भारत में मानव-पशु संघर्ष के कारण। (Causes of Man-Animal conflict in India.)

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राधे-राधे, आदाब, सत्यश्रीअकाल, हैलो मेरे प्यारे दोस्तों, हमारे देश में आएदिन ‘मानव-पशु के बिच संघर्ष के मामले’ देखने और सुनने मिलते हैं लेकिन इससे भविष्य में सबसे बड़ी समस्या मानव को ही भुगतनी पड़ सकती है, जो की मानव के जीवन चक्र को बुरी तरह से प्रभावित कर देगी और समाज से पशुओं के प्रति मानवीयता और उनके प्रति नैतिक व्यवहार पूरी तरह से खत्म हो जायेगा और बेचारे पशु तो आज भी मानव जाती से त्रश्त हैं, तो “भारत में मानव-पशु संघर्ष के कारण (Causes of Man-Animal Conflict in India)” क्या है और इस मानव-पशु के संघर्ष को कैसे कम किया जा सकता है इसपर चर्चा करेंगे।

भारत में मानव-पशु संघर्ष (Man-Animal confict in India) भविष्य में जैव विविधता के लिए एक बहुत बड़ा संकट उभर कर आ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप बहुत से दुर्लभ प्रजाति विलुप्त हो रहें हैं या फिर विलुप्त होने की कगार पर हैं, जैसे; सारस क्रेन, तेंदुआ, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, गोरैया, घड़ियाल, एशियाटिक शेर।

mens working in their yard and animals come for food and water which results man-animal conflict
Man-Animal conflict in India

वर्ल्ड वाइड फण्ड फॉर नेचर और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के द्वारा प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट “ए फ्यूचर फॉर आल- दी नीड फॉर ह्यूमन वाइल्डलाइफ एक्सिस्टेंस” में बताई गयी है की आज के समय की यह मांग है की संसार में मानव-पशु की एक साथ मौजूदगी ही भविष्य में सबके लिए एक संतुलित और अनुकूल पर्यावरण और वन की स्थापना करेगा।

भारत में मानव-पशु संघर्ष बहुत बड़े स्तर पर देखने को मिलता है क्यूंकि भारत विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसँख्या वाली विकासशील देश है और जहाँ आज भी देश की बड़ी आबादी अपने जरूरतों और कार्यों को पूरा करने के लिए वन्यजीवों पर आश्रित है। भारत में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा मानव-पशु के बिच हुए संघर्ष के कुछ आकड़ें प्रस्तुत किये गए, जहाँ 2014 से 2019 तक 500 से अधिक हाथियों की मौत मानव-पशु संघर्ष से हुई है और साथ ही साथ इस संघर्ष में 2300 से अधिक मानव भी मारे गए हैं।

मानव-पशु संघर्ष से क्या तात्पर्य है?

मानव और पशुओं के बिच हमे संघर्ष तब देखने को मिलता है जब पशुओं के क्षेत्र में मानव की मौजूदगी होती है या फिर जब मानव के क्षेत्र में पशुओं की मौजूदगी और फिर दोनों के बिच मुठभेड़ होता है, जिससे नकारात्मक परिणाम देखने को मिलते हैं और उससे संपत्ति का नुक्सान होता है, गंभीर चोटें लगती हैं या फिर मानव और पशु में से किसी एक की मृत्यु भी हो जाती है।

अगर हम भारत में मानव-पशु के बिच संघर्ष की बात करें तो इसका सबसे मुख्य कारण भी मानव ही है क्यूंकि आज के समय मानव जानवर से बदतर प्रवृति का हो गया है जो पशुओं के जीवन में सबसे बड़ी बाधा बनते जा रहें हैं क्यूंकि मानव अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पशुओं को परेशान करते हैं, इसलिए मानव-पशु संघर्ष के प्रति जागरूकता फ़ैलाने के लिए “विश्व वन्यजीव दिवस” 3 मार्च को अवलोकन किया जाता है, जिसका उदेश्य लोगों को पशुओं के द्वारा प्रदान किये जाने वाले लाभ के बारे में और उनकी संरक्षण सृष्टि के लिए कितना महत्वपूर्ण है यह बतलाता है।

संयुक्त राष्ट्र के द्वारा भी बनाये गए 17 सतत विकास लक्ष्य में सतत विकास लक्ष्य-15वांजैव विविधता के नुक्सान को रोकने के बारे में बात करता है, इस लक्ष्य को 2030 तक प्राप्त करने की बात की गयी है लेकिन अगर मानव-पशु के बिच संघर्ष की परिस्तिथि ऐसे ही बढ़ती रहेगी तो इस लक्ष्य को भारत के लिए पूरा करना कठिन हो सकता है।

भारत में मानव-पशु संघर्ष के कारण।

मानव-पशु के बिच संघर्ष के अनेकों कारण हमे हमारे देश में देखने को मिल जायेंगे, जिसका परिणाम मानव के साथ उन नादान पशुओं को भी भुगतना पड़ता है, जो इन गतिविधियों से अनजान होकर भी केवल इसका शिकार बन जातें हैं, जैसे :-

  • वनो की कटाई करना-> मनुष्य अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए बुनयादी ढांचे का विकास कर शहरीकरण का विस्तार कर रहा है और जंगलों के वन को नष्ट करके उन पेड़-पौधों को शहर में लगाया जा रहा है, जिसके कारण पशु अपने भोजन के लिए शहर में आने को मजबूर हो जातें हैं और इससे मानव-पशु संघर्ष होता है।
  • कृषि क्षेत्र का विस्तार-> देश में दिन-प्रतिदिन आबादी बढ़ रही है और लोगों का उपभोग भी तेजी से बढ़ रहा है, जिसके कारण खाद्य सामग्री की मांग की आपूर्ति करने के लिए कृषि का विस्तार हो रहा है, जिससे जंगलों के पास जो किसान कृषि करतें हैं उन्हें पशुओं के हमले का डर होता है।
  • बढ़ती भारत की जनसँख्या-> भारत की जनसँख्या विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसँख्या है और आने वाले कुछ सालों में भारत विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला देश होने वाला है, जिसके कारण लोग अपने आश्रय के लिए जानवरों के आश्रय और निवास स्थान को नष्ट कर रहें हैं, जिसके परिणामस्वरूप पशु मानव के क्षेत्र में आ जातें हैं।
  • विभिन्न प्रकार के पशुओं से जुड़ा खेल-> हमारे भारत में विभिन्न संस्कृतियां वास करती और कुछ संस्कृतियों का त्यौहार पशुओं के खेल से जुड़ा है, जैसे; जालिकट्टु खेल (तमिलनाडु), कम्बाला (आँध्रप्रदेश), मुर्गे की लड़ाई (झारखण्ड, तमिलनाडु, केरल), ऊँट की दौड़ (राजस्थान) तो इन खेलों के दौरान भी ऐसी घटनाएं होती हैं जो मानव-पशु के संघर्ष का कारण बनती हैं।
  • पशु तस्करी और अवैध शिकार-> मानव-पशु का सबसे प्रचलित कारण यह है क्यूंकि मानव एक ऐसा जानवर हो गया है जो अपने आदतों और लालच के लिए किसी भी हद तक जा सकता है और मानव में पशुओं के प्रति जो नैतिक व्यवहार था वह धीरे-धीरे खत्म होते जा रहा है।
    • इंडियन पंगोलिन्स, एशियाई एलीफैंट्स, एक सिंघ वाले गेंडे, इंडियन कछुए इन सभी पशुओं की बड़े स्तर पर तस्करी की जाती है क्यूंकि इन पशुओं की कीमत वैश्विक बाजार में लाखों हैं।
    • बहुत से लोग पशुओं का अवैध शिकार करतें हैं, जहर देकर उन्हें मार देतें हैं और ऐसे मामले हमारे देश में बंदरों और हाथियों के साथ देखने को मिलता है क्यूंकि मरे हुए हाथी की कीमत जीवित हाथी से कई गुना ज्यादा होती है।
  • परिवहन और ट्रैन से होने वाली दुर्घटना-> भारत में अधिकतर मानव-पशु संघर्ष के मामले परिवहन और ट्रैन से होने वाली दुर्घटना के कारण होती है, जिसमे जानवरों की मौत भी हो जाती है क्यूंकि पशुओं को एक जंगल से दूसरे जंगल में जाने के लिए रास्ते या फिर ट्रैन के पटरियों का इस्तेमाल करना पड़ता है।

इसलिए, सरकार परिवहन और ट्रैन से सम्बंधित पशुओं की दुर्घटना को कम करने के लिए जगह-जगह पशु गलियारा, अंडर पासेस का विकास कर रही है।

  • औधौगिकी विकास-> औद्यगिकी का विकास देश में बढ़ता जा रहा है और इससे सबसे बड़ी समस्या पशुओं के लिए यह है की उनका आश्रय नष्ट हो रहा है क्यूंकि औधौगिक विकास जनसँख्या वाले क्षेत्रों से दूर किया जाता है और इसी कारण से इसका परिणाम पशुओं को भुगतना पड़ता है।

मानव-पशु संघर्ष को रोकने के उपाय।

मानव-पशु संघर्ष को रोकना अतिआवश्यक है क्यूंकि अगर हम ऐसा करने में असमर्थ हो जातें हैं तो ऐसे मामलों में दिन-प्रतिदिन वृद्धि होगी जिसके कारण हमे भविष्य में जैव विविधता में कमी देखने को मिल सकती है और हमारे देश में मानव-हाथी संघर्ष अधिकतर देखा जा सकता है अगर यह शिलशिला देश में जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं है जब विश्व का सबसे बड़ा जमीन पर रहने वाला स्तन धारी जानवर विलुप्त होता दिखेगा, जिसे हमारी आने वाली पीढ़ी संग्रहालयों में देखेगी।

इसलिए इसे रोकने का प्रयास हम जरूर कर सकतें हैं, जैसे :-

  • सरकार मानव-पशु के संघर्ष को कम करने और उसपर नियंत्रण प्राप्त करने के लिए ग्राम पंचायतों को जिम्मेदार और जवाबदेह बना सकती है।
  • जंगलों के नजदीक रहने वाले स्थानीय ग्रामीणों में ऐसी जागरूकता फैलाएं की यदि किसी जंगली पशु के द्वारा आक्रमण किया जाये तो वह तुरंत वन विभाग को सूचित करें।
  • मनुष्यों को इस बात की जानकारी प्रदान करे की जैव विविधता सृष्टि और मानव के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • मनुष्यों को उनकी मानवीयता ज्ञात करनी चाहिए, जानवरों के प्रति मानव का नैतिक व्यवहार कैसा होना चाहिए, यह महसूस कराने का अब सही समय आ गया है।
  • केंद्र सरकार राज्य सरकारों को यह निर्देशित करे और इसकी पुष्टि करे की वन में पशुओं के लिए पर्याप्त भोजन और पानी की उपलब्धता हो ताकि पशु शहरी क्षेत्र में ना जाएँ और किसानो की फसलों को बर्बाद ना करें।
  • जंगली जानवरों की सुरक्षा के लिए बायो फेंसिंग बैरियर, अंडर पासेस, पशुओं के लिए गलियारा, रेलवे ट्रैक पर अलार्म और भी तकनिकी उपकरणों का इस्तेमाल सरकार कर सकती है।
  • सरकार को ऐसे कड़े सख्त कानून बनाने चाहिए जिससे जंगली जानवरों के अवैध व्यापार करने वाले शिकारियों और तस्करों के खिलाफ सख्त कार्यवाई की जा सके।

“हम मानव हैं मानव ही बन कर रहें जानवर की प्रवृति हमपर शोभा नहीं देती क्यूंकि ईश्वर ने हमे बुद्धि-विवेक प्रदान किया है ना की जानवरों को इसलिए अगर हम जानवरों के रास्ते में नहीं आएंगे तो वह भी हमारे रास्ते में नहीं आएंगे”

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