भारत में दहेज़ प्रथा। (Dowry System in India.)

Share & Help Each Other

राधे-राधे, आदाब, सत्यश्रीकाल, हैलो मेरे प्यारे दोस्तों तो कैसे हो आप सब? आज मैं आप सब से “भारत में दहेज़ प्रथा (Dowry System in India)” के सम्बन्ध में समाज की वह वास्तविक सोच आप सब के साथ साझा करूँगा, जिसके कारण इस समाज से दहेज़ प्रथा समाप्त ही नहीं हो रहा है। हम सब समाज में दहेज़ के विरोध में बातें करते हैं लेकिन जब समय आता है तो अधिकतर लोग अपना असली चेहरा समाज के सामने प्रकट कर देतें हैं। दहेज़ हमारे समाज की एक ऐसी कुप्रथा है जिसने कितनी बेटियों की ज़िन्दगी बर्बाद कर दी है, जिसने कितनी बेटियों की जान ले ली है, जिसने कितने ही माँ-बाप के अरमानो को कुचल कर रख दिया, जिसने कितने माँ-बाप को खून के आसूँ रोने के लिए मजबूर कर दिया इन सब के बावजूद समाज में आज भी दहेज़ लेने का प्रचलन को लोग अपनी शान समझतें हैं।

हमारे समाज में दहेज़ (Dowry) लेने वालों की सोच इस हद तक गिर गयी है की वह अधिकतम दहेज़ की मांग को अपनी शान समझतें हैं, लेकिन यहाँ मैं गुजारिस करूँगा उनसे जो दहेज़ लेना अपनी शान समझतें हैं की वह खुद एक बाप के नाते यह सोच कर देखे  बेटी के पिता ने अपनी पूरी ज़िन्दगी की कमाई, अपने घर की किलकारी और अपने घर का रौनक ही तुम्हे सौंप रहा हो, यह सोच कर की उसकी बेटी अब तुम्हारे घर को रौनक करे और तुम्हारे घर के वंश को आगे बढ़ाये तो तुम ऐसे पिता से दहेज़ की क्या मांग करते हो जो तुम्हे अपने घर की सारी खुशियां ही दे रहा हो।

taking dowry from bride
Dowry System

हर माता-पिता का यह शौख होता है की वह अपनी प्यारी बेटी को अपने सामर्थ्य से ज्यादा दे लेकिन इसके बावजूद भी हमारा समाज दहेज़ की मांग करता है, जिसके परिणामस्वरूप इसका प्रभाव हमारे समाज में स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है।

भारतीय समाज में दहेज़ का प्रभाव।

  • दहेज़ समाज में महिला को शसक्त होने से रोकता है, जो की समाज के लैंगिक समानता के लक्ष्य को भी पूरा होने से रोकता है।
  • दहेज़ के कारण ही समाज में भ्रूणहत्या जैसे पाप को भी बढ़ावा मिलता है क्यूंकि समाज के बहुत से लोगों का सोचना है की बेटी होने से आगे भविष्य में दहेज़ भी तो देना पड़ेगा।
  • दहेज़ के कारण आज कितनी ऐसी बच्चियाँ अनाथ है, जहाँ आज भी नवजात बच्चियों को कूड़े के ढेर से उठाया जाता है।
  • दहेज़ समाज में पितृसत्तातमक को बढ़ावा देता है।
  • दहेज़ देने के कारण कितने गरीब लोग कर्ज में फँस जातें हैं।
  • दहेज़ आज भी समाज में लड़कियों को शिक्षित होने और आगे बढ़ने से रोकता है।

इन सभी कारणों के बावजूद “समाज में दहेज़ की मांग को लेकर जो सबसे घिनौना अपराध महिलाओं के खिलाफ देखने को मिलता है वह है हिंसा, जबकि दुल्हन के माता-पिता के द्वारा उनकी मांग पूरी करने के बावजूद, दूल्हे के द्वारा या फिर दूल्हे के परिवार के द्वारा उस प्यारी सी दुल्हन के साथ हिंसा करतें हैं उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करतें हैं और कितनो को जला कर मार दिया जाता है और कई महिलायें जो इस जो इस यातना को सहन नहीं कर पातीं हैं वह आत्महत्या कर लेतीं हैं”।

“राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो” के अनुसार, भारत में दहेज़ से 21 मौतें प्रतिदिन 2016 में होतीं थी, जो की 2019 में मृत्यु की मामलों की संख्या 7.1 हजार से अधिक थी, जिससे पता चलता है की लगभग हर एक घंटे में एक महिला दहेज़ का शिकार हो जाती है। हमारे समाज में विवाह को एक पवित्र बंधन कहा जाता है, जो की दो परिवार के बिच खुशियों का एक सुन्दर रिश्ता होता है लेकिन अगर वहीं कुछ रिश्तें आगे बढ़ कर समाज में केवल दहेज़ के कारण रिश्तों के साथ-साथ इंसानियत की मर्यादा को भी तोड़ देतें हैं जिसके परिणामस्वरूप हमे समाज में अपने बेटियों के साथ ऐसा घिनौना अपराध भी देखने को मिलता है।

हमारे समाज में विवाह के बाद बेटियों से ज्यादा त्याग कोई नहीं करता यह आप भी अच्छी तरह जानते होंगे लेकिन फिर भी बेटी की इस त्याग के बदले, समाज के कुछ दरिंदे जिन्हे बस दहेज़ और पैसों की भूख होती है, वह उस बेटी के त्याग का मोल उसे प्रताड़ित करके चुकाता है और मेरी मानो तो मैं दोनों हाथ जोड़ कर समाज के हर उस पिता से कहना चाहता हूँ की जिस घर में रिश्ते के लिए दहेज़ की मांग की जा रही हो तो वैसे घर में रिश्ता करो ही मत और तब जाकर यह सुनिश्चित होगा की अपने समाज की बेटियों को दहेज़ के लिए प्रताड़ित नहीं होना पड़ेगा।

समाज में दहेज़ जैसी कुप्रथाओं को बढ़ावा देने में और दूल्हे के परिवार की दहेज़ को लेकर मांग करना जिसे दुल्हन के माता-पिता भी उस मांग को पूरा करते हैं या फिर उस मांग को पूरा करने की कोशिश करतें हैं, तो मै यहाँ यह कहूंगा की समाज भी कहीं न कहीं दहेज़ के मांग की आपूर्ति को स्वीकार करती है तभी तो समाज में इसकी मांग भी होती है, अगर आपूर्ति करना ही बंद कर दिया जाये तो मांग कहाँ से होगी।

मैं दहेज़ के प्रति समाज के कुछ शिक्षित वर्ग के युवाओं और युवतियों से चर्चा कर रहा था तो दहेज़ के प्रति उनकी भावना को सुन कर मै अचंभित हो गया क्यूंकि दहेज़ जैसी प्रथा का समर्थन कर रहें थें और उन्होंने दहेज़ के समर्थन के प्रति तर्क यह दिया की “बेटियों को अपने माता-पिता से दहेज़ लेने का पूरा हक़ है क्यूंकि उनकी सम्पत्ति में बेटियां भी भागीदारी होती है” तो मैंने कहा की यह तो बिलकुल सही बात है और हमारे देश के सुप्रीम कोर्ट के द्वारा भी यह कानून पारित किया गया है की बेटी भी अपने पिता के सम्पत्ति में जन्म से ही बराबर की हकदार होगी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के द्वारा यह फैसला दहेज़ को ध्यान में ना रखकर बल्कि बेटियों के हक़ को ध्यान में रखते हुए यह कानून पारित किया है, जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने “हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम” की व्याख्या करते हुए कहा की पैतृक संपत्ति पर बेटे-बेटियों दोनों का बराबर का हक़ होगा।

इसलिए आज के युवा पीढ़ी की दहेज़ के प्रति समर्थन का भाव समाज को भविष्य में दहेज़ जैसी कुप्रथा के लिए अग्रसर करेगा क्यूंकि बेटियां अगर अपने हक़ को दहेज़ के रूप में मांग करने लगी तो यह इस कुप्रथा को बढ़ावा देना होगा, जिससे समाज में दहेज़ की मांग करने वाले दरिंदो को सहयोग मिलेगा।

भारत में दहेज़ प्रथा के क्या कारण हैं?

दहेज़ के बारे में इतनी जागरूकता और इतने दुष्परिणाम के मामलों के बावजूद भी समाज में हम सब को यह कुप्रथा देखने मिलती है क्यूंकि इसके पीछे कुछ प्रमुख कारण है:-

  • परम्पराएँ और अनुष्ठान ->भारत में दहेज़ से सम्बंधित कुछ रीती-रिवाज और परम्पराएँ ऐसे हैं जिन्हे लोग वर्षों से पालन करते आ रहें हैं, भले ही हमे उन परम्पराओं के दुष्परिणाम क्यों न देखने को मिले फिर भी वह समाज से खत्म नहीं होतीं हैं।
  • दहेज़ को अपनी शान समझना ->समाज में बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जो की समाज में अपनी प्रतिष्ठा कायम रखने के लिए दहेज़ देना और दहेज़ लेना पसन्द करतें हैं।
  • सामाजिक संरचना ->भारत में मुख्य रूप से पितृसत्तात्मक समाज में देखने को मिलता है जिसके कारण बेटियों को परिवार का भोझ माना जाता है जहाँ दहेज़ देकर अपने भोझ को स्थानांतरित करने के लिए एक मुआवजा है और पुरुष संतान को श्रेष्ट माना जाता है फिर इस तरह कमाने वाला दहेज़ की मांग करता है।
  • शिक्षा का अभाव(निराक्षरता) ->लोगो में शिक्षा और जागरूकता  की कमी के कारण, उन्हें दहेज़ देने और लेने के लिए राजी करती है, क्यूंकि परिवारों को यह नहीं पता होता है की महिलाओं और पुरुषों के सामान दर्ज प्राप्त है।
  • सामाजिक दबाव ->समाज में यह आम बात हो गयी है की, परिवारों के द्वारा अपने बेटे या फिर बेटी की शादी में खर्च की गयी राशि समाज के लोगो के द्वारा पूछी जाती है, जिसके कारण अपनी हैसियत को कायम रखने के लिए दोनों पक्षों के बिच दहेज़ का भुगतान करने के लिए और दहेज़ की मांग करने के लिए दबाव बढ़ जाता है।

भारत में दहेज़ के खिलाफ कानून ?

जब समाज में ऐसे कुप्रथा देखने को मिलतें हैं तो यह बहुत आम बात हो जाती है की उस कुप्रथा को समाज से खत्म करने के लिए कानून भी बनाये जातें हैं, जिसके लिए भारत सरकार ने भी कुछ कानून बनायें हैं:-

  • दहेज निषेध अधिनियम, 1961 ->इस अधिनियम के तहत, दहेज भारत में अवैध है। यह अधिनियम भारत में दहेज लेने या देने के लिए किसी भी कार्य को दंडनीय बनाता है।

यहां तक ​​कि जब वधू पक्ष वास्तविक मांग/वास्तविक सौदे को पूरा करने में असमर्थ हो तो दूल्हे की ओर से दहेज के लिए बातचीत भी और दुल्हन के परिवार से शादी के बाद अपनी बेटी की शादी के लिए मुआवजे के रूप में मांगों को पूरा करने का कार्य सभी दंडनीय हैं।

  • भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराएं ->धारा 304बी भारत में दहेज हत्या से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि अगर किसी महिला की शादी के सात साल के भीतर किसी भी जलने या शारीरिक चोट से मृत्यु हो जाती है या यह पता चला है कि उसकी शादी से पहले उसके पति या पति के किसी अन्य रिश्तेदार द्वारा दहेज की मांग के संबंध में क्रूरता या प्रताड़ित किया गया था, तो महिला की मौत को दहेज हत्या माना जाएगा।

समाज में दहेज़ के खिलाफ इतने शक्त कानून होने के बावजूद भी हमारे देश में दहेज़ की मांग करना और दहेज़ देना कितनी सरलता पूर्वक की जाती है और ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि दहेज़ के मुद्दे को दोनों पक्षों के निजी सहमति से उजागर ही नहीं होने दिया जाता है और समाज में सभी को यही लगता है की दुल्हन के परिवार ने स्वयं ही बिना किसी मांग के यह सब दिया होगा, लेकिन सच तो समाज में तब उजागर होती है जब हमारे समाज की बेटी को दूल्हे के द्वारा या फिर दूल्हे के परिवार के द्वारा प्रताड़ित किया जाता है।

दहेज़ प्रथा को समाप्त करने के लिए सुझाव।

  • समाज में दहेज़ की मानसिकता को लेकर जागरूकता की कमी है, हमे दहेज़ के खिलाफ भी एक अभियान चलाना होगा, जिससे लोगो के बिच जागरूकता फैले।
  • हमे अपने देश में और खास तौर से ग्रामीण क्षेत्रों में यह सुनिश्चित करना होगा की बेटियों की साक्षरता दर पूरी है और हमे शुरुवात से ही लड़कियों को समाज के हिन् भावना के प्रति जागरूक करना होगा।
  • दहेज़ से सम्बंधित परम्पराएं और अनुष्ठान के प्रति जागरूकता फैलानी होगी और यह बताना होगा की समाज की ऐसी परंपराएँ महिलाओं को नुकसान पहुँचाती है।
  • दहेज़ से सम्बंधित कानूनों को समाज में अच्छे से लागू करना  और सशक्त बनाना होगा, जिससे बचाव का कोई रास्ता ही ना बचे।
  • दहेज़ से सम्बंधित कानूनों के प्रति जागरूकता फैलानी होगी ताकि लोगों में इसका अभाव देखने को ना मिले और लोग दहेज़ के खिलाफ आवाज़ उठाने से पीछे ना हटें।

“दहेज़ एक बिमारी है, जिसमे जलती हर नारी है, हम सब मिलकर करें इसका विरोध, यह हमारी ही जिम्मेदारी है”

दोस्तों, अगर आप समाज और देश से जुड़े आर्टिकल्स के बारे में और पढ़ना चाहतें हैं तो यहाँ क्लिक करके पढ़ सकतें हैं। 


Share & Help Each Other