राधे-राधे, आदाब, सत्यश्रीकाल, हैलो मेरे प्यारे दोस्तों तो कैसे हो आप सब? दोस्तों हमारे “भारत में फेक न्यूज़ (Fake News in India)” का प्रचलन काफी तेजी से बढ़ रहा है, जो की हमारे समाज में होने वाले ‘हिंसा और अस्थिरता’ का मुख्या कारण है। फेक न्यूज़ को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से (व्हाट्सप्प, फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, इंस्टाग्राम) फैलाया जाता है, हालाँकि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को इस उद्देश्य बिलकुल भी नहीं बनाया गया था, लेकिन हमारे समाज के कुछ लोगों के द्वारा इसका इस्तेमाल बहुत सी गलत मतलब के लिए किया जाता है, जिनमे फेक न्यूज़ भारत के लिए एक गंभीर समस्या है इसलिए “फेक न्यूज़ को सोशल मीडिया का हथियार भी कहा जा रहा है”।
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*फेक न्यूज़ क्या है?
फेक न्यूज़ (Fake News) एक ऐसा न्यूज़ होता है जिसे विशेष रूप से किसी व्यक्ति, धर्म संगठन, सामाजिक समूह के द्वारा खुद से तैयार किया जाता है और उसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रसारित करके समाज में फैला दिया जाता है, जिसका उद्देश्य समाज और देश में ‘हिंसा और अस्थिरता’ को उत्पन्न करना होता है।
भारत में फेक न्यूज़ यानी गलत और झूठी सूचनाएं फ़ैलाने का प्रचलन इसलिए भी बढ़ता जा रहा है क्यूंकि अभी भारत के कुल आबादी का 50% से भी ज्यादा लोग (825.30 मिलियन) इंटरनेट का इस्तेमाल करतें हैं, जहाँ चीन के बाद पुरे विश्व में सबसे ज्यादा इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोग भारत में हैं, इसलिए भारत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स कंपनियों के लिए एक बहुत बड़ा बाजार बन गया है।
भारत में इतने इंटरनेट उपभोगता होने के कारण कोई भी बात सोशल मीडिया पर आग की तरह फ़ैल जाती है और हमारे समाज में भी लोगों के द्वारा खबर या सुचना की सत्यता की जाँच किये बिना उसपर विश्वास कर लेते हैं और उसे लाइक, शेयर और उसपर अपनी टिपण्णी करने लग जातें हैं।
इन्ही छोटी गलतियों और समाज में जागरूकता ना होने के कारण हमे हमारे देश में बहुत से गलत परिणाम देखने को मिलते हैं, जिससे हमारा समाज अनेको प्रकार से प्रभावित होता है और देश में असहिष्णुता को बढ़ाता है।
*भारत में फेक न्यूज़ के प्रभाव।
हमारे समाज में गलत और झूठे ख़बरों का प्रभाव इस हद तक बढ़ गया है की, “जो हमारे देश की एकता और अखंडता को नुक्सान पंहुचा रहा है, जो हमारे देश की संप्रभुता को ठेस पंहुचा रहा है, जो हमारे समाज के भाईचारे को खत्म कर रहा है, जो हमारे समाज के निर्दोष, कमजोर और गरीब लोगों के उत्पीड़न का कारण बन रहा है, जो हमारे धर्मनिरपेक्ष वाले समाज में लोगों के धार्मिक भावनाओ को ठेस पहुँचा रहा है, जैसे:-
- मोब लिंचिंग (भीड़ के द्वारा हत्या)-> फेक न्यूज़ के कारण यह समाज का एक बहुत बड़ा मुद्दा है, जहाँ कुछ झूटी सूचनाओं की वजह से (बच्चा चोरी करना, धार्मिक आक्रोश होना, झूठा दोषारोपण करना, पशु की हत्या करने के लिए उन्हें कसाई खाने ले जाना) कुछ लोगों की भीड़ के द्वारा किसी निहत्ते व्यक्ति की मार-मार कर हत्या कर दी जाती है।
- भारत में दंगे-> दंगे होने का एक मुख्य कारण है झूठी अफवा, जहाँ दो समुदाय के बिच, दो धर्मो के बिच, अल्पसंख्यकों के खिलाफ दंगे, राजनीति के कारण दंगे, यह सब होने वाली हिंसा फेक न्यूज़ और अफवाओं की देन है।
- भारत में साइबर सुरक्षा चुनौती-> हमारे देश में कुछ धोखा-धड़ी वाले संदेशों के कारण बहुत से अनजान व्यक्ति फस जातें हैं, जिन संदेशो में लालच की भावनाएँ छुपी होती है और जिसमे फसने के बाद लोगों की सोशल मीडिया के सभी जानकारियां किसी अन्य व्यक्ति के पास चली जाती है, जिससे उस अनजान व्यक्ति को नुक्सान का सामना करना पड़ता है।
- सम्मान रक्षा हेतु हत्या (honour killing)-> हमारे पितृसत्तातमक समाज में कुछ सामाजिक धारणाओं और अफवाओं की वजह से एक परिवार के सदस्य की इस विश्वास पर हत्या कर दी जाती है की उसने परिवार को शर्मसार किया है या फिर समुदाय द्वारा निर्धारित नियमों का उलंघन किया है। आमतौर पर महिलायें इसका शिकार होती है, यह परिवार के भीतर प्रचलित एक प्रकार की हिंसा है।
- भड़काऊ भाषण (Hate Speech)-> हमारे समाज में राजनीति के दौरान, चुनाव के दौरान, अल्पसंख्यकों के लिए, दूसरे धर्म के लिए, दूसरी जाती के लिए भड़काऊ भाषण बाजी की जाती है, सोशल मीडिया में फेक न्यूज़ फैलाई जाती है। जिसका सीधा असर समाज में दिखाई पड़ता है।
तो इस तरह से हमे समाज और देश में फेक न्यूज़ और अफवा के अनेको प्रकार के चेहरे देखने को मिलते हैं, जो की समाज में सोशल मीडिया के जरिये हथियार का काम करती है।
*भारत में फेक न्यूज़ से निपटने के लिए नियम और कानून।
इस फेक न्यूज़ का समाज और देश में बढ़ते दुष्प्रभाव के परिणाम को रोका तो नहीं जा सकता है लेकिन इसे कम करने की कोशिश जरूर की जा सकती है, जिसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने भी कुछ नियम अथवा कानून बनायें हैं:-
- इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 को अधिसूचित किया है। ये नए नियम मोटे तौर पर सोशल मीडिया और ओवर-द-टॉप (ओटीटी) प्लेटफार्मों और डिजिटल समाचारों के विनियमन से संबंधित हैं।
ये नियम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, मैसेजिंग एप्लिकेशन, स्ट्रीमिंग सेवाओं के साथ-साथ डिजिटल समाचार प्रकाशकों के उपयोगकर्ताओं के लिए कानून का अनुपालन और शिकायत निवारण तंत्र प्रदान करना चाहते हैं।
सरकार अभद्र भाषा को नियंत्रित करने की कोशिश करती है जो इन प्लेटफार्मों के माध्यम से फैलती है और राष्ट्रीय सुरक्षा को जिससे खतरा है, सरकार ने यह भी कहा था की वह फर्जी खबर(फेक न्यूज़) बनाकर फ़ैलाने वाले पहले निर्माता को पकड़कर दण्डित करना चाहती थी लेकिन, आलोचकों का कहना है कि डिजिटल मीडिया के सख्त नियमन के सवाल से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध और लोकतंत्र की अवहेलना होगी।
- भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में कुछ धाराएँ हैं जो नकली समाचारों पर अंकुश लगा सकती हैं: धारा 153(दंगा भड़काने के इरादे से उकसाना) और 295 (किसी भी वर्ग के धर्म का अपमान करने के इरादे से पूजा स्थल को चोट पहुँचाना या अपवित्र करना) फेक न्यूज़ से बचाव के लिए लागू किया जा सकता है।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में धारा 66: यदि कोई व्यक्ति, बेईमानी से या कपटपूर्वक, धारा 43 (कंप्यूटर, कंप्यूटर सिस्टम को नुकसान) में निर्दिष्ट कोई कार्य करता है, तो उसे कारावास से दंडित किया जा सकता है, जिसे तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है। या जुर्माने से, जो पांच लाख रुपये तक हो सकता है या दोनों से हो सकता है।
- मानहानि के लिए दीवानी या आपराधिक मामला फर्जी खबरों से आहत व्यक्तियों और समूहों के लिए फर्जी खबरों के खिलाफ एक और उपाय है। आईपीसी की धारा 499 (मानहानि) और 500 (जो किसी दूसरे को बदनाम करेगा, उसे साधारण कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता है, या जुर्माना, या दोनों के साथ) मानहानि के मुकदमे का प्रावधान है।
हालाँकि, यह सब तो ठीक है सरकार अपना काम तो कानून बनाकर कर ही रही है, लेकिन हम सब आम नागरिकों का क्या फर्ज है, अगर एक बार के लिए हम सब देशवासी सिर्फ यह सोच कर देखें की हम सब एक ही देश और समाज के इंसान हैं।
एक बार के लिए हम सब अपने धर्म, जाती, मजहब, समुदाय, लिंग यह सब को भूल जाएँ और सिर्फ यह सोचें की हम सब एक ही समाज के लोग हैं, तो फिर हमारे समाज में इन फर्जी ख़बरों का कोई अस्तित्व ही नहीं होगा।
यह फेक न्यूज़ समाज में केवल लोगों को एक दूसरे के प्रति भड़काने का काम करती है और लोगों के अंदर एक दूसरे के लिए घृणा उत्पन्न करती है, जो हमारे समाज में हिंसा को बढ़ावा देती है।
हमारा अपने समाज के प्रति यह कर्त्वय होना चाहिए की कोई भी ऐसा सन्देश जो हमारे पास आता है तो पहले उसकी सत्यता की पुष्टि करें की वह कितना सच है और फिर उसे आगे भेजें लेकिन आगे भेजने से पहले खुद भी यह सुनिश्चित करें की यह समाज में आगे चल कर किसी को नुक्सान न पहुँचाये और हिंसा को बढ़ावा ना दे।
*फेक न्यूज़ से बचने के लिए दिशानिर्देश।
- सरकार को और शक्त नीतियाँ बनानी चाहियें, जिसे नियमित रूप से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर फ़ैलने वाली फर्जी खबरों पर नियंत्रण रखा जा सके।
- सरकार को व्हाट्सप्प जैसी मेस्सजिंग एप्प्स पर पहले से एक अपना मेस्सजिंग बॉडी इनस्टॉल कर देनी चाहिए, जिससे उपभोगता के द्वारा व्हाट्सप्प इनस्टॉल करते ही वह मेस्सजिंग बॉडी स्वयं ही इनस्टॉल हो जाये और ऐसा करने से सरकार फेक न्यूज़ के सन्दर्भ में जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर फ़ैल रही है, उससे सभी व्यक्तिओं को जागरूक कर सकती है और फेक न्यूज़ फ़ैलाने पर क्या मान-दंड है यह भी बता सकती है।
- सोशल मीडिया पर आये लालच में फ़साने वाले फेक न्यूज़ की सत्यता को जानने के बाद आगे बढ़े।
- किसी भी मैसेज के द्वारा दिए गए ‘ब्लू लिंक‘ को जांचने के बाद ही उसपर क्लिक करें क्यूंकि अगर वह फेक हुई तो आपकी निजी जानकारियों का गलत उपयोग किया जा सकता है।
- फेक न्यूज़ को फ़ैलाने के लिए जिम्मेदार किसी भी व्यक्ति को पकड़ने के लिए राज्य के साइबर क्राइम पुलिस तंत्र को मजबूत किया जाना चाहिए।
इन सभी बातों का ध्यान रख कर हम समाज में सोशल मीडिया में फैलाई जाने वाली फेक न्यूज़ जैसे हथियार का उपयोग को कम कर सकतें हैं और एक संगठित समाज की स्थापना कर सकतें हैं।
राधे राधे इस आर्टिकल को पढ़कर बहुत अच्छा लगा कि लोग कम से कम जान सके कि समाजिक पटरी किया है ये आर्टिकल कम पढ़े लिखे लोगों को जागरूक करने का प्रयास करेंगे आर्टिकल में सभी बिंदुओं को ठीक से समझाया गया है राधे राधे