राधे-राधे, आदाब, सत्यश्रीकाल, हेलौ मेरे प्यारे दोस्तों, हमारे समाज के बच्चों में अभी एक अलग ही प्रचलन देखने को मिल रहा है, “बच्चों में गेमिंग की लत (Addiction of Gaming on Children)” समाज के लिए एक बहुत बड़ी समस्या निकल कर सामने आ रही है, जहाँ माता-पिता और अभिभावक के द्वारा इसे ज्यादा गंभीरता पूर्वक नहीं लिया जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप हमे अपने समाज में बच्चों में गेमिंग की लत बढ़ती नज़र आ रही है।
आज हमे अपने समाज में अधिकतर बच्चों के पास जो भी 18 साल से कम उम्र के हैं उनके हाथों में डिजिटल फ़ोन देखने को मिलता है और अभी तो यह और भी आम बात हो गयी है क्यूंकि कोरोना महामारी के बाद सभी बच्चों की पढाई ऑनलाइन कर दी गयी जिसके वजह से अभिभावक भी अपने बच्चों को डिजिटल फ़ोन देने के लिए मजबूर हो गएँ हैं और अभिभावक की इसी मज़बूरी ने बच्चों की पढाई के साथ-साथ उन्हें इंटरनेट गेमिंग के लत का भी शिकार बना दिया है।
माता-पिता और अभिभावक यही सोचतें हैं की उनका बच्चा फ़ोन और लैपटॉप में पढाई कर रहा है लेकिन वह बच्चा तो गेम खेल रहा होता है और यह ऐसी लत होती है जहाँ बच्चा हारने के बाद भी खेलता है और जितने के बाद भी खेलता है, जिसके कारण उस बच्चे की लैपटॉप और फ़ोन के सामने बैठने की ‘स्क्रीन समय‘ भी बढ़ जाती है, जो एक चिंता का विषय है।
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बच्चों में गेमिंग की लत का प्रभाव। (The impact of gaming addiction in children.)
हम अपने देश में बच्चों के बिच इस इंटरनेट गेमिंग के लत को निरंतर बढ़ता हुआ देख रहें हैं, जो विशेष रूप से बच्चों के ऊपर अपना गहरा प्रभाव डाल रहा है, जिसका परिणाम हम बच्चों के ‘मानशिक और शारीरिक‘ स्वास्थ्य में देख सकतें हैं, जैसे :-
यदि बच्चों को अभिभावकों के द्वारा खेल खेलने की अनुमति नहीं दी जाती है या उन्हें वीडियो गेम खेलने से रोका जाता है तो बच्चे चिड़चिड़े, चिंतित, या उदास हो जातें हैं और उनके द्वारा कुछ ऐसी गतिविधियां की जातीं हैं (खाना नहीं खाना, खुद को नुकशान पहुँचाना, घर के सामान को नुकशान पहुँचाना, अभिभावकों की बातें नहीं सुनना) जिससे अभिभावक भी उन्हें खेलने की अनुमति देने के लिए मजबूर हो जातें हैं।
जैसा की आप जानते होंगे बहुत से ऐसे खतरनाक ऑनलाइन खेल हैं जो खासतौर पर बच्चे को अपना शिकार बनाते हैं, जैसे:-
“ब्लू व्हले गेम, फ्री फायर, कॉल ऑफ़ ड्यूटी, पबजी, काउंटर स्ट्राइक” ये सारे ऐसे हिंसक ऑनलाइन गेम हैं, जो बच्चों को मानसिक रूप से सत्य होने का आभास कराता है, जिससे बच्चे अपनी जान स्वयं ही ले लेते हैं या फिर उनकी गतिविधियां और व्यवहार हिंसक हो जाती है, इसलिए इन ऑनलाइन गेमिंग कि लत बच्चों के जीवन को पूरी तरह से ख़राब कर देती है।
हालाँकि, इन सभी ऑनलाइन गेम्स के पीछे कोई न कोई जरूर होता है, जो ऐसे नकारात्मक गतिविधियों को करवा रहा होता है लेकिन बच्चों को इसके बारे में क्या पता, इसलिए माता-पिता और अभिभावक अपने बच्चों के इंटरनेट गतिविधियों को समय-समय पर जाँच अवश्य करतें रहें।
“आल इंडिया गेमिंग फेडरेशन” के अनुसार, भारत का ऑनलाइन गेमिंग उद्योग 2023 तक 15500 करोड़ रूपये का होने की उम्मीद है। अमेरिका आधारित ‘लाइमलाइट नेटवर्क्स’ द्वारा 2019 के एक सर्वेक्षण में पाया गया की भारत में दक्षिण कोरिया के बाद गेमर्स की दूसरी सबसे बड़ी संख्या थी। ‘राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तांत्रिक विज्ञान संस्थान’ के द्वारा सप्ताह में केवल 2-3 मामले मिलते थे लेकिन अब लगभग 15 मामले प्रति सप्ताह देखने को मिलते हैं, जिनमे से सभी किशोर अपने माता-पिता द्वारा लाये गए हैं।
दुनिया भर में इंटरनेट गेमिंग की समस्या इतनी बढ़ गयी है की “विश्व स्वास्थ्य संगठन” के द्वारा 2018 में ‘गेमिंग डिसऑर्डर‘ को मानसिक स्वास्थ्य की स्तिथि के रूप में वर्गीकृत किया।
हालांकि इन सब के अलावा भी कुछ ऐसी छोटी-छोटी बातें हैं जो हमारे समाज में बच्चों पर गेमिंग की लत का प्रभाव डाल रहा है, जिसपर अभिभावक को ध्यान देना होगा:-
- गेमिंग की लत के कारण बच्चे अपने लिए लक्ष्य तय नहीं कर पातें हैं या गर लक्ष्य तय भी कर लेते हैं तो उनपर ध्यान केंद्रित नहीं कर पातें हैं।
- गेमिंग की लत के कारण बच्चों में रचनात्मक सोच और सृजन की प्रक्रिया में कमी देखने को मिलती है, जिससे बच्चों की शैक्षणिक विफलता में वृद्धि होती है।
- गेमिंग की लत के कारण बच्चों की डाटा और गोपनीयता का भी उलंघन देखने को मिलता है, जहाँ कई और भी जोखिम शामिल होतीं हैं जिसमे अनुचित बातें बताना, साइबर धमकी, यौन शोषण भी होता है।
- गेमिंग की लत के कारण बच्चे अपने आप को समाज से दूर कर लेते हैं और बाहर खेलें जाने वाले खेलों में अपनी रूचि कम कर लेते हैं।
- गेमिंग की लत के कारण बच्चों में बचपन से ही अवसाद और चिंता देखने को मिलती है और मार-पिट वाले वीडियो गेम खेलने से वह समाज के प्रति हिंसक भी हो जातें हैं जहाँ उनके द्वारा खेले गए ऑनलाइन खेलों को भौतिक रूप से समाज के प्रति प्रयाश किया जता है।
अभी हाल ही में चीन के द्वारा वीडियो गेम्स पर प्रतिबन्ध लगाया गया है, जो दुनिया के सबसे बड़े गेम बाज़ारों में से एक है लेकिन वीडियो गेम की लत को काबू करने के लिए 18 साल से कम आयु के बच्चे को प्रति सप्ताह केवल तीन घंटे ऑनलाइन गेम खेलने के लिए सिमित कर दिया गया है और प्रतिबन्ध को लागू करने के लिए गेमिंग उद्योगों को जिम्मेदार बनाया है।
भारत में गेमिंग की लत पर नियम और कानून। (Rules and Regulations on gaming addiction in India.)
चुकीं गेमिंग उद्योग भारत में पिछले वर्षों में फल-फूल रहा है, गेमिंग की विभिन्न पहलुओं, विशेष रूप से सेंसरशिप के सम्बन्ध में कोई विशेष कानून तो नहीं है लेकिन कुछ ऐसे अन्नुछेद संविधान में दिए हैं जिसके प्रावधानों की गणना हम स्थाई रूप से वीडियो गेम्स के नियमों और सेंसरशिप को निर्देशित कर सकतें हैं:-
हालाँकि गेमिंग कंपनियों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत स्वतंत्र रूप से अपने व्यापार का अभ्यास या सञ्चालन करने का अधिकार है, इसे संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत शालीनता और नैतिकता के हित में प्रतिबंधित किया जा सकता है, अगर गेमिंग उद्योग का व्यापर की स्वतंत्रता किसी भी आधार की सिमा को पार करता है तो उसपर उचित प्रतिबन्ध लगाए जा सकतें हैं।
संविधान का अनुच्छेद 39(f) एक निर्देशक सिद्धांत है जो बच्चों की सुरक्षा प्रदान करता है। इसमें कहा गया है की बच्चों को उन परिस्थितियों के साथ प्रदान किया जायेगा जिसमे वह स्वस्थ तरीके से विकसित होंगे, साथ ही युवाओं और बच्चों के लिए शोषण और नैतिक परित्याग के खिलाफ सुरक्षा प्रदान की जाएगी। हालाँकि यह अनुच्छेद सारे राज्य सरकार के लिए एक सुझाव है, जिसे राज्य सरकार बच्चों में बढ़ते गेमिंग के लत को नियंत्रित करने के लिए उपयोग कर सकती है।
- राजस्थान सरकार द्वारा अभिभावकों और शिक्षकों के लिए गेमिंग से बचाने के लिए एडवाइजरी जारी की गयी है की जिसमे उन्हें अपने बच्चों पर निगरानी रखने के लिए कहा गया है और घर पर एक ‘इंटरनेट गेटवे‘ स्थापित करने का सुझाव दिया है जो बच्चे द्वारा सामग्री की प्रभावी निगरानी, लॉगिंग और उपयोग करने में मदद करेगा।
- दक्षिण राज्यों में भी रमी, पोकर, और यहाँ तक की फेनटेसी स्पोर्ट्स जैसे ऑनलाइन गेम पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग कर रहें हैं जो पुरूस्कार राशि या वित्तीय दाव की पेशकश करते हैं लेकिन केरल उच्च न्यायालय ने इस मांग को रद्द कर दिया।
हमारे देश की सरकार को इस इंटरनेट गेमिंग और वीडियो गेम्स पर प्रतिबन्ध लगाने के बजाय इसे विनियमित करना चाहिए क्यूंकि प्रतिबन्ध करने के बाद भी इसे अवैध रूप से खेला जा सकता है और ठीक उसी प्रकार से विनियमित करना चाहिए जैसे चीन के द्वारा किया गया है और जिम्मेदारी गेमिंग उद्योग को दे देनी चाहिए।
बच्चों में गेमिंग की लत को कैसे रोकें? (How to stop gaming addiction in kids.)
आज के समय यह समाज में घर-घर की समस्या बन चुकी है, जिससे सभी अभिभावक परेशान हैं क्यूंकि इस डिजिटल युग में बच्चों की पढाई बिना इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के संभव नहीं है, इसलिए अभिभावक भी अपने बच्चों को फ़ोन और लैपटॉप देने के लिए मजबूर हैं।
लेकिन अभिभावक इस डिजिटल पढाई का बच्चों पर होने वाले गलत असर से परेशान हैं, जिसका समाधान अभिभावकों द्वारा बहुत ही सरल तरीके से कुछ-कुछ छोटी बातों पर ध्यान रख कर दीया जा सकता है:-
- बच्चों को उसके जरुरत के हिसाब से और जरुरत के समय ही इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का इस्तेमाल करने की अनुमति दें। अभिभावक को बच्चों की क्लासेज के बारे में अच्छी तरह मालूम होनी चाहिए।
- अभिभावक अपने बच्चों के मोबाइल फ़ोन्स और लैपटॉप की हिस्ट्री समय-समय पर जांच करतें रहें जिससे पता चल सके की उनका बच्चा कहीं कोई गेम्स तो नहीं खेल रहा है।
- अगर बच्चा गेम खेलने की ज़िद करता है तो अभिभावक उसकी पिटाई ना करें या उसे डाटें नहीं क्यूंकि ऐसा करने से बच्चा और ज़िद्दी हो जाता है, जहाँ वह सोचता है की जो चीज़ मुझे पसंद है उसे मुझे करने से मना किया जा रहा है और सामने वाले को वह अपना दुश्मन समझने लगता है। इसलिए अभिभावक अपने बच्चे को समझाएं और खेल को अचानक से बंद ना करके उसकी लत को धीरे-धीरे कम करने की कोशिश करें और बच्चे को प्यार से उसके होने वाले नुकशान के बारे में बताएं।
- बच्चों का स्क्रीन समय अभिभावक ध्यान रखें ताकि बच्चे ज्यादा देर तक स्क्रीन के सामने ना बैठे रहें और यह भी सुनिश्चित करें की बच्चे की पढाई खत्म होने के बाद गैजेट्स को 4-5 घंटे के लिए बच्चे से दूर रखें जिससे उनमे लत लगने की संभावना कम हो जाएगी।
- अगर आपका बच्चा शांत है, चिंतित है, किसी चीज के बारे में सोचता रहता है तो अभिभावक उनसे बात करें और आज के समय में बच्चे का अकेलापन ही उन्हें किसी लत के प्रति अग्रसर करता है।
- अभिभावक भी अपने बच्चों के सामने या घर पर मोबाइल फ़ोन्स और लैपटॉप का ज्यादा इस्तेमाल ना करें क्यूंकि अभिभावक भी ज्यादातर मोबाइल और लैपटॉप पर लगे रहतें हैं, ऐसे में बच्चे भी अपने माता-पिता को देख कर वही सीखेंगे इसलिए घर पर अपने बच्चों के साथ समय व्यतीत कीजिये।
- अभिभावक और माता-पिता अपने बच्चों के साथ दोस्त बन कर रहें उनसे अपनी बातें साझा करें, संयुक्त परिवार में बच्चे के साथ समय व्यतीत करने के लिए कई लोग रहतें हैं लेकिन आज के समय में न्यूक्लियर फैमिली के लिए यह एक चुनौती है। इसलिए माता-पिता घर पर हैं तो अपने बच्चे से उसकी पढाई के बारे में जाने, अपने बच्चे से एक दोस्त की तरह व्यवहार करें तभी आपका बच्चा एक दोस्त की तरह आपसे सारी बातें बताएगा।
तो इन्ही कुछ बातों का ध्यान रखकर अभिभावक और माता-पिता अपने बच्चों की हर गतिविधियों पर ध्यान और नियंत्रण रख सकतें हैं और आज के इस डिजिटल युग में अपने बच्चों को बचपन से इस इंटरनेट गेमिंग और वीडियो गेम्स की लत से बचा सकतें हैं।
“याद रखें ऐसी कोई भी लत नहीं होती है जिसे हम तुरंत दूर कर सकतें हैं लेकिन आप उसे प्यार से, सब्र रख कर और समझदारी से दूर जरूर कर सकतें हैं”
राधे राधे अति सुंदर विचार है जो कि हमारे देश के अभिभावक समझ सकते हैं और अपने बच्चो को इस लत से छुटकारा दिला सकते हैं