भारत में जातिवाद। (Casteism in India.)

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राधे-राधे, आदाब, सत्यश्रीअकाल, हैलो मेरे प्यारे दोस्तों, हमारे “भारत में जातिवाद (Casteism in India)” एक ऐसा सामाजिक बुराई है, जो की हज़ारों वर्षों पहले से चलती आ रही है लेकिन इस बुराई को आज भी समाज में पूरी तरह से खत्म नहीं किय जा सका है, जिसके पीछे का कारण है प्राचीन रूढ़िवादी सोच और यह सोच आज भी हमारे समाज को कहीं-न-कहीं आगे बढ़ने से रोकता है, आज भी कुछ ऐसे लोग हैं समाज में जो की यह समझतें ही नहीं हैं की ईश्वर ने हम सबको एक जैसा शरीर प्रदान किया है, हम सब इंसान इस दुनिया में एक प्रकार से जन्म लेते हैं और एक प्रकार से मरते भी हैं लेकिन सब कुछ एक जैसा होने के बावजूद हमे समाज के द्वारा इतनी जातियों में बाट दिया गया है की हम यह भूलने लगतें हैं की हम सब एक ही हैं।

हालंकि, जातिवाद की समस्या पहले की तुलना में बहुत कम हो गयी है और इसके प्रति लोगों की अवधारणा में भी परिवर्तन देखने को मिला है अधिकतर भारतीय लोगों की सोच में यह अंतर आया है की इस समाज में केवल दो ही वर्ग हैं ‘महिला और पुरुष’ जिसके कारण यह समाज आगे बढ़ता है।

how casteism prevail in india
Casteism in India

इस जातिवाद को समाज से कम करने और इसके प्रति लोगों के सोच को परिवर्तित करने में सबसे मुख्य भूमिका हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों, समाज सुधारकों, सामाजिक कार्यकर्ता, और संविधान के निर्माताओं के द्वारा निभाया गया है, जैसे; महात्मा गांधीजी, भीमराव अम्बेडकर जी, राजा राम मोहन राय जी, महादेव गोविन्द रानाडे जी, स्वामी विवेकानन्द जी, स्वामी दयानन्द सरस्वती जी और ज्योतिबा राव फुले जी जैसे कुछ हस्तियों ने जातिवाद को खत्म करने में अपना योगदान बढ़-चढ़ कर इस समाज को दिया।

जातिवाद क्या है?

जातिवाद (Casteism) समाज में एक भेद-भाव की निति है, जिसमे हिन्दू शास्त्रों के अनुसार प्राचीन काल में लोगों को उनके कार्य और प्रतिभा के आधार पर चार वर्णों में वर्गीकृत कर दिया गया, जहाँ ब्राह्मण को सबसे उच्च जाती में रखा रखा गया, फिर उसके निचे क्षत्रिय को रखा गया, फिर वैश्य को रखा गया और अंतिम में क्षुद्र जाती को रखा गया और इसी तरह फिर जो जिस जाती में जन्म लेगा वह वंशानुगत के हिसाब से उसी जाती का होगा।

इन्ही चार वर्णों को जातियों के बिच भेद-भाव करना ब्राह्मण को ऊँची जाती का दर्जा देना और क्षुद्रों को निचली जाती का दर्ज देना, हमारे समाज में लोगों की सोच को बदलता गया और फिर समाज में लोगों के द्वारा जातिवाद के नाम पर काम किया जाने लगा। जो भी ऊँची जाती के होतें उनको सम्मान दिया जाता और समाज में उनके प्रति आदरभाव रहता लेकिन वहीँ निम्न वर्ग और निचली जाती को हर समय अपमानित होना पड़ता और अंतर्जातीय विवाह तो पूरी तरह से प्रतिबंधित थी।

  • ब्राह्मण जाती में पुजारी, शिक्षक और विद्ववाण लोगों को रखा गया।
  • क्षत्रिय जाती में योद्धा और शासक को शामिल किया गया।
  • वैश्य जाती में किसान और व्यापारियों को रखा गया।
  • क्षुद्र जाती में मजदुर, सफाई करने वाले और अन्य छोटे काम को करने वालों को रखा गया।

भारत में जातिवाद का इतिहास।

भारत में जातिवाद (Casteism in India) से सम्बंधित बहुत से सिद्धांत हैं, जिसमे से कुछ सिद्धांत ऐसतिहासिक है और कुछ धार्मिक हैं।

क) धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार प्राचीन काल के हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में वर्ण व्यवस्था का उल्लेख किया हुआ है, जिसमे बताया गे है की ब्रह्मा जी (हिन्दुओं के देवता) जो संसार के रचयिता है, उनके:-

  • मुख से ब्राह्मण की उत्पत्ति हुई है
  • बाँह और हाथों से क्षत्रिय की उत्पत्ति हुई है
  • जंघाओं से वैश्य की उत्पत्ति हुई है
  • चरणों से क्षुद्र की उत्पत्ति हुई है

भगवत गीता, महाभारत, मनुस्मृति इन सभी धार्मिक पुष्तकों में भी वर्ण व्यवस्था के अधिकार और कर्तव्यों के बारे में उल्लेख किया गया है। वर्ण व्यवस्था ईश्वर के द्वारा इसलिए विकसित की गयी थी ताकि श्रिस्टी में लोगों के बिच अपने कर्मो और अधिकारों को लेकर कोई असहमति ना हो, लोग अपने कर्तव्यों को पहचान सकें, समाज में लोगों के बिच कोई दुविधा या टकराओ उत्पन्न ना हो, समाज में एक समृद्ध और सशक्त व्यवस्था बनी रहे और लोग अपने कर्तव्यों और कर्मो से पहचाने जा सकें जिसके अंदर जैसा गुण हो, लोग अपने गुण से अपने वर्ण का चयन करें ना की जन्म से लेकिन यह वर्ण व्यवस्था धीरे-धीरे लोगों के द्वारा जाती व्यवस्था में बदल दी गयी।

जहाँ फिर समाज में जातिवाद शुरू हो गयी और इन चार वर्णो को हमारे समाज ने हज़ारों जातियों में बदल कर रख दिया, जिसे आजतक भी खत्म नहीं किया जा सका।

ख) ऐतिहासिक सिद्धांत के अनुसार भारत में जाती व्यवस्था आर्यन्स के द्वारा 1500 ईश्वी पूर्व लेकर आयी गयी थी, जहाँ उन्होंने अपने आप को तीन समूहों में संगठित कर लिया था, जिसमे:-

  • पहले समूह में योद्धा शामिल थे, जिसे क्षत्रिय कहतें थे।
  • दूसरे समूह में पुजारी थे उन्हें ब्राह्मण कहतें थे।
  • तीसरे समूह में किसान और शिल्पकार थे जिसे वैश्य कहने लगे।

जब आर्यन्स भारत में आएं थे तो उन्होंने स्थानीय लोगों को खदेड़ कर बाहर निकाल दिया था और जो स्थानीय लोग के साथ आर्यन्स के वंशज थे उन्हें यह क्षुद्र मानते थे।

भारत में जातिवाद का नकारात्मक प्रभाव।

भारत में जातिवाद (Casteism in India) के अनगिनत नाकारात्मक प्रभाव देखने को मिल जातें हैं, जो की हमारे समाज और देश की एकता और अखंडता को बुरी तरह से नुक्सान पहुँचाता है, जैसे:-

  • समाज का विभाजन-> जातिवाद समाज को विभिन्न हिस्सों में बाट देता हैं, हम सब कहतें तो हैं की हम अखंड भारत के लोग हैं लेकिन सच तो यह है की हमने इस अखंड भारत के समाज को अनगिनत जातियां बनाकर पूरी तरह से खंडित कर दिया है।
  • रंगभेद की विचारधारा-> जातिवाद लोगों में यह विचार उत्पन्न कर देता है की हम ऊँची जाती के हैं हमारा रंग साफ़ है, तुम निचली जाती के हो तो तुम्हारा रंग काला है, तो जातिवाद हर स्तर पर लोगों के बिच अंतर उत्पन्न करता है।
  • वंशानुगत बनाता है-> जाती के नाम पर यह तय हो जाता है की अगर कोई ऊँची जाती में जन्म लिया है तो वह ऊँची जाती का ही होगा बजाये इसके की उसकी सामाजिक छवि कैसी है और भले ही वह कितना भी ख़राब काम कर ले फिर भी वह अपने वंशनुगत के अनुसार उच्च जाती का ही माना जायेगा क्यूंकि जाती की सदस्यता उसे जन्म से विरासत में मिली है।
  • सगोत्र विवाह-> जाती व्यवस्था में ऐसा माना जाता है की अपनी जाती में ही और अपने समुदाय के साथ ही विवाह करना है अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह उस जाती से बहिस्कृत कर दिया जाता है।
  • रूढ़िवादी समाज-> जातिवाद समाज की सोच को सिमित कर देता है और इसी कारण से हमे समाज की रूढ़िवादी सोच को परिवर्तित करना बहुत कठिन हो जाता है, इसलिए आज़ादी के 75 साल के बाद भी हम अपने समाज से इस सोच को पूरी तरह से खत्म करने में नाकामयाब रहें हैं।
  • अस्पृशयता (Untouchability)-> अस्पृशयता का प्रचलन आज भी हमारे समाज में भली-भातिं देखा जा सकता हैं, जहाँ निम्न जाती वाले व्यक्ति कूड़ा उठाना, हाथ से मैले को साफ़ करना यह काम करतें हैं, उन्हें लोग समाज में अछूत के नज़रिये से देखतें हैं, बहुत जगह उन्हें मंदिरों में भी जाने की अनुमति नहीं होती है, बहुत जगहों पर उन्हें पानी भरने भी नहीं दिया जाता है।
  • राष्ट्र के एकता और विकास के लिए खतरा-> जातिवाद राष्ट्र में बहुत से विभाजन कर देता है, जिससे हमारे देश की ‘विविधता में एकता’ वाली निति पर सवाल खड़े होतें हैं और हमारे देश में उच्च जाती वालों ने हमेशा उच्च स्तर के पद पर काम किया है, जिसके कारण निम्न जाती के लोगों में प्रतिभा होते हुए भी उन्हें राष्ट्र के विकास में अपना योगदान देने का मौका नहीं मिल पाता, जिससे हमारा देश विकास के उच्च स्तर को छूने में असमर्थ है।
  • महिलाओं की निम्न स्तिथि-> जातिवाद की इस घिनौनी प्रथा का सबसे अधिक पीड़ा निम्न स्तर की महिलाओं को भुगतना पड़ता है क्यूंकि पहली बात वह महिला हैं इसलिए उन्हें समाज की अनेकों कुरीतियों का सामना करना पड़ता है और दूसरी बात उन्हें समाज में निम्न जाती के होने का भेद-भाव, कई बार निम्न जाती के महिलाओं को ऊँची जाती के पुरुषों के द्वारा शारीरिक और यौन उत्पीड़न भी किया जाता है।
  • धर्म परिवर्तन-> बहुत से लोगों के द्वारा हिन्दुओं में जाती व्यवस्था की इस प्रथा से परेशान होकर उनके द्वारा अपना धर्म दूसरे किसी धर्मों में परिवर्तित कर लिया जाता है, जैसे; इस्लाम धर्म, ईसाई धर्म, बुद्ध धर्म।

भारत में जातिवाद के लिए संवैधानिक प्रावधान।

भारत में संविधान निर्माताओं द्वारा स्वतंत्रता के बाद जाती के आधार पर भेद-भाव करना संवैधानिक तौर पर अवैध घोसित कर दिया गया था और हमारे देश के ‘संविधान के जनक भीमराव अम्बेडकर जी खुद एक निम्न वर्ग के दलित जाती के थे’  और इनके द्वारा जातिवाद पर ख़ास ध्यान दिया गया और इसलिए उन्होंने संविधान में निम्न जातियों को बराबर का हक़ प्रदान किया है, जैसे:-

  • संविधान का अन्नुछेद-14′ यह पुष्टि करता है की भारत के हर नागरिक को ‘कानून के समक्ष सामानता प्रदान की जाएगी’
  • संविधान का अन्नुछेद-15′ भारत के हर नागरिक को यह आदेश देता है की वह किसी भी व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार से ‘जाती या नस्ल के आधार पर भेद-भाव ना करें’
  • संविधान का अन्नुछेद-16′ भारत के हर नागरिक को चाहे वह किसी भी जाती का हो उसे ‘सार्वजनिक रोजगार में सामान अवसर’ प्रदान करने की घोसना करता है और अन्नुछेद-335′ राज्य को यह अधिकार देता है की वह निम्न जातियों के पक्ष में पदों की नियुक्ति के लिए आरक्षण प्रदान कर सकता है।
  • संविधान का अन्नुछेद-17′ अस्पृशयता (Untochability) की प्रथा को समाप्त करने का आदेश देता है।
  • संविधान क अन्नुछेद-46′ राज्यों को आदेश देता है की वह अनुसूचित जाती और अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा दें।
  • संविधान का अन्नुछेद-338′ और अन्नुछेद-338- राज्यों को अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाति के लिए एक राष्ट्रिय आयोग का गठन करने का आदेश देता है, जो की निम्न जातियों के अधिकार को और उनके हिट की रक्षा करतें हैं।

निष्कर्ष।

भारत में जातिवाद (Casteism in India) की प्रथा हज़ारों वर्षों से चलती आ रही है, जिसे आज भी पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सका हैं और भविष्य में भी यह खत्म नहीं किया जा सकता है लेकिन जिस प्रकार से जाती व्यवस्था का प्रचलन पहले के मुकाबले आज के समाज में इसका असर बहुत कम हो गया है परन्तु खत्म नहीं हुआ है तो इसी प्रकार हम आने वाले समय में भी इस जातिवाद के कुरीति को समाज से कम कर सकतें हैं और इसके लिए केवल सरकार की प्रयाश ही काफी नहीं है हमे अपने स्तर पर भी समाज में सामूहिक प्रयाश करने होंगे।   

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