राधे-राधे, आदाब, सत्यश्रीअकाल, हैलो मेरे प्यारे दोस्तों, ‘साम्प्रदायिकतावाद (Communalism)‘ भारत में एक बहुत ही अहम् और गंभीर मुद्दा बन चूका है और इसका प्रभाव हमारे समाज को अलग दिशा की तरफ मोड़ रहा है और साथ-ही-साथ हमारी भविष्य की पीढ़ियां भी इस साम्प्रदायिकता के पाठ को पढ़ रहीं हैं और अपने आँखों से देख रही है जिसका परिणाम आने वाले समय में इससे भी बुरा देखने को मिल सकता है, जिससे भारत के धर्मनिरपेक्ष होने पर प्रश्नचिन्ह लग जायेगा, हमारे अखंड भारत को खंडित नहीं कर सकता ऐसा कहने पर प्रश्नचिन्ह लग जायेगा और जिससे हमारे देश भक्ति एवं भारतीय होने पर भी प्रश्नचिन्ह लग जायेगा, “भारत में साम्प्रदायिकता (Communalism in India)“ लोगों के बिच भाईचारे को समाप्त कर एक दूसरे के प्रति मन में नफरत के बीज बो रही है।
साम्प्रदायिकतावाद की संवेदनशीलता भारत में बढ़ते ही जा रही है, जिसका मुख्य रूप से असर हिन्दू और मुस्लिम धर्मों से जुड़े लोगों के बिच देखने को मिलती है। साम्प्रदायिकतावाद आज के समय इतना संवेदनशील इसलिए होता जा रहा है क्यूंकि मानव अपने धर्म के मुताबिक ना चल कर धर्म को अपने मुताबिक चला रहा है, ऐसा इसलिए क्यूंकि कोई भी धर्म हमे अहिंसा और किसी का बुरा करने के लिए अग्रसर नहीं करता है परन्तु मानव आज साम्प्रदायिकता के नाम पर वहीँ चीजें कर रहा है।
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साम्प्रदायिकता किसे कहतें हैं? (What is Communalism?)
‘साम्प्रदायिकता (Communalism)’ का तात्पर्य इंसान के मन में उत्पन्न हुई एक ऐसी धारणा है, जहाँ धर्म और संप्रदाय के नाम पर कुछ कट्टरपंथी लोग समाज तथा राष्ट्र में अपने-अपने विचारधराओं को दूसरे धर्मो के विरुद्ध बता कर केवल अपने धर्मों को प्रोत्साहित करते हैं और उसे ही महत्व देतें हैं। साम्प्रदायिकता की भावना समाज में अक्सर एक दूसरे के धर्म की भावनाओं को ठेंस पहुँचाती है क्यूंकि यह अपने धर्म के प्रति प्रेम और दूसरे के धर्म और उनके अनुयायिओं के प्रति विद्वेष की भावना पैदा करती है।
साम्प्रदायिकता अप्रत्यक्ष रूप से धर्मों से जुड़ा होता है और अपने धर्म के प्रति अंध भक्ति रखकर दूसरे धर्मों पर बुरे कटाक्ष करने वाले मनोवृति के लोग ही समाज और राष्ट्र में साम्प्रदायिकतावाद से होने वाले दंगो और अस्थिरता को जन्म देतें हैं।
साम्प्रदायिकतावाद हमारे समाज के प्राचीन काल के समय में भी मौजूद थे, उस वक़्त भी धर्म के नाम पर हिन्दू-मुस्लिम के बिच छोटे-मोठे झगडे हो जाया करते थे लेकिन उसके बावजूद भी भाईचारा और प्रेम कायम रहता था ‘मुस्लिम भाइ भी हिन्दू भाइयों को राम-राम बोलतें थें और हिन्दू भाई भी मुस्लिम भाइयों को आदाब बोलतें थें’ और ऐसा इसलिए देखने को मिलता था क्यूंकि लोगों को एक दूसरे के प्रति विश्वास था, जिसके कारण साम्प्रदायिकतावाद होते हुए भी विश्वास के बल पर इंसानियत और भाईचारा कायम था।
परन्तु आधुनिककाल की साम्प्रदायिकता बहुत अधिक उग्रवाद विचारधारा का पालन करती है, जहाँ मनुष्य केवल अपने धर्म, जाती, संप्रदाय को उत्कृष्ट मानता है।
भारत में साम्प्रदायिकता का इतिहास। (History of Communalism in India.)
भारत में साम्प्रदायिकता वैदिक काल से हमारे समाज में थी लेकिन इसे केवल जाती और संप्रदाय के नाम पर अभ्यास किया जाता था परन्तु मध्य कालीन समय से साम्प्रदायिकता का प्रभाव धर्म के नाम पर बड़े स्तर पर देखा जाने लगा और इसका अभ्यास भारत में बाहर से आये मुग़लों के द्वारा, जो की इस्लाम धर्म के प्रचारक थे उन्होंने साम्प्रदायिकतावाद को धर्म के नाम पर हिन्दू-मुस्लिम के बिच प्रचलित किया।
हालाँकि, साम्प्रदायिकतावाद में धर्म को एक राजनितिक हिस्से के तौर पर उपयोग किया जाता है, जिसका प्रभावी रूप समाज पर समय-समय पर देखा जा सकता था, जैसे:-
- जब मुग़लों ने अपना शासन भारत में स्थापित किया तब उन्होंने अपनी सत्ता के बल पर अन्य दूसरे धर्मों के लोगों का जबरन धर्मपरिवर्तन करने का शिलशिला शुरू किया, हिन्दुओं के धार्मिक भावनाओं को कई प्रकार से ठेंस पहुंचाया, मुसलमानो के द्वारा हिन्दुओं पर अत्याचार किये गए, जिसके बाद हिन्दुओं के मन में मुसलमानो के प्रति घृणा और विरोध की भावना पैदा हो गयी, यह सभी गतिविधियां समाज में साम्प्रदायिकता को उजागर कर रही थी।
- आगे चल कर 1906 में स्वतंत्रता आंदोलन के वक़्त मुस्लिमों के द्वारा अलग से मुस्लिम लीग की स्थापना और सन 1909 में मोर्ले-मिंटो रिफॉर्म्स के द्वारा भारत में सांप्रदायिक मतदान की शुरुवात की गयी, जिन्हे हम सांप्रदायिक मतदान के जनक भी कहतें हैं, इससे समाज और राष्ट्र में साम्प्रदायिकतावाद की भावना लोगों में और बढ़ने लगी।
- मुस्लिम लीग की स्थापना के बाद लोगों में साम्प्रदायिकतावाद के प्रति एक दूसरे के लिए धार्मिक धारणा बुरी हो गयी, जिसके परिणाम ने एक अलग देश पकिस्तान की मांग करना शुरू कर दी और मांग के आधार पर अंग्रज़ों ने भी पकिस्तान के निर्माण के लिए स्वीकृति देते हुए देश को साम्प्रदायिकता और धर्म के नाम पर बाट दिया।
इतिहास की कुछ इन्ही सब गतिविधियों से हमे पता चलता है की, हमारे देश में साम्प्रदायिकतावाद की यह आग कैसे धीरे-धीरे बढ़ते गयी और यही सम्प्रदायिकतावाद की आग की लपटें आज भी हमे अपने देश में देखने मिल रही है, जिसका परिणाम धर्मों के बिच घृणा को एक भयंकर रूप देने में समर्थन करेगा।
भारत में साम्प्रदायिकतावाद के कारण। (Causes of Communalism in India.)
भारत जैसे देश में जहाँ धर्मनिरपेक्ष की निति सर्वोपरि है, वहां साम्प्रदायिकता का मौजूद होना थोड़ा कठिन था लेकिन साम्प्रदायिकता ही एक ऐसी मुलकड़ी थी, जिसके आधार पर अन्य कोई भी शासन कर सकता था और ऐसा कइयों बार हुआ भी क्यूंकि साम्प्रदायिकता भारत में कोई आकस्मिक घटना नहीं है, इसके लिए बहुत से कारक जिम्मेदार हैं, जैसे:-
क) ऐतिहासिक कारक-> अतीत की बहुत सारि ऐसी घटनायें हैं, जिसके कारण आज भी लोगों के मन में साम्प्रदायिकता की भावना उत्पन्न हो जाती है क्यूंकि लोग अपने धर्म के प्रति इतने भावुक होतें हैं की जिसके परिणामस्वरूप हमे अपने देश में ‘साम्प्रदायिक हिंसा’ भी देखने को मिलती है और आज भारत में साम्प्रदायिक हिंसा एवं साम्प्रदायिकतावाद का सबसे बड़ा कारण अतीत में हुए धर्म से जुडी घटनाओं से सामने निकल कर आती है।
ख) विभाजनकारी राजनीति-> इसकी शुरुवात अंग्रेज़ों के द्वारा अपने व्यक्तिगत हितों के पूर्ति करने के लिए ‘बाटो और राज करो’ की नीति के तहत राजनीति की जाती थी लेकिन आज आधुनिक राजनीति में साम्प्रदायिकता को एक राजनीतिक सिद्धांत के रूप में उपयोग किया जाता है, जहाँ धार्मिक मतभेद राजनीति का एक अहम् मुद्दा होता है, जिससे राजनितिक लाभ प्राप्त करना आसान हो जाता है। भारत में आज सभी राजनितिक दल अप्रत्यक्ष रूप से किसी न किसी धर्म या संप्रदाय को बढ़ावा देतें या सहयोग करते नज़र आती है।
ग) आर्थिक कारण-> आर्थिकता, समाज में साम्प्रदायिकता का कारण तब बनता है जब एक धार्मिक समूह में आर्थिक चिंता और आर्थिक स्तिथि के प्रति तुलनात्मक प्रक्रिया शुरू होती है और ऐसा करने से जब दूसरे धार्मिक समूह को लगने लगे की उसकी आर्थिक स्तिथि और साधनो तक पहुँच अन्य समूहों की अपेक्षा कम है, तब साम्प्रदायिकता की भावना की शुरुवात होती है।
घ) तुष्टिकरण की राजनीति-> साम्प्रदायिकतावाद के प्रति राजनितिक दलों द्वारा अपने निहित स्वार्थों के लिए ऐसे निर्णय लेती है, जिससे देश में सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा दिया जा सके।
ङ्ग) मीडिया की भूमिका-> साम्प्रदायिकतावाद को बढ़ावा देने में मीडिया की अहम् भूमिका होती है क्यूंकि किसी भी धार्मिक सम्बंधित समाचार या अफवाओं को सनसनीखेज बना कर लोगों को दिखाना, जिसके परिणामस्वरूप समाज में दो धार्मिक प्रतिद्वंदी समूह के बिच अस्थिरता, तनाव और दंगे जैसे मामले सामने निकल कर आतें हैं।
च) सामाजिक मीडिया-> सामाजिक मीडिया आधुनिक प्रकार से साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने का एक मुख्य मंच है, जिसमे अपने धर्म के प्रति प्रेरित लोग दूसरे धर्मों के प्रति भड़काऊ भाषण का उपयोग करके समाज में दंगे और अस्थिरता पैदा करते हैं।
छ) शत्रु देशों का उकसाना-> विदेशी देशों के द्वारा भारत में साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया जाता है, कुछ विदेशी देश अपने एजेंट भेजकर एक समूह को दूसरे समूह के खिलाफ कर देता है, जिससे सांप्रदायिक अस्थिरता उत्पन्न और अपने चरमपंथ विचारधारा को फैला सके। पाकिस्तान ने अपनी विचारधारा हमारे देश के चरमपंथ मुसलमानों के बिच फैला कर भारत में सांप्रदायिक दंगो को बढ़ावा दिया है।
ज) रूढ़िवादिता-> रूढ़िवादिता एक ऐसा प्रबल तत्व है, जो लोगों को अपने धार्मिक आस्था के प्रति और कट्टर बनाता है, जिससे धार्मिक साम्प्रदायिकता मजबूत होती है।
भारत में साम्प्रदायिकता को खत्म करने के लिए सुझाव। (Suggestion to end Communalism in India.)
भारत में साम्प्रदायिकता को खत्म नहीं किया जा सकता है परन्तु इसे नियंत्रित करने का प्रयाश हम अवश्य कर सकतें क्यूंकि भारत में सभी धार्मिक समूह दूसरे धर्मों के मुद्दों की चर्चा करने में बहुत अधिक दिलचस्पी रखतें हैं, जिसके कारण साम्प्रदायिकतावाद के मुद्दे को कम किया जा सकता है, जिसके लिए:-
- सरकार को देश में सभी सांप्रदायिक समूहों का और राजनितिक दलों का उन्मूलन कर देना चाहिए, जो भी किसी धर्म के वफ़ादारी पर भरोसा करतें हैं और साथ-ही-साथ गैर राजनितिक संगठनों पर भी अपनी नज़र कायम रखनी चाहिए।
- सरकार को सभी धर्म के धार्मिक गुरुओं के साथ संपर्क करके उन्हें साम्प्रदायिक सद्भावना को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करें, जिससे साम्प्रदायिकता के प्रति समाज से हिंसा को कम किया जा सके।
- सरकार को साम्प्रदायिकता के लिए और उससे होने वाली हिंसा के प्रति मजबूत कानून व्यवस्था बनानी चाहिए और राज्य सरकार भी अपने राज्यों में प्रशासन को सांप्रदायिक हिंसा से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण प्रदान करे।
- अंतर्धार्मिक विवाह को बढ़ावा देना चाहिए और जो युवा या युवा संगठन इसे बढ़ावा देता है, सरकार को उसे संरक्षण प्रदान करना चाहिए, जिससे विभिन्न समूहों के बिच सामाजिक विभाजन कम होगा और लोगों में सांप्रदायिक सद्भाव उत्पन्न होगी।
- सरकार को ऐसे गैर सरकारी संगठनो और समाज को प्रोत्साहित करना चाहिए सांप्रदायिक सौहार्द के प्रति जागरूकता फ़ैलाने के प्रति कार्य करती हो और भविष्य की पीढ़ियों में सांप्रदायिक सद्भाव के मूल्यों को विकसित करने का कार्य करती हो।
आम जनता को सरकार के पहल में मदद करने के साथ-साथ अपने कर्तव्यों पर भी ध्यान देने की जरुरत है, हमे भी साम्प्रदायिकतावाद की इस आग को बुझाने में आगे आना चाहिए और सांप्रदायिक सौहार्द, शांति और मानवता को स्थापित करके एक अच्छे समाज और देश का निर्माण करना चाहिए।
दोस्तों, इस साम्प्रदायिकतावाद के प्रति आपकी राय क्या है आप अवश्य निचे कमेंट करके बताईएगा।
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