी के लिए स्वच्छ पानी की उपलब्धि का समर्थन करता है।
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भारत में जल संकट के कारण।
हालाँकि, जल संकट का कारण खास तौर से केवल मानवजनित गतिविधियों से जुडी है और यह केवल भारत के लोगों द्वारा ही नहीं उत्पन्न किया गया है, इसे उत्पन्न करने में पुरे मानवजाति का योगदान है, जैसे:-
- जलवायु परिवर्तन उभरते जल संकट का सबसे बड़ा कारण है, जिसके लिए मानव स्वयं जिम्मेदार है क्यूंकि जिस प्रकार से औधोगिकीकरण और तकनीकीकरण में विकास होता जा रहा है, मानव गतिविधियां भी उसी प्रकार से प्रकृति के खिलाफ होतें जा रहीं हैं क्यूंकि बढ़ती तकनीकीकरण के सहारे मनुष्य प्रकृति का दोहन कर रहा है।
- उदारहण के लिए:- धरती का गर्म होना, प्रदुषण से भूजल दूषित होना, सूखा पड़ना।
- कृषि क्षेत्र में बड़ी मात्रा में भू-जल को बाहर निकालना और उसका प्रवाह करना, जिसके कारण धरती के निचे से पानी समाप्त हो रहें हैं और ऐसा इसलिए हो रहा है क्यूंकि किसान फसल की उत्पत्ति उसके क्षेत्र के अनुकूल नहीं करती हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ जो की सरकार के द्वारा किसानो को दी जाती है और जिन फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिक होता है किसान वही फसल का उत्पादन करती है और चावल, गेहूँ, गन्ना, कपास इन सब फसलों में जल की आवश्यकता अधिक होती है।
- उदारहण के लिए, पंजाब के किसान चावल का उत्पादन बड़ी मात्रा में करतें हैं, जबकि चावल उस क्षेत्र में उत्पादन करने के अनुकूल नहीं है क्यूंकि चावल की खेती में बड़ी मात्रा में जल का उपयोग किया जाता है और पंजाब में जल की कमी है क्यूंकि वहां वर्षा कम होती है, बंगाल राज्य चावल उत्पादन के लिए अनुकूल क्षेत्र है क्यूंकि वहाँ मानसून बहुत अच्छी होती है।
- घरेलु कामों में जल को जरुरत से ज्यादा बर्बाद करना क्यूंकि पुरे देश में भूजल का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा घर के कामों के लिए उपयोग किया जाता है। घर में लोग अक्सर जल का दुरूपयोग गाडी साफ़ करने के लिए, रास्ते को झाड़ू से साफ़ न करके मोटी-मोटी पाइप के पानी से साफ़ करके पानी की बर्बादी करना, नल की टोटीं खुली छोड़ देना।
- विकास के नाम पर पक्की सड़कें, पक्की सतह का निर्माण करके दलदली मिटटी को पूरी तरह से ढक दिया जाता है, जिसके कारण बारिश का पानी भूमि को रिचार्ज नहीं कर पाता है और सारा पानी बह कर नदी, नाले और तालाब में चला जाता है।
- भारत में मानसून की अस्थिरता के कारण भी जल संकट देखने को मिलता है क्यूंकि भारत में ‘एल-नीनो’ के प्रभाव से वर्षा कम होती है और भारत में ‘ला-नीना’ का प्रभाव 3-4 सालों में एक बार देखने को मिलता है।
- भारत में घरेलु कामों में उपयोग किये गए जल को नदी-नालों में प्रवाह कर दिया जाता है उसके पुनरुपयोग के लिए सरकार के द्वारा कोई प्रयाश नहीं किया जाता है और यही कारण है की शहरी क्षेत्रों में जल की समस्या अधिक मात्रा में देखने को मिलती है।
- भारत में जल के संरक्षण को लेकर लोगों में जागरूकता का अभाव है, लोगों इसके दुष्परिणाम से अनजान हैं, इसलिए भारत में जल का दुरूपयोग बड़ी मात्रा में किया जाता है।
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भारत में जल संकट का प्रभाव।
Bharat mein Jal Sankat का प्रभाव धीरे-धीरे चिंता का विषय बनते जा रहा है, हालाँकि, सरकार के द्वारा जल की समस्या पर काम किया जा रहा है, जहाँ जल शक्ति मंत्रालय के द्वारा 2024 तक देश में सभी को ‘हर घर नल से जल‘ स्कीम के अंतर्गत टोटीं वाला पानी प्रदान किया जायेगा। लेकिन इन सब के बावजूद भारत के सामने चुनौतियां है क्यूंकि भारत में साफ़ पिने योग्य पानी की मात्रा बहुत कम है। जल संकट का प्रभाव भिन्न-भिन्न प्रकार से देश के लोगों पर हो रहा है:-
- सामाजिक अस्थिरता-> समाज में पानी की कमी के कारण लोगों में झड़प देखने को मिलती है, महिलाओं को सबसे अधिक संघर्ष का सामना करना पड़ता है और पानी लाने के लिए महिलाओं और बच्चों को मीलों दूर जाना पड़ता है।
- उदारहण के लिए, महाराष्ट्र में कई लोगों के द्वारा दूसरी शादी की गयी जिनका काम केवल पानी लाना है, इसलिए उन्हें ‘वाटर वाइफ’ भी कहा जा रहा है।
- आर्थिक संकट-> जल के संकट का प्रभाव सीधे अर्थव्यवस्था पर होगा, जिसके कारण सकल घरेलु उत्पाद प्रभावित होगी क्यूंकि सरकार को इस मामले पर विशेष ध्यान देते हुए अलग से वित्तीय आवंटन भी करना पड़ेगा।
- रोगों का प्रसार-> साफ़ पानी के अभाव के कारण लोग दूषित पानी पिने को मजबूर हो जायेंगे और इस स्तिथि में लोग निमोनिया, टाइफाइड, मीसल्स जैसे रोगों से ग्रसित होने लगेंगे।
- जैव विविधता की हानि-> जल संकट से केवल मनुष्य ही नहीं त्रस्त होंगे बल्कि इसका नाकारात्मक प्रभाव जिव-जंतुओं और पेड़-पौधों पर भी पड़ेगा।
जल संकट से निपटने के उपाय।
- जल संकट से निपटने के लिए हम सबको अपनी जिम्मेदारी समझनी पड़ेगी, अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान बनना पड़ेगा और जिस प्रकार से देश में ‘सफाई अभियान’ के सम्बन्ध में मुहीम चलाई गयी ठीक उसी प्रकार की मुहीम सरकार को ‘जल संरक्षण’ के लिए भी शुरू करनी चाहिए।
- सरकार को जल संकट से सम्बंधित समस्याओं के बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए और जल संकट से सम्बंधित जो भी मूल आकड़ें हैं उन्हें जनता के सामने प्रस्तुत करना चाहिए, जिससे आम लोगों को भी इससे होने वाली परेशानियों के बारे में पता चले।
- राज्य सरकारें अपने सभी जिलों और पंचायतों में ‘जल अधिकारी’ नियुक्त करे, जिसका काम जल सम्बंधित समस्याओं का निवारण करना हो और जो जल की बर्बादी पर भी रोक लगा सके और जो भी व्यक्ति जल की बर्बादी करता है उसपर शख्त कार्यवाही की जाये।
- लोगों के द्वारा वर्षा के जल को अधिक से अधिक संरक्षित किया जाना चाहिए या सरकार को एक निति के द्वारा वर्षा के जल को सभी घरों में संरक्षित करना अनिवार्य बना देना चाहिए और उसी वर्षा के जल से पौधों को पानी देना, गाडी को साफ़ करना जैसे अन्य घरेलु काम किये जा सकतें है।
- जल संकट से निपटने के लिए अगर किसी व्यक्ति के द्वारा कोई नवाचार किया जाता है तो उसके नवाचार को बढ़ावा देना चाहिए और उसके मेहनत को पुरुष्कृत किया जाना चाहिए, जो एक और अभिनव दिमाग को प्रेरित करेगा।
- कम वर्षा प्राप्त करने वाले राज्यों में सरकार को एक निति बनानी चाहिए की जिन फसलों के उत्पादन में अधिक जल की आवश्यकता होती है, उन फसलों का उत्पादन कम वर्षा प्राप्त करने वाली राज्य नहीं करेंगी।
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निष्कर्ष।
Bharat mein Jal Sankat की परिस्तिथि को सरकार के द्वारा गंभीरता पूर्वक लिया जा रहा है और सरकार जल संरक्षित के ऐसे बहुत से उपायों और प्रोजेक्ट्स पर काम भी कर रही है, जहाँ सरकार ऐसे फसलों का निर्माण कर रही है जिसका कम पानी में भी खेती किया जा सके क्यूंकि भारत में सर्वाधिक भू-जल की खपत कृषि क्षेत्र में होती है। भारत जल का पुनरुपयोग और समुद्र के जल को कैसे पिने योग्य बनाया जा सकता है इसके लिए भी इजराइल के साथ मिलकर काम कर रहा है। भारत ने जल संकट से उत्पन्न होने वाली समस्या को भाँप लिया है और इससे लड़ने के लिए अपनी रणनीति भी बना रहा है और उसपर काम भी कर रहा है।