वीर बाल दिवस। (Veer Baal Diwas.)

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सिख धर्म के दशवें गुरु ‘गुरु गोविन्द सिंह’ जी के पुत्र साहिबज़ादे बाबा ज़ोरावर सिंह जी और बाबा फ़तेह सिंह जी की शहादत, उनकी वीरता और बहादुरी को सम्मान अर्पित करने के लिए भारत प्रति वर्ष 26 दिसंबर को “वीर बाल दिवस (Veer Baal Diwas)” के रूप में मनाता है। यह दिवस गत पिछले वर्ष 2022 से मनाई जा रही है, जब गुरु गोविन्द सिंह जी के प्रकाश पर्व के दौरान भारत के प्रधानमंत्री जी के द्वारा इन दो वीर सपूतों के बलिदान और बहादुरी को चिन्हित करने के लिए यह दिवस घोषित किया गया।

veer baal diwas
Veer Baal Diwas

वीर बाल दिवस मनाने का उदेश्य क्या है?

Veer Baal Diwas का मुख्य उदेश्य देश की जनता, छोटे बच्चों और ख़ास तौर पर युवाओं को साहिबजादों की वीरता और शहादत के बारे में बताना और इनसे प्रेरणा लेना की संकट के समय में बिना घबराए कैसे उसका सामना करना है।

हमारे भारत में ऐसे महान बालवीर थें उनके सम्बन्ध में अपने आने वाले भविष्य को अवगत करवाना भी इस दिवस का मूल उदेश्य है।

वीर बाल दिवस का महत्व।

गुरु गोविन्द सिंह जी के चारों साहिबज़ादों की शहीदी को स्मरण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित किया जाता है, इस मौके पर सरकार पुरे देश में आकर्षक और भागीदारी कार्यक्रम आयोजित करती है साथ ही विद्यालयों और कॉलेजों में निबंध लेखन, प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता और अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जातें हैं।

प्रधानमंत्री और अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्तिथि में कार्यक्रम आयोजित होतें हैं, जहाँ वीर साहिबज़ादों के बहादुरी और शौर्य को याद किया जाता है।

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वीर बाल दिवस का इतिहास। 

सिखों के दसवें गुरु ‘गुरु गोविन्द सिंह जी’ के चार पुत्र साहिबज़ादे अजित सिंह, साहिबज़ादे जुझार सिंह, साहिबजादे ज़ोरावर सिंह और साहिबज़ादे फ़तेह सिंह थें। सन 1705 में सरसा नदी के सामने आनंदपुर साहिब किले पर औरंगजेबों ने हमला कर उसपर कब्ज़ा कर लिया, गुरु गोविन्द सिंह जी ने औरंग़ज़ेबों की मांग मान ली और किला छोड़ कर जाने लगे लेकिन नवाब वजीर खान ने उनके दो साहिबज़ादों को बंदी बना कर सरहिंद ले गए।

वहाँ उनके साहिबज़ादे ज़ोरावर सिंह(9 वर्ष) और साहिबज़ादे फ़तेह सिंह(6 वर्ष) की दरबार में पेशकी की गयी और उनसे इस्लाम धर्म में परिवर्तित होकर इस्लाम कुबूल करने के लिए कहा गया लेकिन साहिबज़ादों ने अपने धर्म के प्रति प्रेम दिखाते हुए इस्लाम कुबूल करने से इनकार कर दिया। साहिबज़ादों के इस निडर रवैये से नवाब वजीर खान क्रोधित होकर दोनों साहिबज़ादों को ज़िंदा दिवार में चुनवा देने का हुक्म दे दिया। इस प्रकार गुरु गोविन्द सिंह जी के दोनों साहिबज़ादें अपनी वीरता और बहादुरी का प्रमाण देते हुए अपने धर्म के प्रति शहीद हो गए।

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