राधे-राधे, आदाब, सत्यश्रीअकाल, हैलो मेरे प्यारे दोस्तों, भारत एक लोकतान्त्रिक संघीय वाला देश है और “भारत की संघीय व्यवस्था (Bharat ki Sanghiya Vyavastha)“ की मिसाल पुरे विश्व भर में दी जाती है क्यूंकि हमारे अखंड भारत का निर्माण 500 से भी अधिक राजा-राजवाड़ों को मिलाकर की गयी थी और आज इसकी मिसाल इसलिए दी जाती है क्यूंकि जब हमारे भारत के सभी साम्राज्यों को ‘सरदार वल्लभ भाई पटेल जी‘ के द्वारा एक करने की पहल की गयी थी तब बड़े-बड़े विचारधारकों और खगोलशास्त्रियों के द्वारा यह बताया गया था की भविष्य में इस भारत के इतने टुकड़े होंगे, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकतें हैं।
लेकिन, आज आज़ादी के 75 साल के बाद भी हमारा भारत अखंड है, जिसका कारण हमारे भारत की मजबूत संघीय व्यवस्था और संविधान है साथ ही उन सभी विचारकों और खगोलशास्त्रियों की बातें झूठी साबित हो गयी। पुरे विश्व में केवल हमारा भारत ही एक ऐसा देश है, जहाँ विभिन्न प्रकार की जाती, धर्म, संस्कृतियों का संगम है, इसलिए हमारा भारत विविधता में भी एकता का उद्धारहण प्रस्तुत करता है, जो संघीय व्यवस्था की महत्ता को और बढ़ा देता है।
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संघीय व्यवस्था किसे कहतें हैं?
संघवाद (फेडरेशन) लैटिन शब्द ‘फोएडस (Foedus)’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है संधि या समझौता जहाँ कई सारे छोटे-छोटे स्वतंत्र प्रांतों एवं राज्यों द्वारा अपनी सहमति से एक बड़े शक्तिशाली संघ के साथ मिलकर एक बड़े देश का निर्माण किया जाता है, जिसकी सम्प्रभुता की गरिमा को बनाये रखना सबकी जिम्मेदारी बन जाती है, जिसे हम ‘Sanghiya Vyavastha’ कहतें हैं।
संयुक्त राष्ट्रीय अमेरिका और ऑस्ट्रेलिआई संघीय प्रणाली समझौते पर आधारित है लेकिन हमारी भारतीय संघीय प्रणाली कैनेडियन मॉडल पर आधारित है, जो विनाशकारी राज्यों के साथ गैर-विनाशकारी संघ की निति को स्वीकार करती है।
भारतीय संघीय व्यवस्था की विषेशताएं।
- शक्तियों का विकेन्द्रीकरण
- एकल नागरिकता की निति
- संविधान की सर्वोचता
- स्वतंत्र न्यायपालिका और केवल एक सर्वोच्च न्यायालय
- दोहरी सरकार
- कठोर एवं लचीला संविधान
- केंद्र का वर्चस्व
- केंद्र द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति
हालाँकि, हमारे भारतीय संविधान में कहीं भी संघीय व्यवस्था या संघवाद का उल्लेख नहीं किया गया है लेकिन कुछ ऐसे अनुसूची और अनुच्छेद हैं, जो की हमारे देश में संघवाद के ढांचे को वृस्तृत करतें हैं।
- संविधान में ‘अनुच्छेद-1 से अनुच्छेद-4’ परिभासित करता है भारत का नाम और क्षेत्र, प्रवेश या स्थापना और नए राज्यों का गठन।
- संविधान के ‘अनुच्छेद-36 से अनुच्छेद-51’ राज्यों के लोगों के कल्याण के लिए राज्य के निति निर्देशक सिद्धांतों की सिफारिश करता है।
- संविधान के ‘अनुच्छेद-152 से अनुच्छेद-237’ परिभासित करता है की राज्यपाल और राज्य विधायिका वाले राज्य होंगे, राज्यों में उच्च न्यायालय और अधीनस्थ्य न्यायालय (Subordinate Courts) की स्थपना होगी।
- संविधान की ‘अनुसूची-VII’, जिसमे संघ सूचि, राज्य सूचि, समवर्ती सूचि शामिल है, जो राज्यों को राज्य सूचि में उनकी सूचीबद्ध श्रेणियों के सम्बन्ध में प्रावधान करने की शक्ति देता है।
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भारत की संघीय व्यवस्था के गुण और दोष।
हर सिक्के के दो पहलु होतें हैं ठीक उसी प्रकार Bharat ki Sanghiya Vyavastha के भी अच्छे और बुरे गुण दोनों हैं लेकिन उसके उपयोग करने वाले की उपयोगिता की मनसा पर यह निर्भर करती है की वह उसका प्रयोग कैसे करेगा, जैसे उद्धारहण के लिए “कोई भी संविधान अच्छा या बुरा नहीं होता है उसे देश में लागू करने वाले नेताओं की मनसा अच्छी और बुरी होती है” ठीक ऐसे हीं भारतीय संघीय व्यवस्था के भी कुछ गुण और दोष हैं।
भारतीय संघीय व्यवस्था के गुण।
- सरकार की जवाबदेही-> भारतीय संघीय व्यवस्था में सरकार का अपने लिए निर्णय के प्रति काम करने पर उसकी जवाबदेही भी संसद में देना अनिवार्य होता है।
- लोगों के साथ पारदर्शिता-> संघीय व्यवस्था को परिचालित करने वाले देश अक्सर अपने नागरिकों के साथ पारदर्शिता की निति को कायम रखतें हैं, जिससे सरकार के प्रति नागरिकों का विश्वास बढे और ऐसा करने पर नागरिक वापस से उसी सरकार को सत्ता पर जित दिलाएगी।
- संविधान की सर्वोचता-> भारतीय संघीय व्यवस्था की यह ख़ास बात है की पुरे देश में एक ही संविधान का पालन किया जाता है, जिसकी सर्वोचता की महत्ता ही देश को जोड़ कर रखती है।
- केंद्र और राज्य सरकार के बिच शक्तियों का विभाजन-> केंद्र और राज्य के बिच शक्तियों का सही विभाजन इस बात का प्रमाण है की ना तो केंद्र हावी हो सकता है राज्य सरकार पर और ना राज्य अपनी मनमानी कर सकता है।
- विपक्षी दल-> संघीय व्यवस्था की सबसे अच्छी बात यह है की विपक्षी दल के होने से सरकार अपनी मनमानी नहीं कर सकती है और ऐसा कुछ भी करने पर विपक्ष उसकी कड़ी आलोचना करता है, जो की एक लोकतान्त्रिक देश के लिए अतिआवश्यक है।
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भारतीय संघीय व्यवस्था के दोष।
- मजबूत केंद्र-> भारतीय संघीय व्यवस्था में केंद्र को राज्यों के मुकाबले अधिक शक्तियां प्रदान की गयी हैं, जिसके कारण राज्य बहुत सी चीजों में अपनी सहमति नहीं प्रदान कर पाता है।
- राज्यसभा में राज्यों को सामान प्रतिनिधितव नहीं-> हमारे देश में संविधान के अनुसूची-IV में राज्यसभा में सीटों का आवंटन किया गया है, जिसमे राज्यों को समान सीटों का प्रतिनिधित्व ना देकर जनसँख्या के आधार पर सीटों का बटवारा किया गया है।
- आपातकालीन प्रावधान-> भारत में आपातकाल की स्तिथि उत्पन्न होने के वक़्त संघीय व्यवस्था स्थगित हो जाती है, जिसके कारण केंद्र सर्वशक्तिमान हो जाता है और राज्य केंद्र के पूर्ण नियंत्रण में चले जातें हैं।
- केंद्र द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति-> इसके कारण संघीय व्यवस्था पर बहुत बड़ा सवाल खड़ा होता है क्यूंकि केंद्र द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति करने पर राज्य पूर्ण रूप से अपनी शक्तियों का प्रयोग करने में असमर्थ रहती है।
- समवर्ती सूचि पर केंद्र का दबदबा-> समवर्ती सूचि के भीतर सूचीबद्ध श्रेणियों के लिए कोई भी (केंद्र अथवा राज्य) कानून और नीतियां तैयार कर सकता है लेकिन अगर किसी विशिष्ट श्रेणी पर दोनों के द्वारा कानून या निति तैयार किया जाता है तो उस स्तिथि में केंद्र की निति या कानून मान्य होगी राज्य की नहीं।
भारत की संघीय व्यवस्था के लिए चुनौतियां।
Bharat ki Sanghiya Vyavastha को सुचारु ढंग से चलाने के लिए सरकार के सामने कुछ चुनौतियां हैं, जिसके कारण अक्सर केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बिच तनाव और मतभेद की स्तिथि बनी रहती है, जिसका असर हमारे संघीय व्यवस्था के सुशासन पर पड़ता है, जैसे:-
- भारतीय संघीय व्यवस्था को ठेंस पहुंचाने के लिए पुरे भारत में क्षेत्रवाद की माँग एक बहुत ही चिंताजनक मुद्दा है, जिसके कारण लोगों में अपने देश के प्रति देशभक्ति भी कम होती है। क्षेत्रवाद के उद्धारहण ‘ग्रेटर नागालैंड के लिए मांग।’
- भारतीय संघीय व्यवस्था में राज्यपाल की भूमिका अहम् मानी जाती है क्यूंकि केंद्र और राज्य सरकार के बिच संचार का माध्यम राज्यपाल ही होता है लेकिन अक्सर राज्यपाल ही केंद्र और राज्य सरकार के बिच तनाव का कारण बने रहतें हैं क्यूंकि राज्यपाल की नियुक्ति केंद्र के द्वारा राज्यों में की जाती है, जिसके कारण राज्यपाल राज्य सरकार के मुताबिक कार्य ना करके केंद्र के मुताबिक कार्य करतें हैं, जिससे केंद्र और राज्य सरकार में अक्सर मतभेद और तनाव की स्तिथि बनी रहती है।
- भारत में सैकड़ों भाषाएँ बोली जाती हैं जिसमे संवैधानिक रूप से केवल 22 भाषाओं को ही स्वीकृति दी गयी है लेकिन भाषा समस्या का कारण तब बन जाती है जब और भी अन्य भाषाओँ को संवैधानिक दर्जा देने की मांग उठने लगती है, जिसके कारण Bharat ki Sanghiya Vyavastha की भावना को भी ठेंस पहुँचती है।
- भारतीय संविधान को संसोधित करने की शक्ति ‘अनुच्छेद-368’ के तहत पूर्ण रूप से संसद को प्रदान की गयी है, मतलब की इसमें किसी भी प्रकार से राज्य की कोई भी भागीदारी शामिल नहीं है और संघीय व्यवस्था की नीव को मजबूत रखने के लिए संवैधानिक संसोधनो में राज्यों की भागीदारी भी होनी आवश्यक मानी जाती है।
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निष्कर्ष।
Bharat ki Sanghiya Vyavastha को सबसे अलग मानी जाती है क्यूंकि इसमें संघीय विषेशताओं के साथ एकात्मक विषेशताएं भी शामिल हैं, जिसके कारण इसकी आलोचना भी होती है और इतने बड़े लोकतान्त्रिक देश में जहाँ विभिन्न प्रकार के धर्म, संस्कृतियों और विचारधाराओं वाले लोग रहतें हैं, उसे सँभालने के लिए मजबूत संघीय व्यवस्था का होना आवश्यक हो जाता है।
केंद्र-राज्य सरकार के बिच तनाव और मतभेद तब उत्पन्न होने लगती है, जब केंद्र की सरकार और राज्य की सरकार विभिन्न दलों से जुडी हो और उनकी विचारधारा एक दूसरे से मेल नहीं खाती हो, ऐसी परिस्तिथि में केंद्र सरकार को राज्य सरकार के कामों में ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्यूंकि राज्य सरकारें भी लोकतान्त्रिक मतदाताओं के मत से निर्वाचित होकर सत्ता में आयीं हैं।
भारत में एक मजबूत संघवाद की स्थापना तभी हो सकती है जब सभी दलों की सरकार साथ मिलकर काम करें और मौजूदा सरकार को उन सभी चुनौतियों पर काम करने की जरुरत है जिससे केंद्र-राज्य सरकार के बिच उत्पन्न होने वाले तनाव और सामंजस्यों को खत्म किया जा सके, जिससे देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में राज्यों की अधिक भूमिका को सुनिश्चित किया जा सके।
दोस्तों, आपके विचार से केंद्र और राज्य के बिच संबंधों को और मजबूत करने के लिए और Bharat ki Sanghiya Vyavastha को और प्रभावी बनाने के लिए हमारे केंद्र सरकार को और क्या कदम उठाने चाहियें, आपभी निचे कमेंट करके बता सकतें हैं।